ICMR New Covid Guidelines: अब ऐसे होगा कोरोना का इलाज, जारी हुए टीबी और ब्लड शुगर की जांच समेत नए दिशानिर्देश
ICMR New Covid Guidelines: कोरोना संक्रमितों के इलाज में रेमेडिसविर, स्टेरॉयड और इम्यूनोसप्रेसिव दवा टोसिलिजुमैब का बहुत ही विशेष परिस्थिति में ही किया जाएगा।
ICMR New Covid Guidelines: कोरोना संक्रमितों के इलाज (Corona Patient Treatment) में रेमेडिसविर, स्टेरॉयड और इम्यूनोसप्रेसिव दवा टोसिलिजुमैब (Tocilizumab) का बहुत ही विशेष परिस्थिति में ही किया जाएगा। यहां तक कि मल्टीविटामिन के इस्तेमाल को भी सीमित कर दिया गया है। ये भी कहा गया है कि अगर दो-तीन हफ्ते तक खांसी आये तो टीबी की जांच (TB Test) करानी चाहिए।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कोरोना के इलाज के लिए नए प्रोटोकॉल (Corona Treatment New Protocol) जारी किए हैं। नए दिशानिर्देशों को एम्स और आईसीएमआर के नेतृत्व वाले कोरोना नेशनल टास्क फोर्स (Covid National Task Force) द्वारा डिज़ाइन किया गया है।
रेमडेसिविर का इस्तेमाल
- रेमडेसिविर (Remdesivir) केवल उन रोगियों को दिया जा सकता है, जिनमें बीमारी के लक्षण आये 10 दिन हो गए हैं और जिन्हें ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ रही है। लेकिन रेमडेसिविर उन मरीजों को नहीं दी जाएगी जो वेंटिलेटर पर हैं या एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) पर हैं। ईसीएमओ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बहुत गंभीर रूप से बीमार बच्चे में कृत्रिम फेफड़े के जरिये ब्लड को सर्कुलेट करके पम्प द्वारा पहुंचाया जाता है।
प्रोटोकॉल में कहा गया है कि डॉक्टर अस्पताल में भर्ती कोरोना कोरोना मरीजों को पांच दिनों के लिए रेमेडिसविर देने पर विचार कर सकते हैं। आईसीएमआर ने साथ में ये भी कहा है कि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि पांच दिनों से ज्यादा रेमेडिसविर देने से इलाज में कोई लाभ होता है।
हल्के लक्षण वाले मरीज क्या करें?
नए प्रोटोकॉल के अनुसार हल्के कोरोना के मैनेजमेंट में हाइड्रेशन यानी खूब पानी पीना है, बुखार की दवा (एंटी-पायरेटिक्स) और खांसी की दवा (एंटी-ट्यूसिव) को ही लेना है। ऐसे मरीजों को मल्टीविटामिन लेने की जरूरत नहीं है। हल्के कोरोना का मतलब है कि ऐसे मरीज जिनको सांस की तकलीफ नहीं है और जिनके ब्लड में कम ऑक्सीजन की समस्या नहीं है।
ऐसे मरीजों को न दें स्टेरॉयड
प्रोटोकॉल में कहा गया है कि कोरोना के मध्यम लक्षण वाले मरीज जिनको ऑक्सीजन देने की जरूरत नहीं है, उनको इंजेक्शन द्वारा दिये जाने वाले स्टेरॉयड से कोई फायदा नहीं होता है।
दरअसल, कोरोना की भयानक दूसरी लहर में मरीजों को खूब स्टेरॉयड दी गई थीं जिसके चलते बाद में ब्लैक फंगस के ढेरों मामले आ गए थे। इस स्थिति को रोकने के लिए अब स्टेरॉयड के इस्तेमाल के खिलाफ दिशानिर्देश दिए गए हैं। नए प्रोटोकॉल में कहा गया है कि मध्यम और गंभीर मरीजों को ज्यादा मात्रा में या लम्बे समय तक एंटी-इंफ्लेमेटरी या इम्यूनोमॉड्यूलेटरी थेरेपी (जैसे स्टेरॉयड) देने से म्यूकोर्मिकोसिस जैसे दूसरे तरह के संक्रमण का खतरा हो सकता है।
कौन सी जांच कराएं
गंभीर और मध्यम, दोनों तरह के मरीजों को ब्लड शुगर, सीआरपी और डी-डिमर, कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी), किडनी फंक्शन टेस्ट (केएफटी), लीवर फंक्शन टेस्ट (एलएफटी) और आईएल -6 लेवल की जांच करानी चाहिए। नये प्रोटोकॉल में ब्लड शुगर की जांच जोड़ी गई है। जबकि पहले के प्रोटोकॉल में ये शामिल नहीं था।
टीबी की जांच
नए प्रोटोकॉल में ये भी कहा गया है कि हल्के लक्षण वाले मरीजों में दो - तीन सप्ताह से अधिक समय तक खांसी बनी रहती है, तो उनको टीबी और अन्य बीमारियों की जांच कराना चाहिए। प्रोटोकॉल में अब कोरोना की गंभीर बीमारी या मृत्यु दर के लिए उच्च जोखिम की श्रेणी के तहत एक्टिव टीबी वाले लोगों को भी जोड़ा है।
टोसिलिजुमैब दवाई
नए प्रोटोकॉल में इम्यूनोसप्रेसेंट (Immunosuppressant) दवाई टोसिलिजुमैब के बारे में कहा गया है कि ये उन मरीजों को दी जा सकती है जो पांच मानदंडों को पूरा करते हैं - वे एक्टिव टीबी से पीड़ित नहीं हैं, फंगल इंफेक्शन से पीड़ित नहीं हैं, और किसी तरह का कोई बैक्टीरियल इंफेक्शन नहीं है।
इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवा केवल उन रोगियों को दी जा सकती है जो ऑक्सीजन थेरेपी या वेंटिलेटर पर हैं लेकिन उनपर स्टेरॉयड काम नहीं कर रही है। ये भी कहा गया है कि ये दवा दिए जाने के बाद फॉलोप किया जाना चाहिए और सेकेंडरी इंफेक्शन जैसे कि टीबी उभर आना या हर्पीज़ हो जाना, इन पर नजर रखनी चाहिए।
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