1971 युद्ध के हीरो जनरल जैकब, पाकिस्तान से जीत में अहम रोल, जानें इनके बारें में
मेजर जनरल जैकब ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि 16 दिसंबर को उनके पास फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का फ़ोन आया कि आप ढाका जाकर आत्मसमर्पण करवाइए।
लखनऊ: 49 साल पहले आज ही के दिन पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने समर्पण किया था जिसके बाद 13 दिन तक चला युद्ध समाप्त हुआ और जन्म हुआ बांग्लादेश का। इस 13 दिन के ऐतिहासिक युद्ध में ईस्टर्न कमांड के स्टाफ़ ऑफ़िसर मेजर जनरल जेएफ़आर जैकब ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 16 दिसंबर को पाकिस्तान के जनरल नियाज़ी के साथ क़रीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाले थे और मेजर जनरल जैकब ने ही जनरल नियाज़ी से बात कर उन्हें हथियार डालने के लिए राज़ी किया था।
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मेजर जनरल जैकब ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था
मेजर जनरल जैकब ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि 16 दिसंबर को उनके पास फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का फ़ोन आया कि आप ढाका जाकर आत्मसमर्पण करवाइए। मैं जब ढाका पहुंचा तो पाकिस्तानी सेना ने मुझे लेने के लिए एक ब्रिगेडियर को कार लेकर भेजा हुआ था। मुक्तिवाहिनी और पाकिस्तानी सेना के बीच लड़ाई जारी थी और गोलियाँ चलने की आवाज़ सुनी जा सकती थी। हम जैसे ही उस कार में आगे बढ़े मुक्ति सैनिकों ने उस पर गोलियाँ चलाई। मैं उन्हें दोष नहीं दूँगा क्योंकि वह पाकिस्तान सेना की कार थी। मैं हाथ ऊपर उठा कर कार से नीचे कूद पड़ा। वह पाकिस्तानी ब्रिगेडियर को मारना चाहते थे। हम किसी तरह पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पहुँचे।
हम आत्मसमर्पण करने जा रहे हैं
जब मैंने नियाज़ी को आत्मसमर्पण का दस्तावेज़ पढ़ कर सुनाया तो वह बोले किसने कहा कि हम आत्मसमर्पण करने जा रहे हैं। आप यहां सिर्फ़ युद्धविराम कराने आए हैं। यह बहस चलती रही। मैंने उन्हें एक कोने में बुलाया और कहा हमने आपको बहुत अच्छा प्रस्ताव दिया है। इस पर हम वायरलेस से पिछले तीन दिनों से बात करते रहे हैं। हम इससे बेहतर पेशकश नहीं कर सकते। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अल्पसंख्यकों और आपके परिवारों के साथ से अच्छा सुलूक किया जाए और आपके साथ भी एक सैनिक जैसा ही बर्ताव किया जाए।
इस पर भी नियाज़ी नहीं माने। मैंने उनसे कहा कि अगर आप आत्मसमर्पण करते हैं तो आपकी और आपके परिवारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी होगी लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करते तो ज़ाहिर है हम कोई ज़िम्मेदारी नहीं ले सकते। उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
मैंने उनसे कहा मैं आपको जवाब देने के लिए 30 मिनट देता हूँ
मैंने उनसे कहा मैं आपको जवाब देने के लिए 30 मिनट देता हूँ। अगर आप इसको नहीं मानते तो मैं लड़ाई फिर से शुरू करने और ढाका पर बमबारी करने का आदेश दे दूँगा। यह कहकर मैं बाहर चला गया। मन ही मन मैंने सोचा कि यह मैंने क्या कर दिया है। मेरे पास कुछ भी हाथ में नहीं है। उनके पास ढाका में 26400 सैनिक हैं और हमारे पास सिर्फ़ 3000 सैनिक हैं और वह भी ढाका से 30 किलोमीटर बाहर!
आत्मसमर्पण दस्तावेज़ मेज़ पर पड़ा हुआ था
मैं 30 मिनट बाद अंदर गया। आत्मसमर्पण दस्तावेज़ मेज़ पर पड़ा हुआ था। मैंने उनसे पूछा क्या आप इसे स्वीकार करते हैं। वह चुप रहे। मैंने उनसे तीन बार यही सवाल पूछा। फिर मैंने वह काग़ज़ मेज़ से उठाया और कहा कि मैं अब यह मान कर चल रहा हूँ कि आप इसे स्वीकार करते हैं।
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आत्मसमर्पण 4 बज कर 55 मिनट पर हस्ताक्षर हुए। मैंने नियाज़ी से तलवार समर्पित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा मेरे पास तलवार नहीं है। मैंने कहा कि तो फिर आप पिस्टल समर्पित करिए। उन्होंने पिस्टल निकाली और जनरल जगजीत सिंह अरोरा को दे दी। उस समय उनकी आँखों में आँसू थे। उन दोनों और किसी के बीच एक भी शब्द का आदान-प्रदान नहीं हुआ। भीड़ नियाज़ी को मार डालना चाहती थी। वह उनकी तरफ़ बढ़े भी। हमारे पास बहुत कम सैनिक थे लेकिन फिर भी हमने उन्हें सेना की जीप पर बैठाया और सुरक्षित जगह पर ले गए।
रिपोर्ट- नीलमणि लाल
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