इस मंदिर में टूटेगी 500 साल पुरानी परम्परा, तंत्र और अघोर विद्या का है सबसे बड़ा केंद्र

अंबुवाची मेला कामाख्या मंदिर का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में माता रजस्वला होती हैं। हर साल 22 से 25 जून तक इसके लिए मंदिर बंद रखा जाता है। 26 जून को शुद्धिकरण के बाद दर्शन के लिए खोला जाता है।

Update: 2020-06-13 05:55 GMT

गुवाहाटी: अंबुवाची मेला कामाख्या मंदिर का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में माता रजस्वला होती हैं। हर साल 22 से 25 जून तक इसके लिए मंदिर बंद रखा जाता है। 26 जून को शुद्धिकरण के बाद दर्शन के लिए खोला जाता है। अब खबर आ रही है।

लॉकडाउन के कारण असम के शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर का प्रसिद्ध अंबुवाची मेला 500 सालों में पहली बार इस साल नहीं लगेगा।

इतना ही नहीं पहली बार मंदिर के सबसे बड़े पर्व में कोई बाहरी साधक मौजूद नहीं रहेगा।

आपको बता दें कि 22 से 26 जून के बीच लगने वाले इस मेले में दुनियाभर से तंत्र साधक, नागा साधु, अघोरी, तांत्रिक और शक्ति साधक एक जगह एकत्र होते हैं। गुवाहाटी प्रशासन ने मंदिर के आसपास मौजूद होटलों, धर्मशालाओं और गेस्ट हाउस को भी हिदायत दी है कि फिलहाल वे कोई बुकिंग न लें।

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अभी तक जो जानकारी निकलकर सामने आ रही है उसके अनुसार कोरोना वायरस के चलते इस बार इस पर्व की परंपराओं को मंदिर परिसर में चंद लोगों की उपस्थिति में पूरा किया जाएगा।

गौरतलब है कि अंबुवाची मेले के दौरान हर साल यहां 10 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ जमा होती हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी मोहित सरमा के मुताबिक परंपराएं वैसी ही होंगी जैसी हर बार होती हैं, बस मेला नहीं लगेगा और बाहरी लोगों का प्रवेश नहीं हो सकेगा।

मंदिर बंद रहता है, लेकिन बाहर तंत्र और अघोर क्रिया करने वाले साधकों के लिए ये समय काफी महत्वपूर्ण होता है। इस समय में वे अपनी साधनाएं करते हैं।

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प्रसाद स्वरूप दिया जाता है सिंदूर से भीगा हुआ कपड़ा

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि 26 जून को जब मंदिर खुलता है तो प्रसाद के रुप में सिंदूर से भीगा हुआ वही कपड़ा यहां दिया जाता है जो देवी के रजस्वला होने के दौरान उपयोग किया गया था।

मान्यता है कि यहां इस दौरान पराशक्तियां जागृत रहती हैं और दुर्लभ तंत्र सिद्धियों की प्राप्ति आसानी से होती है। अंबुवाची उत्सव दुनियाभर के तंत्र और अघोरपंथ के साधकों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। कामाख्या मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। कपड़े में लगा सिंदूर बहुत ही सिद्ध और चमत्कारी माना जाता है।

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