अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: दलितों को लुभाने में जुटी भाजपा

Update: 2017-07-28 10:42 GMT

कपिल भट्ट

जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनावों में अभी एक साल बाकी हैं, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का तीन दिन का जयपुर दौरा इसी कवायद के संकेत दे गया। इन तीन दिनों में शाह ने न केवल सरकार से लेकर संगठन तक को निचले स्तर तक मथ डाला बल्कि निचले स्तर तक के कार्यकताओं तक से सीधा संवाद करने के साथ ही आने वाले चुनावों के मद्देनजर पूरा फीड बैक भी लिया।

शाह ने राजस्थान के प्रमुख साधु-संतों से भी संवाद कर जहां पार्टी की परंपरागत हिन्दुत्ववादी छवि को उभारने की कवायद की तो वहीं अपने दौरे के अंतिम दिन दलित कार्यकर्ता के घर पर दोपहर का भोजन करके पार्टी की प्रो-दलित छवि को सामने लाने की कोशिश की।

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शाह बोले, राजे के नेतृत्व में ही लड़ेगी भाजपा

वैसे तो अमित शाह के इस दौरे में हर स्तर पर मंथन किया गया, लेकिन पार्टी का मुख्य जोर संगठन को ताकतवर बनाने के साथ ही पार्टी की पकड़ को समाज की लाइन में अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचाने पर रहा। पिछले चार सालों में वसुंधरा राजे सरकार की अधिकांश योजनाओं का फोकस भी इसी वर्ग पर रहा है।

शाह ने पूरे भरोसे के साथ कहा भी कि उनका लक्ष्य बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत बनाने के साथ ही चार महीने में राजस्थान भाजपा को अजेय बनाना है। शाह ने राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ कर दिया कि भाजपा राजस्थान में अगला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही लड़ेगी।

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पिछड़ों पर भी पार्टी की नजर

राजस्थान में भाजपा दलित-पिछड़ा वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने की मुहिम में जुटी हुई है। शुरुआत में ब्राह्मणों-बनियों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा ओबीसी की राजनीति से होते हुए अब समाज के पिछड़े और कमजोर तबके की ओर झुकती दिख रही है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजस्थान की जनता को संदेश दिया है कि उनकी सरकार सभी जातियों की है। राज्य में एससी वोटर सबसे ज्यादा 17 फीसदी हैं।

पिछले विधानसभा चुनावों को देखें तो एससी वर्ग ने भाजपा की झोली जिस तरह से भरी वैसा इस पार्टी के इतिहास में कभी नहीं हुआ। एससी के लिए आरक्षित 34 में से 31 सीटें भाजपा को मिलीं थीं। लिहाजा पार्टी पर एक नैतिक दबाव भी था कि इस वर्ग को ज्यादा तरजीह दी जाए।

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किरोड़ी की काट खोजने की कोशिश

एसटी की बात करें तो इस वर्ग के लिए आरक्षित 25 सीटों में सबसे ज्यादा 17 सीटें मेवाड़ और वागड़ अंचल में हैं। यह अंचल राजे को शुरू से ही प्रिय रहा है। राजे को सत्ता में लाने में इस क्षेत्र की भूमिका अहम थी। लिहाजा राजे ने इस अंचल से कैबिनेट में मंत्री नंदलाल मीणा को बरकरार रखते हुए उनका प्रतिनिधित्व बढ़ा दिया था। पूर्वी राजस्थान में मीणाओं का प्रभुत्व है।

यहां आठ आरक्षित सीटें हैं जिनमें भाजपा के पास मात्र तीन सीटें हैं। यह इलाका भाजपा के बागी और अब राजपा नेता किरोड़ीलाल मीणा से प्रभावित रहा है। मीणा परंपरागत रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं। लिहाजा किरोड़ी की बगावत से भाजपा पर कोई असर नहीं पड़ सका। लेकिन भाजपा लगातार किरोड़ी की काट को ढूंढने का जतन करती आ रही है। किरोड़ी लाल हाल ही में साफ कर चुके हैं कि वसुंधरा के होते हुए भाजपा में उनकी वापसी संभव नहीं है।

वसुंधरा राजे राज्य में भाजपा की मजबूत नेता मानी जाती हैं और उन्होंने दो दशकों से भी ज्यादा समय तक पार्टी की परंपरागत लाइन को आगे बढ़ाया है। उन्होंने राज्य में पार्टी के कद्दावर नेता रहे भैरोंसिंह शेखावत की कमी नहीं महसूस होने दी। 1980 में भाजपा बनने से सन 2002 सितंबर में राजे के राजस्थान भाजपा की कमान संभालने तक भाजपा ब्राह्मण व बनियों की शहरी पार्टी मानी जाती थी, लेकिन वसुंधरा राजे ने इसे ओबीसी वर्ग और गांव तक पहुंचाया।

2003 के विधानसभा चुनावों में भाजपा 120 सीटों के साथ पहली बार पूर्ण बहुमत में आई। अब वसुंधरा राजे पार्टी की एप्रोच को और आगे बढ़ाते हुए दलित और पिछड़ों को आगे लाने की कवायद करती नजर आ रही हैं। वैसे पिछले चुनावों में उन्हें मिले इस वर्ग के समर्थन का कर्ज उतारने का यह उपक्रम भी है।

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