नई दिल्ली: भारत में आये दिन एक न एक दुर्घटनाएं होती रहती हैं। जिसकी वजह कहीं न कहीं लापरवाही ही होती है। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक विगत 12 वर्षों में करीब 39 लाख मौतों को टाला जा सकता था। इन घटनाओं में अब तक अमृतसर की त्रासदी सबसे अधिक भयावह है।
अमृतसर घटना को इस तरह रोका जा सकता था..
अभी हाल ही में हुए अमृतसर दुर्घटना पर भी अगर लोग सचेत होते तो इसको भी रोका जा सकता था। रावण दहन कार्यक्रम के आयोजकों ने लोगों की प्रशंसा के बजाय रेलवे पटरियों से उतरने की अपील किया होता तो
अगर ट्रेन को रोका या धीमा कर दिया गया होता तो...
अगर केवल कुछ मिनट बाद रावण का पुतला दहन किया गया होता तो...
रेलवे को कार्यक्रम के आयोजन का पता होता तो...
स्थानीय प्रशासन सचेत होती तो...
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड के अनुसार भारत में अवांछित मौतों की गिनती-अप्राकृतिक दुर्घटनायें बहुत अधिक होती हैं। इस तरह के दुर्घटनाओं ने 2004 और 2015 के बीच 39 लाख से अधिक लोगों को मौत की नींद में सुला दिया है। इसमें अकेले रेलवे पटरियों और क्रॉसिंग पर दुर्घटनाएं इस दौरान 26,000 से ज्यादा मौतें हुईं, जो कि दिन में छह मौतें होती हैं।
दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में से, सड़क दुर्घटना सबसे बड़ा कारण है, जिसमें पिछले 12 वर्ष में लगभग 1.5 लाख लोग मारे गए थे, एक आंकड़े के मुताबिक 2004 में सड़क दुर्घटना की मौत से 64% अधिक हुई है।
इन दुर्घटना का कारण "इन दुर्घटनाओं में से कई के लिए दोषपूर्ण यातायात इंजीनियरिंग और खराब प्रवर्तन, जागरूकता और विनियमन को दोषी ठहराया जाना है" एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि मौसम की स्थिति और स्थलाकृति कई जगहों पर दुर्घटनाग्रस्त होने का खतरा अधिक रहता है।
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डूबकर मरने वालों में 30,000 से अधिक मौतें
आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर कारखानों, बिजली और निर्माण में नियामक चूक के कारण 12 साल की अवधि के दौरान 1 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। इसके बाद नदी में डूबकर मरने वालों में 30,000 से अधिक मौतें हुई हैं। अन्य कारणों से हुई मौतों की संख्या बहुत अधिक है।
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने बता या कि "चूंकि हम एक विकासशील देश हैं, इसलिए हमारी सुरक्षा और खतरे की धारणा उन्नत देशों की तुलना में काफी कम है। कई मामलों में, जागरूकता अभियान चलाकर ऐसी मौतों से बचा जा सकता है।"