Beating Retreat 2020 : गणतंत्र दिवस का 4 दिवसीय कार्यक्रम समाप्त

रिहर्सल परेड से लेकर बीटिंग द रिट्रीट तक चलने वाले गणतंत्र दिवस समारोह का कार्यक्रम आज समाप्त हो गया। हर साल 19 जनवरी को गणतंत्र दिवस के पर्व के आखिरी...

Update:2020-01-29 17:23 IST

नई दिल्ली। रिहर्सल परेड से लेकर बीटिंग द रिट्रीट तक चलने वाले गणतंत्र दिवस समारोह का कार्यक्रम आज समाप्त हो गया। हर साल 19 जनवरी को गणतंत्र दिवस के पर्व के आखिरी दिन के रूप में मनाया जाता है जिसे बीटिंग द रिट्रीट के नाम से जाना जाता है। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन, साउथ ब्लॉक और नॉर्थ ब्लॉक को रंगी बिरंगी रोशनी से सजाया गया।

बीटिंग द रिट्रीट सेना की बैरक में वापसी का प्रतीक है

यह कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत प्रमुख गणमान्य लोगों की मौजूदगी में आयोजित किया गया। इस मौके पर तीनों सेनाओं के बैंड अपनी विशेष धुनों के साथ मार्च करते हैं और आपसी तालमेल की मिसाल पेश करते हैं। बीटिंग द रिट्रीट सेना की बैरक में वापसी का प्रतीक है।

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राजतंत्र में यह कार्यक्रम सूर्यास्त के वक्त युद्ध विराम या समाप्ति के मौके पर आयोजित किया जाता था। इस कार्यक्रम में सेना के प्रमुख वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं। बैंड टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले ग्रुप कैप्टन राष्ट्रपति के पास जाकर सेना को वापस जाने की अनुमति मांगता है।

बीटिंग द रिट्रीट में सेना बैंड द्वारा कई प्रकार की धुने बजाई जाती हैं। इन धुनों में से प्रमुख धुन सारे जहां से अच्छा भी है। इस बार बीटिंग द रिट्रीट का कार्यक्रम इसी धुन के साथ समाप्त हुआ।

 

आप को बता दें कि हर वर्ष गणतंत्र दिवस के बाद 29 जनवरी की शाम को 'बीटिंग द रिट्रीट' (Beating The Retreat) सेरेमनी का आयोजन किया जाता है। रायसीना रोड पर राष्ट्रपति भवन के सामने इसका प्रदर्शन किया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले गणतंत्र दिवस समारोह का समापन बीटिंग रिट्रीट के साथ ही होता है।

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26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह की तरह यह कार्यक्रम भी देखने लायक होता है। इसके लिए राष्ट्रपति भवन, विजय चौक, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक बेहद सुंदर रोशनी के साथ सजाया जाता है।

क्यों और क्या होती है बीटिंग रिट्रीट?

'बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी' सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। दुनियाभर में बीटिंग रिट्रीट की परंपरा रही है। लड़ाई के दौरान सेनाएं सूर्यास्त होने पर हथियार रखकर अपने कैंप में जाती थीं, तब एक संगीतमय समारोह होता था, इसे बीटिंग रिट्रीट कहा जाता है।

भारत में बीटिंग रिट्रीट की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। तब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट ने इस सेरेमनी को सेनाओं के बैंड्स के डिस्प्ले के साथ पूरा किया था। समारोह में राष्ट्रपति बतौर चीफ गेस्ट शामिल होते हैं।

तीनों सेनाओं के बैंड मिलकर पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं

विजय चौक पर राष्ट्रपति के आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है। इसी दौरान राष्ट्रगान जन गण मन होता है। तिरंगा फहराया जाता है। थल सेना, वायु सेना और नौसेना, तीनों के बैंड मिलकर पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं।

बैंड वादन के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है। इस दौरान बैंड मास्‍टर राष्‍ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की इजाजत मांगते हैं। इसका मतलब ये होता है कि 26 जनवरी का समारोह पूरा हो गया है और बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन "सारे जहां से अच्‍छा" बजाते हैं।

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