ऐसे हुआ अमृतसर रोशन, 105 साल पहले जला 32 वाट का बल्ब
गुरु नगरी अमृतसर न केवल भक्ति और शक्ति का अनुठा संगम स्वर्ण मंदिर और जलियां वाला बाग के लिए जानी जाती है। बल्कि ब्रिटिश इंजीनियरिंग के कई ऐसे नमूने अमृतसर में आज भी मौजूद हैं जिन्हें देख कर हर कोई दंग रह जाता है।
दुर्गेश पाथ सारथी
अमृतस: गुरु नगरी अमृतसर न केवल भक्ति और शक्ति का अनुठा संगम स्वर्ण मंदिर और जलियां वाला बाग के लिए जानी जाती है। बल्कि ब्रिटिश इंजीनियरिंग के कई ऐसे नमूने अमृतसर में आज भी मौजूद हैं जिन्हें देख कर हर कोई दंग रह जाता है। चाहे वह चालीस खुह में स्टीम इंजन के जरिए शहर में वाटर सप्लाई का नमूना हो या तारांवाला पुल के पास अपरबारी दोआब नहर पर बनाया गया बिजली उत्पादन केंद्र।
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ये सभी अपने निर्माण के करीब सौ साल बाद भी वक्त के थपेड़ों को सहते हुए अपना वजूद कायम रखे हुए हैं। बेशक आज बढ़ती आबाद और आधुनिक तकनी के कारण उनकी उपयोगिता खत्म हो चुकी है लेकिन, ये निर्माण आज भी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
अंग्रेजों ने 1915 में बनाया बिजली उत्पादन केंद्र
अमृतसर-जालंधर जीटी रोड के साथ बहने वाली अपरबारी दोआब नहर पर अंग्रेजों ने आज से करीब 105 साल पहले 1915 को पनबिजली संयंत्र की स्थापना की थी। इसे घरांट भी कहते थे। यहां से बिजली की तारें शहर के मॉल रोड स्थित डीसी आवास तक बिछाई गई थी। मॉल रोड पर 1863 में करीब ढाई एकड़ में बना यह बंगला उस समय वॉल्ड सिटी के बाहर बना पहला आलिशान बंगला था। यह उस समय डीसी आवास भी होता था। अमृतसर में बने इस पनबिजली संयंत्र से उत्पादित बिजली से 12 दिसंबर 1915 को तत्कालीन डीसी सीएम किंग का यह सरकारी बंगला रौशन हुआ था। इसी के साथ अमृतसर में बिजली बल्ब जगमगाने लगे थे।
डीसी आवास में पहली बार लगा 32 वॉट का बल्ब
अंग्रेजों की गजट के अनुसार तारांवाला पुल से बिजली उत्पादन शुरू होते ही पहली बार डीसी आवास में 32 वॉट का बल्ब लगाया गया। यह बल्ब म्यूनिसिपल इलेक्ट्रीसिटी डिपार्टमेंट अमृतसर के चीफ इंजीनियर ने 32 वॉट का एक बल्ब, 110-110 वॉट के चार सीलिंग फैन और नौ प्लग टेबल लैंप लगाया था। इसके अलावा डीसी आवास पर बने कैंप कार्यालय के 500 वॉट के दो प्लग लगाए गए थे।
प्रतियूनिट 50 पैसे होता था बिजली का बिल
अमृतसर स्थित बिजली विभाग के रिकॉड के अनुसार उस समय बिजली का रेट प्रतियूनिट 50 पैसे होता था। रिकॉड के अनुसार उसक डीसी आवास का पहला बिल 13.50 आया था। बिजली विभाग के अधिकारियों के मुताबिक अंग्रेजों के जमाने में किसी किसी के घर में बिजली का कनेक्शन होता था। ये रायजादा या राय बहादूर कि उपाधि से नवाजे गए लोग होते थे। वैसे आम लोगों के घरों में मिट्टी तेल के लैंप ही होते थे।
1935 में बंद कर दिया गया उत्पादन
अपने निर्माण (1915) के करीब 20 साल तक अमृतसर शहर को रौशन करने वाले इस बिजली संयंत्र को अंग्रेजों ने 1935 में बंद कर दिया था। बताया जाता है कि अमृतसर म्युनिसिपल कमेटी फर्स्टक्लास म्युनिसिपल कमेटी थी। क्योंकि कि अंग्रेज अधिकारी लाहौर के बाद अमृतसर में ही बैठते थे। फर्स्टक्लास म्युनिसिपल कमेटी होने के कारण अंग्रेजों में अमृतसर में बिजली, पानी, चिकित्सा, रेल, डाक, पुलिस, फौज और कूड़ा निस्तारण का बेहतरीन प्रबंध किया था।
आज भी मौजूद है अंग्रेजों का बनाया बांध
अपरबारी दोआब नहर पर सन 1915 बिजली उत्पादन के लिए बनया गया बांध आज भी मौजूद है। इसी बांध के सहारे नहर का पानी रोक कर उसे बिजली उत्पादन के लिए बनाए गए संयंत्र में एक चैनल के द्वारा प्रोवाईड करवाया जाता था। यह पानी तीब्र गति से चैलन में गिरता था जिससे बिजली तैयार कर अमृतसर शहर में सप्लाई की जाती थी।
छह चैनलों से होकर गुजरता था बांध से छोड़ा गया पानी
बिजली उत्पान के लिए अपर बारी दोआब नहर पर बनाए गए बांध से छोड़ा गया पानी छह चैनलों से हो कर पनबिजली संयंत्र तक पहुंचता था। एक बड़े से हॉल में लगी छह मशीनें जिन्हें स्थानीय भाषा में घरांट कहा जाता है से बिजली तैयार की जाती है। यह अमृतसर शहर का मुख्य बिजली उत्पादन केंद्र था। यहां से तैकर की हुई बिजली शहर के मुख्य गेट हाल गेट के पास स्थित बिजली घर पहुंचता था। और यहां से शहर के बिभिन्न अंग्रेज अधिकारियों के बंगलों, म्युनिसिपल कारोपोरेशन, डिसी ऑफिस सहित अन्य सरकारी कार्यालयों और रायजादों के घरों तक सप्लाई की जाती थी।
छह घराटों से तैयार होती थी बिजली
एक बड़े से बिजली घर में छह घराट लगे हैं जो किसी जमाने में बिजली उत्पादन के काम आते थे। बताया जाता है कि चैनलों और मशीनों से हो कर गुजरने वाले नहरी पानी से ये घराट बिजली तैयार करते । लेकिन आज इसमें लगी मशीनरियां तो गायब हो चुकी पर पशीनें आज भी अपने वैभव की कहानी सुना रही हैं।
1.45 लाख रुपये आया था खर्च
अमृसर के इतिहास पर रिसर्च कर चुके सुरेंद्र कोछड़ कहते हैं कि यह ब्रिटिश इंजीनियरिंग का नायब नमूना है। ब्रिटिश इंडिया के समय के दस्तावेजों के मुताबिक अपर बारी दोआब नहर पर बने इस पनबिजली परियोजना पर अंग्रेज सरकार ने एक लाख 45 हजार रुपये खर्च किए थे। इस रकम से नहर पर बांध बिजली तैयार करने के लिए चैलन, मशीनें और निर्माण करवाए गए थे। इसके अलावा बिजली खंभों पर तारों पर अलग से खर्च किया गया था।
इंजीनियरों और कर्मियों के वेतन का खर्च देती थी कमेटी
कोछड़ के मुताबिक इस बिजली घर के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन सहित अन्य खर्चों का भुगतान कमेटी करती थी। दस्तावेजों के अनुसार अंग्रेस सरकार ने लाहौर (अब पाकिस्तान) में एक कमेटी बनाई थी। इसमें अमृतसर और लाहौर के रइसजादों को सदस्य बनाया गया था। जबकि इसका अध्यक्ष अंग्रेज अधिकारी होता था। इसी कमेटी सदस्य इस पनबिजली संयंत्र के लिए फंड मुहैया करवाते थे।
अमृतसर पास्ट एंड प्रजेंट में है उल्लेख
नगर निगम के पूर्व संयुक्त कमिश्नर डॉ. डीपी गुप्ता कहते हैं कि इस बिजली घर का उल्लेख 'अमृतसर पास्ट एंड प्रजेंट' नाम की पुस्तक में है। डॉ: गुप्ता के मुताबिक अंग्रेजों ने अमृतसर में बिजली घर के अलावा वाटर सप्लाई का भी अच्छा प्रबंध किया था। जिसे लोग चालीस खुह के नाम से जानते हैं। वे कहते हैं वैसो अंग्रेजों ने अमृतसर में कई उल्लेखनीय कार्य किया था। इन कार्यों में चालीस खुह और पनबिजली संयंत्र ब्रिटिश इंजीनियरिंग का नायाब नमुना है।
इसलिए पड़ा तारांवाला पुल का नाम
स्थानीय लोगों के अनुसार अपरब बारी दोआब नहर पर बांध बना कर बिजली तैयार करने के साथ ही अंग्रेजों के समय में यहां तारों का जाल बिछा हुआ था। इस कारण स्थानीय लोग इसे अपर बारी की जगह तारांवाल पुल नहर के नाम से जानने लगे। जाअ भी यह स्थान इसी नाम से मशहूर है।
झाडि़यों में ढंकी विरासत
अपने सौ साल के स्वर्णिम इतिहास को समेटे यह तारांवाला पनबिजली संयंत्र झाडि़यों में ढंका हुआ है। बेशक आज यह काम का नहीं रहा। इसका वजूद आज की पीढ़ी को यह बताने के लिए अति महत्वपूर्ण है अमृतसर में पहली बार बिजली की सप्लाई कब शुरू हुई। अंग्रेजों का बनाया यह संयंत्र आज भी ज्यों का त्यों है। बांध, चैलन, मशीनरी, पॉवरहाउस सहित वह सबकुछ जो बिजली उत्पादन के काम आता था।
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लाखों खर्च करने के बाजूद मिली उपक्षा
गुरु नगरी अमृतसर में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से साल 2015 में सरकार ने लाखों रुपये खर्च कर इसकी मरम्त करवाई थी। ताकि यहां तक पर्यटकों को ला कर गुरु नगरी का इतिहास बाताया जाय। लेकिन विडंबना यह है कि लाखों करोड़ो खर्च करने के बावजूद आज यह ऐतिहासिक स्थल पूरी तरह से झाडि़यों ढक गया है। यहां तक यह नशेडि़यों और जुआरियों का पनाहगाह बन चुका है। लेकिन इस तरफ न तो अमृतसर जिला प्रशासन ध्यान दे रहा और ना ही नगर निगम। यहां तक कि पंजाब पर्यटन विभाग भी आखें मूंदे बैठा है।
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