Aditya L1 Mission Update: आदित्य एल-1 पहले चक्र में सफल, सूर्य के और करीब पहुंचा

Aditya L1 Mission Update: आदित्य एल -1 पहली भारतीय अंतरिक्ष आधारित वेधशाला है जो पहले सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा से सूर्य का अध्ययन करती है।

Update:2023-09-05 09:42 IST
Aditya L1 Mission Update (photo: social media )

Aditya L1 Mission: सूर्य का अध्ययन करने वाले भारत के पहले अंतरिक्ष मिशन आदित्य एल-1 ने पृथ्वी की ओर दूसरी बार सफलतापूर्वक परिक्रमा चक्र पूरा कर लिया है। इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (इसट्रैक) ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया।

इसरो ने "एक्स" पर एक ट्वीट में कहा कि "दूसरी अर्थ-बाउंड पैंतरेबाज़ी (ईबीएन#2) इस्ट्रैक, बेंगलुरु से सफलतापूर्वक कर दी गई। इस ऑपरेशन के दौरान मॉरीशस, बेंगलुरु और पोर्ट ब्लेयर में इसट्रैक - इसरो के ग्राउंड स्टेशनों ने उपग्रह को ट्रैक किया। नई कक्षा 282 किमी x 40225 किमी प्राप्त की गई है।” अगला युद्धाभ्यास (ईबीएन#3) 10 सितंबर को लगभग 02:30 बजे के लिए निर्धारित है।

आसान शब्दों में कहें तो आदित्य एल-1 को पृथ्वी की कक्षा से दूर भेजने के क्रम को "ईबीएन" कहते हैं जिसमें उपग्रह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए अपनी दूरी बढ़ाता जाता है। इस दूरी बढ़ाने के क्रम को ही मैनेवेर या युद्धाभ्यास अथवा पैंतरेबाजी कहते हैं।अगला युद्धाभ्यास (ईबीएन#3) 10 सितंबर को भारतीय समयानुसार लगभग 02:30 बजे के लिए निर्धारित है।

अंतरिक्ष बेस्ड वेधशाला

आदित्य एल -1 पहली भारतीय अंतरिक्ष आधारित वेधशाला है जो पहले सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा से सूर्य का अध्ययन करती है। यह कक्षा पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर स्थित है।

- अंतरिक्ष यान को लैग्रेंज बिंदु एल1 की ओर स्थानांतरण कक्षा में स्थापित करने से पहले दो और पृथ्वी-कक्षीय प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। लगभग 127 दिनों के बाद आदित्य एल1 के एल1 बिंदु पर नियत कक्षा में पहुंचने की उम्मीद है।

- इसरो के पीएसएलवी-सी57 यान ने 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था।

- लॉन्चिंग के बाद 63 मिनट और 20 सेकंड की उड़ान अवधि के बाद, आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के चारों ओर 235×19500 किमी की अण्डाकार कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया।

- इसरो के अनुसार, एल 1 बिंदु के चारों ओर हेलो कक्षा में रखे गए उपग्रह को बिना किसी ग्रहण के सूर्य को लगातार देखने का प्रमुख लाभ होता है। इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर सूर्य के प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा।

- आदित्य एल1 इसरो और भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बेंगलुरु और इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए), पुणे सहित राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित सात वैज्ञानिक पेलोड ले गया है। इन पेलोड को डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करना है।

- चार पेलोड सीधे सूर्य को देखते हैं और शेष तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु एल1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करेंगे।

- उम्मीद है कि आदित्य एल1 के पेलोड सूर्य में कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कणों और क्षेत्रों के प्रसार की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।

क्या हैं लैग्रेंज पॉइंट्स

- वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी और सूर्य के बीच पांच लैग्रेंजियन पॉइंट (या पार्किंग क्षेत्र) हैं जहां कोई छोटी वस्तु रखने पर वह वहीं रुक जाती है। लैग्रेंज पॉइंट्स का नाम इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर उनके 1772 के अध्ययन के नाम पर रखा गया है। अंतरिक्ष में इन बिंदुओं का उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा कम ईंधन खपत के साथ वहां टिके रहने के लिए किया जा सकता है।

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