देश से बड़ी खबरः आ गई हर्ड एम्युनिटी, 30 फीसद संक्रमित

भारत में कुछ आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैं। राजधानी दिल्ली के एक करोड़ 60 लाख लोगों में से करीब 30 फीसदी को कोरोना वायरस संक्रमण हो चुका है।

Update:2020-08-27 17:03 IST
देश से बड़ी खबरः आ गई हर्ड एम्युनिटी, 30 फीसद संक्रमित

लखनऊ: भारत में कुछ आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैं। राजधानी दिल्ली के एक करोड़ 60 लाख लोगों में से करीब 30 फीसदी को कोरोना वायरस संक्रमण हो चुका है। उधर महाराष्ट्र में पुणे की कुछ घनी बस्तियों में 50 फीसदी से ज्यादा लोगों को कोरोना वायरस हो चुका है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के स्लम्स में करीब 60 फीसदी लोगों में संक्रमण और रिकवरी के निशान हैं। ये सब हाल के सेरोलोजिकल सर्वे के परिणाम हैं जो कोरोना वायरस के प्रति एक्सपोज़र का वो लेवल दिखाते हैं जो दुनिया में कहीं और नहीं देखा गया है। ये एक्सपर्ट्स की उन आशंकाओं को भी साबित करते हैं कि भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से कहीं ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत कोरोना संक्रमण के मामले में तीसरे नंबर पर है।

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चौंकाने वाले आंकड़े

आंकड़े कुछ रहस्योद्घाटन भी करते हैं। वो ये कि कुछ जगहों पर पर्याप्त संख्या में लोगों में कोरोना वायरस के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बन चुकी है जिस कारण ऐसे क्षेत्रों में संक्रमण फैलने की रफ़्तार धीमी पड़ी है। कुछ समुदायों में झुण्ड प्रतिरोधकता यानी हर्ड इम्यूनिटी डेवलप हो चुकी है। हर्ड इम्यूनिटी का मतलब ये है कि जब किसी जनसमूह के अधिकाँश लोगों में किसी विषाणु के प्रति रेसिस्टेंस बन जाता है तो विषाणु के पास संक्रमित करें के लिए और लोग ही नहीं बचते।

यानी जब ज्यादा लाग इन्फेक्ट हो जाते हैं तो संक्रमण का फैला स्वाभाविक रूप से रुक जाता है। ये एक तरह का प्राकृतिक वैक्सीन जैसा ही है लेकिन इस क्रम में कितने लोग संक्रमण के कारण मारे जायेंगे इसका कोई हिसाब नहीं रहता। इस वजह से हर्ड इम्यूनिटी की अवधारणा काफी विवादास्पद मानी जाती है। ये भी सवाल अनुत्तरित है कि जिनको संक्रमण हो चुका है उनमें एंटीबॉडी कब तक कायम रहेंगी और क्या एंटीबॉडी खत्म होने के बाद संक्रमण फिर हो सकता है?

अनजाने में पकड़ी गयी राह

स्वीडन ने संभवतः हर्ड इम्यूनिटी का रास्ता तो जानबूझ कर अपनाया लेकिन भारत में इसे अनजाने में अपनाया गया। भारत में मई के महीने में काफी सख्त लॉकडाउन लागू किया लेकिन शहरों के घने स्लम्स में कोरोना वायरस को फैलने की आदर्श स्थितियां मिल गयीं। ऐसे घने बसे इलाकों में वायरस फैला लेकिन हाल में इसकी रफ़्तार धीमी हुई है। मुंबई की झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में संक्रमण के मामले काफी कम हो गए हैं जबकि इन इलाकों के लाग अब सामान्य जिन्दगी में वापस लौटने लगे हैं, बंदिशें ढीली पड़ी हैं।

दूसरी ओर दिल्ली में नए केस मिलने का ग्राफ नीचे आया है। लेकिन दिल्ली में रैपिड एंटीजन टेस्ट पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता दिखाई जा रही है। रैपिड एंटीजन टेस्ट से गलत नेगेटिव रिपोर्ट आने के मामले भी बहुत ज्यादा हैं। ये भी सच्चाई है कि अस्पतालों में अब काफी बेड खाली पड़े हैं जबकि पहले अस्पताल में इनकी बहुत किल्लत हो गयी थी। सीरोलोजिकल सर्वे से यह पता चलता है किसी क्षेत्र में कोरोना का प्रकोप कितना था और वहां कितने प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी बन चुके हैं, यानी कितने प्रतिशत संक्रमित हो चुके हैं। इससे आगे की प्लानिंग में मदद मिलती है। कल को वैक्सीन आती है तो जहां लोगों में एंटीबॉडी कम हैं, वहां वैक्सीन पहले दे सकते हैं।

ग्रामीण इलाकों में फैलाव

शहरों में संक्रमण की ग्रोथ धीमी पड़ने के साथ ग्रामीण इलाकों में संक्रमण का फैलाव तेजी से बढ़ा है। ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ केयर सुविधाओं की कमी से मरीजों की दुश्वारियां बढ़ी हैं। इसके चलते ये कहा जा सकता है कि हर्ड इम्यूनिटी हो चाहे न हो, भारत में कोरोना वायरस से जंग अभी खात्मे के करीब नहीं दिख रही।

वैक्सीन ही एकमात्र विकल्प

दुनियाभर के कई देशों में दावा किया जा रहा है कि वहां संक्रमण के कारण लोगों में हर्ड इम्यूनिटी (सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता) का विकास हो गया है। लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि विश्व अभी कहीं भी कोरोना वायरस के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी उत्पन्न होने जैसी स्थिति में नहीं है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के कुछ रिसर्चर्स ने पहले दावा किया था कि ब्रिटेन में लोगों के बीच हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो रही है। पहले ऑक्सफोर्ड की स्टडी में दावा किया गया था कि ब्रिटेन के लोगों में आम सर्दी-जुकाम जैसे मौसमी संक्रमण की वजह से पहले ही सामूहिक तौर पर हर्ड इम्यूनिटी का स्तर इतना है कि वे घातक कोरोना वायरस के फिर से पनपने पर उसका सामना कर सकते हैं।

डब्लूएचओ ने कहा कि हर्ड इम्यूनिटी विशेष तौर पर वैक्सीनेशन के माध्यम से हासिल की जाती है। अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कम से कम 70 प्रतिशत आबादी में घातक वायरस को शिकस्त देने वाली एंटीबॉडीज होनी चाहिए। लेकिन, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आधी आबादी में भी कोरोना वायरस से लड़ने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) हो तो एक रक्षात्मक प्रभाव उत्पन्न हो सकता है।

डब्ल्यूएचओ के आपातकालीन मामलों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रेयान ने इस सिद्धांत को खारिज करते हुए कहा है कि हमें हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने की उम्मीद में नहीं रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक आबादी के रूप में, अभी हम उस स्थिति के कहीं आसपास भी नहीं हैं जो वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जरूरी है।

समाधान हर्ड इम्यूनिटी में नहीं

डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि हर्ड इम्यूनिटी कोई समाधान नहीं है और न ही यह ऐसा कोई समाधान है जिसकी तरफ हमें देखना चाहिए। आज तक हुए अधिकतर अध्ययनों में यही बात सामने आई है कि केवल 10 से 20 प्रतिशत आबादी में ही संबंधित एंटीबॉडीज हैं, जो लोगों को हर्ड इम्यूनिटी पैदा करने में सहायक हो सकते हैं। लेकिन, इतनी कम एंटीबॉडीज की दर से हर्ड इम्यूनिटी को नहीं पाया जा सकता।

हर्ड इम्‍यूनिटी क्‍या है?

हर्ड इम्यूनिटी में हर्ड शब्द का मतलब झुंड से है और इम्यूनिटी यानी बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इस तरह हर्ड इम्यूनिटी का मतलब हुआ कि एक पूरे झुंड या आबादी की बीमारियों से लड़ने की सामूहिक रोग प्रतिरोधकता पैदा हो जाना।

वैज्ञानिक सिद्धांत के मुताबिक, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैल जाती है तो इंसान की इम्यूनिटी उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। इस दौरान जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं। यानी उनमें प्रतिरक्षा के गुण पैदा हो जाते हैं। इसके बाद झुंड के बीच मौजूद अन्य लोगों तक वायरस का पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। एक सीमा के बाद इसका फैलाव रुक जाता है। इसे ही 'हर्ड इम्यूनिटी' कहा जा रहा है।

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हर्ड इम्यूनिटी महामारियों के इलाज का एक पुराना तरीका है। व्यवहारिक तौर पर इसमें बड़ी आबादी का नियमित वैक्सिनेशन होता है, जिससे लोगों के शरीर में प्रतिरक्षी एंटीबॉडीज बन जाती हैं। जैसा चेचक, खसरा और पोलियो के साथ हुआ। दुनियाभर में लोगों को इनकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए हैं।

वैज्ञानिकों का ही अनुमान है कि किसी देश की आबादी में कोविड-19 महामारी के खिलाफ हर्ड इम्युनिटी तभी विकसित हो सकती है, जब कोरोनावायरस उसकी करीब 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर चुका हो। वे मरीज अपने शरीर में उसके खिलाफ एंटीबॉडीज बनाकर और उससे लड़कर इम्यून हो गए हों।

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