मिसाल बना ये शख्स: मांगता रहा भीख, फिर ऐसे की लोगों की मदद
दुनिया के बड़े-बड़े रईसों को पीछा छोड़ने वाले 64 बरस के दुबला पतला शरीर, सफेद उलझी दाढ़ी, माथे पर तिलक, सिर पर केसरिया कपड़ा पहने पांडियां बुधवार को मदुरै के जिलाधिकारी कार्यालय में दस हजार रूपए जमा करने पहुंचे ।
अमीर- गरीब,छोटा - बड़ा,ये वो शब्द है जिसको लोग जानते तो है ,उसका उपयोग भी करते है लेकिन अफसोस की बात यह है कि सही तरह से उसका मतलब नहीं जानते।लोग आसानी से भेदभाव कर लेते है कि वो गरीब इंसान है उसके पास कुछ नहीं देने को या वो हमारे बराबर का नहीं है।लेकिन वो ये नहीं जानते कि जिस मिट्टी के तुम बने हो उसी मिट्टी का वो भी है तो फिर आखिर अलग क्या हुआ।इंसान कभी भी पैसों से अमीर गरीब नहीं होता इंसान अपनी सोच और अपने स्वभाव से अमीर गरीब होता है।
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इंसान को अपने दिल से अमीर होना चाहिए
भले ही इंसान के पास पैसा क्यूं ना हो लेकिन अगर इसका दिल अच्छा है तो उससे ज्यादा अमीर इस दुनिया में कोई नहीं होगा।इंसान को अपने दिल से अमीर होना चाहिए।ऐसा ही कुछ हमको तमिलनाडु में देखने को मिला।इंसानियत आखिर क्या है ये इस इंसान ने हमें दिखाई। तमिलनाडु में एम पुल पांडियां नाम के एक व्यक्ति भीख मांगते है और भीख से मिलने वाले पैसों को पिछले कई बरस से दान करते चले आ रहे हैं। पहले वह स्कूलों का बुनियादी ढांचा बेहतर बनाने के लिए अपनी कमाई दान कर दिया करते थे और अब जो कमाते हैं, उसे कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए दान कर देते हैं।
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छठी बार मुख्यमंत्री राहत कोष में राशि दान की
दुनिया के बड़े-बड़े रईसों को पीछा छोड़ने वाले 64 बरस के दुबला पतला शरीर, सफेद उलझी दाढ़ी, माथे पर तिलक, सिर पर केसरिया कपड़ा पहने पांडियां बुधवार को मदुरै के जिलाधिकारी कार्यालय में दस हजार रूपए जमा करने पहुंचे । अपना पूरा जीवन गरीबी में बिताने वाले पांडियां ने मई के बाद से बीते बुधवार को छठी बार मुख्यमंत्री राहत कोष में राशि दान की है। यह पैसा उन्होंने भीख मांगकर जमा किया और उसे खुद पर खर्च करने की बजाय दान देना ज्यादा जरूरी समझा।
कोविड-19 के इलाज के लिए इसकी जरूरत
उन्होंने बताया कि, ‘जब स्कूल बंद हो गए तो इन स्कूलों के अधिकारियों ने कहा कि अब महामारी के पीड़ितों को इस पैसे की ज्यादा जरूरत है तो मैंने यह पैसा उन लोगों के लिए देने का फैसला किया, जिन्हें कोविड-19 के इलाज के लिए इसकी जरूरत है. मुझे दूसरों को ज्यादा से ज्यादा देकर बहुत खुशी मिलती है.’ पांडियां का कोई घरबार नहीं है. वह मुख्यत: दक्षिण तमिलनाडु के तीन जिलों तुथुकुडी, तंजावुर और पुडुकोट्टई में घूमते रहते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले कई वर्ष से इन इलाकों के सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए अपनी ‘कमाई’ दान करते चले आ रहे हैं लेकिन महामारी फैलने के बाद उन्होंने पीड़ितों के इलाज में मदद के लिए मई के बाद से यह पैसा मदुरै के जिलाधिकारी कार्यालय में जमा करवाना शुरू कर दिया।
लॉकडाउन शुरू होने से करीब दो सप्ताह पहले मदुरै आए थे और तब से जिले में ही घूम रहे हैं. इस दौरान लोगों से कुछ पैसा देने का आग्रह करते हैं और कुछ भी मिलने पर उसे बड़े जतन से सहेज लेते हैं. रात होने पर मंदिरों के बाहर सो जाते हैं और लोगों से मिला खाना खाकर पेट भर लेते हैं।
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