Croaker Fish Use Surgery: क्रोकर मछली की कहानी, सर्जरी के बाद काम आती है ये
Croaker Fish Use Surgery: क्रोकर मछली मेडिसिन की दुनिया में काफी पूछ-परख रखती है। इसके शरीर में पाए जाने वाले एयर ब्लैडर का सर्जरी में इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल कर ऐसे टांके बनाए जाते हैं, जो सर्जरी के बाद काम आते हैं।;
Croaker Fish (Pic:Social Media)
Croaker Fish Use Surgery: कुछ साल पहले पाकिस्तान के बलूचिस्तान में 26 किलो वजनी क्रोकर मछली के बहुत ऊंची कीमत पर बिकने की चर्चा काफी जोरों पर थी। ग्वादर जिले में पकड़ी गई यह मछली 7 लाख 80 हजार रुपए में बिकी थी। इसके कुछ साल पहले भी यह मछली 17 लाख रुपये में बिकी थी। इसकी क़ीमत से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसमें इतने गुण हैं, जो इसको महँगा बनाते हैं। इस मछली के बारे में विस्तार से जानेंगें। इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल मेडिकल के क्षेत्र में होता है। क्रोकर मछली मेडिसिन की दुनिया में काफी पूछ-परख रखती है। इसके शरीर में पाए जाने वाले एयर ब्लैडर का सर्जरी में इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल कर ऐसे टांके बनाए जाते हैं, जो सर्जरी के बाद काम आते हैं। ये टांके इंसान के शरीर में काफी आसानी से घुल जाते हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। खासकर ये टांके हार्ट सर्जरी में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं।
इस मछली की ख़ास बात यह है कि इससे केंसर जैसे बीमारी को रोका जा सकता है। क्योंकि ये मछली इंसान के शरीर में अतिरिक्त कोशिकाओं का निर्माण रोक देती है। इससे शरीर में लगी चोट और संक्रमण का इलाज भी हो पाता है। सत्तर के दशक में चीन में लगभग 2 लाख टन कोक्रर मछली पकड़ी गई और इन्हें दूसरे देशों में भी बेचा गया। पर इस मछली को पकड़ना आसान नहीं है। यह मछली आम तौर पर चीन और दक्षिणी पीला सागर में मिलती है। यह मछली सिर्फ़ ब्रीडिंग सीजन के दौरान ही ऊपर की ओर आती है, जो केवल दो महीनों का होता है। यानी पूरे साल में केवल दो महीने ही इन्हें पकड़े जाने की संभावना रहती है। यानी 12 में से दो ही महीने इनके पकड़े जाने की संभावना होती है। ऐसे में मछुआरों को इनकी ताक में रहना होता है। क्रोकर मछली के कीमती होने की एक वजह ये भी है।
दिन-ब-दिन इस मछली की संख्या में लगातार कमी इससे दवाई तैयार करने वाले देश जैसे चीन, ताइवान, दक्षिण कोरिया और हांगकांग के वैज्ञानिकों को परेशान कर रही है। अब ये देश अपने देश में इस मछली पालन के बारे में सोच रहे हैं। इसकी कोशिश भी की। पर किसी भी देश को अब तक कामयाबी नहीं मिली है। इन मछलियों की हालत अब ऐसी है कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इसे विलुप्त हो रही मछलियों की श्रेणी यानी रेड लिस्ट में इसे डाल दिया है।
मेडिकल साइंस के अलावा इस मछली के पास अपने पोषक तत्व हैं। इसमें जैसे प्रोटीन, विटामिन और माइक्रोइलेमेंट्स मिलते हैं। इनके साथ इस मछली के मांस का उपयोग, अनिद्रा, थकान और थक्कर आने जैसी समस्याओं में होता है। साथ ही डिलीवरी के बाद प्रसूता को इसका मांस देने से काफी जल्दी रिकवरी होती है। चीन जैसे देश इन मछलियों के सुरक्षित रखने के लिए नयी नयी तकनीक अपना रहे हैं। जिसके तहत कई महीने - सालों तक मछलियों को अपने पास रख सकते हैं। मछलियों के लिए वहां खास कोल्ड चेन तकनीक बनाई गई है, जिसकी वजह से मछलियां पकड़े जाने के बाद उन्हें महीनों-सालों रखना आसान हो गया।