जहां अधिक वायु प्रदूषण, वहां कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा: रिपोर्ट

कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में भारी तबाही मचाई है। अमेरिका, इटली, पाकिस्तान समेत दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ा है। इस बीच कोरोना वायरस को लेकर एक चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है।;

Update:2020-04-21 16:52 IST

नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में भारी तबाही मचाई है। अमेरिका, इटली, पाकिस्तान समेत दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ा है। इस बीच कोरोना वायरस को लेकर एक चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है।

अमेरिका में हुई एक रिसर्च में दावा किया गया है कि ऐसे सभी लोग जो कि बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण वाले इलाकों में रहते हैं, अगर वो कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाएं तो उन पर खतरा सबसे ज्यादा है और ऐसे मामलों में मृत्यु दर बहुत ज्यादा होने के चांसेज है।

वायु प्रदूषण के ये महीन कण आमतौर पर ईंधन के जलने से हवा में घुल –मिल जाते हैं। खासतौर पर कारों, रिफाइनरी और पावर प्लांट्स में चलने वाले कंबशन इंजन इस तरह के महीन वायु प्रदूषण को बढ़ाने में काफी मद्द्र्गार साबित होते हैं। यह रिसर्च सीधे तौर पर वायु में मौजूद महीन कणों (PM2.5) के संपर्क में लंबे समय तक रहने वालों पर कोरोना के दुष्प्रभाव से जुड़ी है।

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नाइट्रोजन डाईऑक्साइड है खतरनाक

हवा में मौजूद प्रदूषक तत्‍व नाइट्रोजन डाईऑक्सा इड का कनेक्शन कोरोना वायरस से हो रही मौतों से हो सकता है।

यह प्रदूषण तत्वष शरीर में श्वनसन तंत्र को क्षति पहुंचाता है। इसका खुलासा साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्यशयन के मुताबिक नए शोध में हुआ है।

प्रदूषण का क्या है कोरोना से सम्बन्ध

जर्मनी की मार्टिन लूथर यूनिवर्सिटी (एमएलयू) के शोधकर्ता यैरों ओगेन के अनुसार 'कोरोना वायरस भी श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है।

ऐसे में यह बात मानना उचित है कि वायु प्रदूषण और कोरोना वायरस संक्रमण से हो रही मौतों के बीच संबंध हो सकता है।

इससे साफ़ होता है कि उन क्षेत्रों में उल्लेखनीय तौर पर ज्यादा मौतें हो रही हैं, जहां स्थायी तौर पर प्रदूषण उच्च स्तर पर रहता है। नाइट्रोजन डाईऑक्साइड कई तरह की श्वसन समस्याओं और हृदय रोग का कारक बनता है।

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शोध में कई पुरानी बीमारियों की चर्चा

उदाहरण के तौर पर शोधकर्ताओं ने बताया कि कोई व्यक्ति जो कि 1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर वाले कम प्रदूषित क्षेत्र में रहता है तो उसकी तुलना में जो व्यक्ति 2.5 पीएम के हाई लेवल वायु प्रदूषण वाले इलाके में कई दशक से रह रहा है, उसे कोरोना होने पर उसकी मौत की संभावना 15% बढ़ जाती है।

इस रिसर्च में हर इलाके की पॉपुलेशन साइज, वहां मौजूद हॉस्पिटल बेड, उस क्षेत्र में कोरोना के लिए गए टेस्ट की संख्या , वहां की जलवायु और तमाम सोशियो इकोनॉमिक फैक्टर्स जैसे मोटापा और स्मोकिंग करने जैसे तथ्यों को भी शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में शामिल किया है। इन सब के आधार पर यह बात सामने आई है कि वायुमंडल में मौजूद प्रदूषण के महीन कणों के संपर्क में लंबे समय तक रहने वालों के मामले में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा काफी ज्यादा है।

कोरोना के मामले में है 20 गुना खतरनाक

पूरी रिसर्च कहती है कि हाई लेवल वाले महीन वायु प्रदूषण के सम्प र्क में लंबे समय तक रहने के फैक्टरर में थोड़ी सी वृद्धि कोरोना से मौत के प्रतिशत में जबरदस्त इजाफा करती है। यह वृद्धि सामान्यत मृत्यु की तुलना में 20 गुना तक अधिक हो सकती है।

बता दें कि रिसर्च में में तो भी तथ्य सामने आए हैं, वो 2.5 महीन पार्टिकल्स वाले वायु प्रदूषण और कोरोना से होने वाली मौतों के संदर्भ में दिल की पुरानी बीमारी और सांस की बीमारियों को ध्यान में रखकर निकाले गए हैं।

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