Atal Bihari Vajpayee News: लंबे समय तक देश की सियासत में छाए रहे अटल, विपक्ष के नेता भी करते थे सम्मान
Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: 2018 में आज ही के दिन लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ था। अटल को गठबंधन की राजनीति का महायोद्धा और शिल्पकार माना जाता रहा है।
Atal Bihari Vajpayee Death Anniversary: भारतीय जनता पार्टी को आज देश में सबसे ताकतवर माना जाता है और इस पार्टी को शक्तिशाली बनाने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। देश की सियासत में लंबे समय तक छाए रहने वाले वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। 2018 में आज ही के दिन लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ था। अटल को गठबंधन की राजनीति का महायोद्धा और शिल्पकार माना जाता रहा है। उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के बैनर तले 24 दलों को लाने में कामयाबी हासिल की थी और उन्होंने पांच साल तक पूरी मजबूती के साथ गठबंधन की सरकार चलाई।
अटल में इतनी ढेर सारी खूबियां थीं कि विपक्षी दलों के नेता भी उनका खूब सम्मान किया करते थे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर आज तक हर प्रधानमंत्री ने अटल बिहारी वाजपेयी को पूरा सम्मान दिया। संसद में अटल के भाषणों को आज भी याद किया जाता है। संसद में उनके भाषणों को उनकी पार्टी के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे दलों के लोग भी काफी दिलचस्पी से सुना करते थे। देश की सियासत में शायद ही कोई दूसरा ऐसा नेता हुआ जिसे सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर से इतना सम्मान हासिल हुआ हो।
भाजपा को बुलंदी पर पहुंचाने में बड़ी भूमिका
भारतीय जनता पार्टी को सशक्त बनाने में अटल की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सिर्फ दो सांसद चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे। उस समय अटल पार्टी के अध्यक्ष थे और इस हार ने उन्हें शर्मसार कर दिया था। वे ग्वालियर से खुद भी पराजित हो गए थे। 1984 की हार के बाद उन्होंने ग्वालियर से कभी चुनाव नहीं लड़ा। 1991 के चुनाव में उन्होंने मध्य प्रदेश की विदिशा सीट और लखनऊ सीट से किस्मत आजमाई थी और उन्हें दोनों सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि बाद में उन्होंने विदिशा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने लखनऊ संसदीय सीट से लगातार पांच बार चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की।
1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा 1989 के चुनाव में 85 और 1991 के चुनाव में 120 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 161 और 1998 के चुनाव में 182 सीटों पर पहुंच गई। भाजपा को मजबूत बनाने में अटल और आडवाणी की सबसे बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। भाजपा के मजबूत होने के बाद कांग्रेस की ताकत में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
नेहरू ने पहले ही कर दी थी भविष्यवाणी
देश की सियासत में अटल को हमेशा ऐसा नेता माना जाता रहा जिनकी व्यापक स्वीकार्यता थी। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्री अटल के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित रहे। प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू के कार्यकाल के दौरान जब अटल पहली बार लोकसभा सदस्य बनकर संसद पहुंचे तो उनका भाषण सुनकर नेहरू जी काफी प्रभावित हुए थे।
अटल के गहरे ज्ञान और वक्तृत्व कला से प्रभावित होकर नेहरू जी ने उसी समय कहा था कि मैं किसी नौजवान का नहीं बल्कि भारत के भावी प्रधानमंत्री का भाषण सुन रहा हूं। नेहरू जी की यह भविष्यवाणी आज भी याद की जाती है क्योंकि उन्होंने संसद में अटल के पहले भाषण के दौरान ही उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह पहचान लिया था। बाद के दिनों में नेहरू जी की यह भविष्यवाणी पूरी तरह सच साबित हुई और वाजपेयी ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में बड़ी भूमिका निभाई।
पीएम के रूप में तीन बार संभाली कमान
देश की राजनीति पर लंबे समय तक छाए रहने वाले वाजपेयी 1996 से 1999 के बीच तीन बार देश के प्रधानमंत्री चुने गए। वे पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने मगर उनकी सरकार सिर्फ 13 दिनों तक ही रह पाई। इस दौरान इस्तीफा देने से पूर्व अटल का भाषण आज भी याद किया जाता है। 1998 में वे दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए मगर उनकी सरकार 13 महीने तक ही चल सकी। 1999 में वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस बार उन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी के बारे में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वे पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।
इस कार्यकाल के दौरान वाजपेयी ने सहयोगी दलों के साथ बेहतर सामंजस्य बनाए रखा। देश की सियासत में वाजपेयी अकेले ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष में भी काफी सम्मान हासिल था। वे जब संसद में बोला करते थे तो सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष के लोग भी पूरे सम्मान के साथ उनकी बातों को सुना करते थे।
सबको साथ लेकर चलने की क्षमता
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के अंदर सबको साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता थी। यही कारण था कि वे 24 दलों को एक छतरी के नीचे लाने में कामयाब हुए। वाजपेयी ने देश के 24 दलों को एक मंच पर लाकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन किया था। दिल्ली में गैर कांग्रेसी सरकार के गठन की दिशा में पहला कदम बढ़ाते हुए मई 1998 में एनडीए का गठन किया गया था। हालांकि साल भर बाद ही गठबंधन को करारा झटका लगा था जब तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने समर्थन वापस लेकर अटल सरकार को गिरा दिया था।
बाद में 1999 में अटल कुछ नए दलों को भी साथ जोड़ने में कामयाब हुए।अटल की पहल पर बने बने इस गठबंधन में 24 दल शामिल थे। 24 दलों को साथ लेकर चलना हंसी खेल नहीं था मगर अटल के मजबूत नेतृत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि 24 दलों को साथ लेकर वे पांच साल तक सरकार चलाने में कामयाब रहे।
उनके कार्यकाल के दौरान गठबंधन में शामिल दलों में किसी भी प्रकार की नाराजगी नहीं पैदा हुई और सभी दलों ने अटल को भरपूर समर्थन दिया। हालांकि उसके बाद 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में अटल की अगुवाई में एनडीए को हार का मुंह देखना पड़ा। वैसे इस हार पर उस समय काफी हैरानी भी जताई गई थी।
विपक्षी दलों के नेता भी हमेशा रहे मुरीद
प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के रूप में अटल हमेशा अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे। वे जब संसद में बोला करते थे तो विपक्षी दलों के नेता भी मंत्रमुग्ध होकर उनका भाषण सुना करते थे। अटल के तर्कों का दूसरे दलों के नेताओं के पास कोई जवाब नहीं होता था। उनकी काबिलियत, भाषा, सियासी सूझबूझ और वक्तृत्व कला को विपक्षी दलों के नेता भी सलाम किया करते थे।
1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने विपक्षी दल का नेता होने के बावजूद अटल को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग भेजे गए प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाया था। पाकिस्तान ने विरोधी दल के नेता को जेनेवा भेजने पर हैरानी भी जताई थी मगर अटल का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे सभी को प्रिय थे। जेनेवा में भी अटल ने भारत का पक्ष पूरी दमदारी से दुनिया के सामने रखा था।