Monkey Pox Alert: सावधान रहें मंकी पॉक्स से, देश भर में अलर्ट, अस्पतालों में इंतजाम
Monkey Pox Alert: राजधानी दिल्ली में मंकी पॉक्स की आशंका के मद्देनजर केंद्र सरकार के सरकारी अस्पतालों से लेकर दिल्ली सरकार के बड़े सरकारी अस्पतालों में तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
Monkey Pox Alert: मंकी पॉक्स को लेकर देश भर में एडवाइजरी जारी की गई है। अस्पतालों में खास निगरानी और अन्य इंतज़ाम किये गए हैं।
यूपी में क्या हो रहा
यूपी का स्वास्थ्य विभाग भी अलर्ट मोड पर आ गया है। स्थानीय स्तर पर हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है। प्रदेश के सभी जनपदों के एंट्री प्वाइंट्स पर मरीजों की स्क्रीनिंग के निर्देश दिए गए हैं। संदिग्ध मरीज का चिन्हीकरण, सैंपल कलेक्शन तथा उपचार के निर्देश दिए गए हैं। संदिग्धों के सैंपल डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी, केजीएमयू को भेजने के निर्देश दिए गए हैं। इस संंबंध में राज्य स्तरीय हेल्पलाइन नंबर (18001805145) जारी किया गया है। प्रदेश में प्वाइंट ऑफ एंट्री (सभी जनपदों में) पर भी मरीजों को लेकर सर्विलांस प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
दिल्ली में सतर्कता
राजधानी दिल्ली में मंकी पॉक्स की आशंका के मद्देनजर केंद्र सरकार के सरकारी अस्पतालों से लेकर दिल्ली सरकार के बड़े सरकारी अस्पतालों में तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। सफदरजंग अस्पताल में मंकी पॉक्स के मरीजों के लिए सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक के छठी मंजिल पर एक आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है। छह कमरों वाले इस आइसोलेशन वार्ड के लिए अस्पताल प्रशासन ने गाइडलाइन भी जारी की है। गाइडलाइन के अनुसार आइसोलेशन वार्ड में तैनात सभी कर्मियों के लिए पीपीई किट पहनना अनिवार्य होगा।
सावधानी ही है एकमात्र बचाव
मंकीपॉक्स अब ग्लोबल गंभीर चिंता बन गया है। इससे संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। डब्लूएचओ ने मंकीपॉक्स के बारे में चेतावनी जारी की है और कहा है कि ये पूरी दुनिया में फैल सकता है।
क्या है ये बीमारी
मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है जो मंकीपॉक्स वायरस के संक्रमण के कारण होती है। मंकीपॉक्स का प्राकृतिक भंडार अज्ञात है। हालांकि, अफ्रीकी चूहों और गैर-मानव प्राइमेट (जैसे बंदर), इस वायरस को अपने भीतर समेटे हो सकते हैं और लोगों को संक्रमित कर सकते हैं।
कहाँ से आया मंकीपॉक्स
मंकीपॉक्स की खोज पहली बार 1958 में हुई थी जब शोध के लिए रखे गए बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोप हुए। इसलिए इसका नाम 'मंकीपॉक्स' पड़ा। मंकीपॉक्स का पहला मानव मामला 1970 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में दर्ज किया गया था। तब से अन्य मध्य और पश्चिमी अफ्रीकी देशों में मनुष्यों में मंकीपॉक्स की सूचना मिली है। मंकीपॉक्स का कारण बनने वाला वायरस प्रकृति में एक जानवर से केवल दो बार बरामद किया गया है। पहली बार 1985 में, कांगो में एक बीमार अफ्रीकी गिलहरी से वायरस बरामद किया गया था। दूसरी बार 2012 में, ताई नेशनल पार्क, कोटे डी आइवर में एक मृत शिशु मंगाबी बंदर से वायरस बरामद किया गया था।
क्या हैं लक्षण
मनुष्यों में मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक के लक्षणों के समान, लेकिन हल्के होते हैं। मंकीपॉक्स की शुरुआत बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकावट से होती है। चेचक और मंकीपॉक्स के लक्षणों के बीच मुख्य अंतर यह है कि मंकीपॉक्स के कारण लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं (लिम्फैडेनोपैथी) जबकि चेचक में ऐसा नहीं होता है। मंकीपॉक्स के लिए इन्क्यूबेशन अवधि (संक्रमण से लक्षणों तक का समय) आमतौर पर 7 से 14 दिनों का होता है, लेकिन ये कभी कभी 5 से 21 दिनों तक भी हो सकता है। बीमारी की शुरुआत बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, लिम्फ नोड्स में सूजन, ठंड लगना और थकावट से होती है।
बुखार आने के 1 से 3 दिनों के भीतर या कभी-कभी अधिक समय में रोगी की स्किन, आमतौर पर चेहरे में एक दाना निकल आता है जो फिर शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है। धीरे धीरे स्किन पर दाने चकत्ते और घाव में तब्दील हो जाते हैं। ये बीमारी आमतौर पर 2 से 4 सप्ताह तक रहती है। सीडीसी का कहना है कि मंकीपॉक्स की गंभीरता किसी व्यक्ति की सेहत की स्थिति पर निर्भर करती है। इसके अलावा ये भी निर्भर करता है कि मंकीपॉक्स का कौन से वेरियंट का संक्रमण है। इस समय पश्चिम अफ्रीकी वेरियंट फैला हुआ है जो अमूमन हल्के रोग का कारण बनती है और मध्य अफ्रीकी नस्ल की तुलना में इसमें मृत्यु दर कम होती है। विशेष रूप से उन जगहों पर जहां उन्नत चिकित्सा देखभाल उपलब्ध है वहां मृत्यु दर बहुत कम होती है।
कैसे फैलती है बीमारी
मंकीपॉक्स वायरस का ट्रांसमिशन तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी जानवर, मानव या वायरस से दूषित सामग्री के संपर्क में आता है। ये वायरस टूटी हुई त्वचा (भले ही दिखाई न दे), श्वसन पथ, या श्लेष्मा झिल्ली (आंख, नाक या मुंह) के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। पशु-से-मानव में ट्रांसमिशन काटने या खरोंच, मांस काटने, शरीर के तरल पदार्थ या घाव के सीधे संपर्क के माध्यम से हो सकता है। माना जाता है कि मानव-से-मानव में ट्रांसमिशन मुख्य रूप से छींक, खांसी, जुकाम के माध्यम से होता है। ठीक वैसे ही जैसे कोरोना वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में ट्रेवल करता है। इसके अलावा शरीर के तरल पदार्थ या घाव के साथ सीधा संपर्क और दूषित कपड़ों या लिनेन के माध्यम से बीमारी फैल सकती है। इसके अलावा ये संक्रमण यौन संबंध के जरिये तथा गर्भवती महिला से शिशु में फैल सकता है।