Jagat Prakash Nadda: नड्डा को दिखाना होगा बड़ा चमत्कार, कई राज्यों में बड़ी चुनौतियों का संकट
Jagat Prakash Nadda: बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल बढ़ाया गया है। इससे साफ हो गया है कि इस साल विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में नड्डा की अगुवाई में लड़े जाएंगे।
Jagat Prakash Nadda: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल अगले साल जून तक बढ़ा दिया गया है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान नड्डा कार्यकाल बढ़ाया जाना पहले ही तय माना जा रहा था। गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आज नड्डा का कार्यकाल बढ़ाए जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। इस मंजूरी के बाद नड्डा जून 2024 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे।
नड्डा का कार्यकाल बढ़ाए जाने से साफ हो गया है कि इस साल नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में नड्डा ही भाजपा की अगुवाई करेंगे। हालांकि नड्डा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का बड़ा फायदा मिलेगा मगर पार्टी की चुनावी नैया को पार लगाना बड़ी चुनौती माना जा रहा है। कई राज्यों में पार्टी आपसी गुटबाजी में उलझी हुई है और पार्टी नेताओं में मतभेद की बात उजागर होती रही है। ऐसे में पूरी पार्टी को एकजुट रखते हुए चुनावी जीत हासिल करना नड्डा के लिए आसान काम नहीं होगा।
विधानसभा चुनावों में करनी होगी मजबूत अगुवाई
इस साल देश के नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम शामिल हैं। इन राज्यों के अलावा इस साल के अंत तक जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है। इस तरह नड्डा को कुल मिलाकर 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव में पूरी मजबूती के साथ पार्टी की अगुवाई करनी है। इन चुनावों को सत्ता का सेमीफाइनल मुकाबला माना जा रहा है।
इनमें से कई राज्यों में पार्टी गुटबाजी और नेताओं की आपसी खींचतान में उलझी हुई है। राज्य इकाइयों में नेताओं की गुटबाजी की समस्या को सुलझाना आसान काम नहीं माना जा रहा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि नड्डा इस समस्या का समाधान कहां तक कर पाते हैं।
हिमाचल में लग चुका है बड़ा झटका
हाल में दो राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए कहीं खुशी कहीं गम वाली स्थिति रही। जहां एक ओर भाजपा गुजरात में ऐतिहासिक जीत हासिल करने में कामयाब रही, वहीं हिमाचल प्रदेश में पार्टी को बड़ा झटका भी सहना पड़ा है। हिमाचल प्रदेश के चुनाव में भाजपा नेतृत्व की ओर से पूरी ताकत लगाई गई थी मगर पार्टी को वांछित नतीजे नहीं मिल सके। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का गृह राज्य होने के बावजूद पार्टी को यहां पर हार का मुंह देखना पड़ा।
हालांकि यह भी सच्चाई है कि हिमाचल प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में एक फीसदी से भी कम वोटों का अंतर रहा मगर इस मामूली अंतर के कारण भी पार्टी कांग्रेस से 15 सीटों पर पिछड़ गई। कांग्रेस राज्य में 40 सीटें जीतने में कामयाब रही है जबकि भाजपा की सीटों का आंकड़ा 25 पर ही अटक गया।
हिमाचल प्रदेश की इस हार में भाजपा की राज्य इकाई में व्याप्त गुटबाजी को बड़ा कारण माना जा रहा है। राज्य में टिकट वितरण में भी गड़बड़ी की शिकायतें सामने आईं जिसकी वजह से तमाम सीटों पर बागी उम्मीदवार भाजपा की हार का कारण बने। नड्डा तमाम कोशिशों के बावजूद बागी उम्मीदवारों को मनाने में नाकाम साबित हुए।
भाजपा के लिए चिंता का विषय बने चार राज्य
जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उनमें चार राज्य भाजपा नेतृत्व के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा नेताओं के बीच गुटबाजी और मतभेद की खबरें सामने आती रही हैं। माना जा रहा है कि यदि पार्टी नेतृत्व इन चुनावी राज्यों में गुटबाजी खत्म करने में कामयाब नहीं रहा तो इन राज्यों का भी भाजपा के लिए हिमाचल प्रदेश जैसा ही हाल हो सकता है। मजे की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश की तरह इन चारों राज्यों में भी भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से ही होना है।
इनमें से दो राज्यों और राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं जबकि कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकारें काम कर रही हैं। जानकारों का मानना है कि यदि भाजपा समय रहते गुटबाजी खत्म करने में कामयाब नहीं रही तो इन राज्यों में भी पार्टी को हिमाचल जैसा झटका लग सकता है।
कर्नाटक में बोम्मई के खिलाफ नाराजगी
कर्नाटक दक्षिण भारत का अकेला ऐसा राज्य है जहां इस समय भाजपा की सरकार काम कर रही है। राज्य में बीएस येदियुरप्पा को भाजपा का सबसे वरिष्ठ और ताकतवर नेता माना जाता है मगर पार्टी नेतृत्व की ओर से येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। बोम्मई की राज्य भाजपा पर येदियुरप्पा जैसी मजबूत पकड़ नहीं मानी जाती।
बोम्मई राज्य भाजपा में गुटबाजी दूर कर पाने में अभी तक कामयाब नहीं हो सके हैं। इसके साथ ही वे पूरी मजबूती के साथ पार्टी की अगुवाई करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। बोम्मई सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लग रहे हैं। यही कारण है कि कर्नाटक में गुजरात जैसा फेरबदल किए जाने की बात कही जा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस राज्य में भाजपा को मजबूत चुनौती देने की कोशिश में जुटी हुई है। ऐसे में कर्नाटक का विधानसभा चुनाव नड्डा के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा।
राजस्थान में गुटबाजी की गंभीर समस्या
राजस्थान में कांग्रेस मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच विवाद से परेशान है तो भाजपा भी गुटबाजी की गंभीर समस्या से जूझ रही है। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों की ओर से काफी दिनों से उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने की मांग की जाती रही है। हालांकि पार्टी नेतृत्व अभी तक इस मांग की अनदेखी करता रहा है। दूसरी ओर राज्य में भाजपा मुखिया सतीश पूनिया का गुट पूरी तरह सक्रिय बना हुआ है। दोनों खेमों के बीच लंबे समय से जोर आजमाइश चल रही है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत भी अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक राजस्थान भाजपा में गुटबाजी खत्म नहीं हो सकी है। हालांकि यह भी सच्चाई है कि राजस्थान में कांग्रेस भी गुटबाजी की समस्या से जूझ रही है। राज्य कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के गुटों के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि नड्डा के लिए राजस्थान भाजपा में गुटबाजी की समस्या सुलझाना आसान नहीं होगा।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी बड़ी चुनौती
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा गुटबाजी की समस्या से जूझ रही है। मध्यप्रदेश में पार्टी नेताओं के बीच मतभेद पूर्व में कई मौकों पर उजागर हो चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस छोड़कर भाजपा में एंट्री के बाद राज्य भाजपा में अलग-अलग खेमे दिखाई दे रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटाए जाने की चर्चाएं भी बीच-बीच में सुनी जा रही हैं। इन चर्चाओं के बीच हाल में चौहान ने बयान दिया है कि यदि पार्टी नेतृत्व करें तो वे सामान्य कार्यकर्ता की तरह दरी बिछाने के लिए भी तैयार है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ भाजपा में भी गुटबाजी उजागर होती रही है। हालांकि राज्य भाजपा अध्यक्ष अरुण साव गुटबाजी की खबरों को नकारते हुए पूरी तरह एकजुटता का दावा करते हैं। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के बाद भाजपा के पास कोई मजबूत चेहरा भी नहीं रह गया है।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस का संगठन भी काफी मजबूत है। हाल में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मध्यप्रदेश में अच्छा जनसमर्थन हासिल हुआ था। इसी कारण जानकारों का मानना है कि यदि भाजपा नेतृत्व कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गुटबाजी की समस्या को सुलझाने में कामयाब नहीं रहा तो इन राज्यों में भी पार्टी को झटका लग सकता है।
चार राज्यों में लोकसभा की 93 सीटें
नड्डा के लिए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करना इसलिए भी जरूरी माना जा रहा है क्योंकि 2024 की बड़ी सियासी जंग से पहले इसे सेमीफाइनल मुकाबला माना जा रहा है। इन चुनावों के नतीजे 2024 की सियासी जंग पर बड़ा असर डालने वाले साबित होंगे। जिन राज्यों में भाजपा चुनौतियों में घिरी हुई है उन राज्यों में लोकसभा की 93 सीटें हैं।
मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं। छत्तीगढ़ में 11, राजस्थान में 25 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं। इन चारों राज्यों को मिलाकर 93 लोकसभा सीटें हैं। 2019 के चुनाव में इन चारों राज्यों में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की थी मगर यदि विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो मिशन 2024 के लिए पार्टी की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। इसलिए नड्डा को इन चारों राज्यों में अपने कुशल नेतृत्व का परिचय देना होगा।
सभी चुनावी राज्यों में जीत पर जोर
वैसे पार्टी अध्यक्ष के रूप में नड्डा का कार्यकाल पूरी तरह निर्विवाद रहा है। अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में वे भले ही पार्टी को जीत दिलाने में नाकाम साबित हुए हों मगर उनकी अगुवाई में पार्टी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा आदि कई राज्यों में जीत हासिल की है। यूपी की जीत को तो सियासी हलकों में काफी महत्वपूर्ण माना गया था क्योंकि भाजपा राजनीतिक नजरिए से अहम इस राज्य में दोबारा सत्ता में आने में कामयाब हुई थी।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान नड्डा ने सभी चुनावी राज्यों में जीत हासिल करने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि जहां हमारी सरकार है वहां पार्टी को मजबूत बनाना है और जहां सरकार नहीं है वहां पार्टी को और मजबूत बनाए जाने की जरूरत है। अब नड्डा को पार्टी ने अगले लोकसभा चुनाव तक बड़ी जिम्मेदारी दे दी है। अब यह देखने वाली बात होगी कि नड्डा इस जिम्मेदारी को पूरा करने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं।