बिहार में BJP को मिला बड़ा टॉनिक, पार्टी की नजर अब पश्चिम बंगाल और असम पर

पश्चिम बंगाल में भाजपा ने पूरी ताकत लगा रखी है पार्टी के रणनीतिकारों को बिहार के नतीजों ने उत्साहित कर दिया है। माना जा रहा है कि अब पार्टी का पूरा फोकस पश्चिम बंगाल पर होगा और अब पार्टी जोरदार ढंग से ममता सरकार के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंकेगी।

Update:2020-11-11 09:55 IST
बिहार में BJP को मिला बड़ा टॉनिक, पार्टी की नजर अब पश्चिम बंगाल और असम पर

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: बिहार चुनाव के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी को बड़ी ताकत दी है और माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने में बिहार के नतीजे काफी अहम साबित होंगे। सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा का जोरदार प्रदर्शन खासतौर पर पश्चिम बंगाल और असम के लिए बड़ा टॉनिक साबित होगा।

पश्चिम बंगाल में भाजपा ने पूरी ताकत लगा रखी है पार्टी के रणनीतिकारों को बिहार के नतीजों ने उत्साहित कर दिया है। माना जा रहा है कि अब पार्टी का पूरा फोकस पश्चिम बंगाल पर होगा और अब पार्टी जोरदार ढंग से ममता सरकार के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंकेगी।

मोदी को लेकर भाजपा की उम्मीदें कायम

बिहार चुनाव के नतीजों पर भाजपा की भावी रणनीति टिकी हुई थी क्योंकि बिहार के बाद अब पार्टी को पश्चिम बंगाल व असम समेत अगले साल होने वाले विभिन्न विधानसभा चुनावों के लिए जुटना है। पार्टी के रणनीतिकार बिहार नतीजों का इसलिए भी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे क्योंकि इन्हीं नतीजों से पार्टी का भावी रास्ता तय होना था। भाजपा बिहार के नतीजों को लेकर इसलिए भी उत्साहित है क्योंकि अब उसे भरोसा हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर लोगों की उम्मीदें और आशाएं अभी भी बरकरार हैं।

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बिहार में भाजपा समीकरण साधने में कामयाब

बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश के खिलाफ लोगों की नाराजगी दिखी थी मगर इसके बावजूद भाजपा के जोरदार प्रदर्शन के कारण एनडीए एक बार फिर बिहार में सरकार बनाने जा रहा है। भाजपा ने लोजपा के अलग होने के बावजूद एनडीए गठबंधन को मजबूत बनाने में कामयाबी हासिल की और इसके साथ ही पार्टी सामाजिक समीकरण साधने में भी कामयाब रही।

लोजपा के जाने पर वीआईपी को जोड़ा

हालांकि लोजपा के अलग होने से जेडीयू को कई सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और कुछ सीटों पर लोजपा ने भाजपा को भी झटका दिया मगर इसका बहुत ज्यादा फायदा विरोधी खेमे को नहीं मिल सका। भाजपा ने एनडीए गठबंधन में वीआईपी को जोड़ने में भी कामयाबी हासिल की है और इस चुनाव में वीआईपी को चार सीटों पर कामयाबी मिली है।

बिहार में बड़े भाई की भूमिका में भाजपा

बिहार के नतीजों से भाजपा इसलिए भी उत्साहित हैं क्योंकि अभी तक बिहार में भाजपा एनडीए में छोटे भाई की भूमिका में थी मगर इन नतीजों के बाद अब भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ गई है। इस बार के बिहार चुनाव में भाजपा 21 सीटों के फायदे के साथ 74 सीटें पाने में कामयाब रही है। दूसरी ओर जदयू 28 सीटों के नुकसान के साथ 43 सीटें ही जीत सकी है।

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बिहार में पार्टी देगी एकजुटता का संदेश

एनडीए गठबंधन को मजबूत बनाए रखने के लिए भाजपा नीतीश कुमार को भले ही मुख्यमंत्री बनाने जा रही है मगर इस बार नीतीश के हाथ पहले की तरह नहीं खुले रहेंगे। माना जा रहा है कि भाजपा उन पर हावी होगी। वैसे महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम से सबक सीखते हुए अभी भाजपा ने बिहार में एकजुटता का संदेश देने का ही फैसला किया है।

अब भाजपा की नजरें पश्चिम बंगाल पर

बिहार के नतीजों के बाद जहां भाजपा की नजर अब पश्चिम बंगाल पर टिक गई है वहीं यह भी माना जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में विपक्ष की रणनीति में भी बदलाव आ सकता है। पश्चिम बंगाल में बड़ा सवाल यह होगा कि क्या ममता के साथ अब लेफ्ट और कांग्रेस हाथ मिला सकते हैं। भाजपा में इस बात पर भी मंथन होगा कि क्या बिहार के बाद भाजपा ध्रुवीकरण और पीएम मोदी की कल्याणकारी योजनाओं के दम पर ममता का किला ध्वस्त कर पाएगी या नहीं।

शाह ने बोला था ममता पर हमला

वैसे पीएम मोदी की कई योजनाओं को ममता ने बंगाल में मंजूरी नहीं दी है और भाजपा ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है। पार्टी के रणनीतिकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने पिछले बंगाल दौरे में पीएम की कल्याणकारी योजनाएं रोकने पर ममता बनर्जी को घेरा था और कहा था कि अब बंगाल ज्यादा दिनों तक इन कल्याणकारी योजनाओं से वंचित नहीं रहेगा क्योंकि भाजपा ममता को सत्ता से बेदखल कर देगी।

असम पर भी पड़ेगा बिहार नतीजों का असर

असम में भी अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। मौजूदा समय में राज्य में भाजपा की सरकार है और भाजपा अगले चुनाव में भी सत्ता अपने पास बनाए रखने की कोशिशों में जुटी हुई है। माना जा रहा है कि बिहार के नतीजे असम को भी प्रभावित करेंगे। केरल में भाजपा ज्यादा बड़ी ताकत नहीं है मगर सियासी जानकारों का कहना है कि अगर ध्रुवीकरण का फार्मूला कारगर हुआ तो इसका असर केरल तक में देखने को मिल सकता है। तमिलनाडु में डीएमके और एआईडीएमके दोनों पार्टियां अब पहले की तरह मजबूत नहीं रह गई हैं। ऐसे में भाजपा यहां भी ताकत हासिल करने की कोशिश जरूर करेगी।

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अब कांग्रेस को लेकर उठेंगे सवाल

सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि निरंतर कमजोर होती कांग्रेस विपक्ष के कुनबे के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर रही है। कांग्रेस अब कुछ राज्यों में ही अपना आधार बचा पाई है और ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विपक्षी दल कांग्रेस के साथ कितना बड़ा दांव लगाते हैं।

बिहार में भी महागठबंधन को कांग्रेस को 70 सीटें देना महंगा पड़ गया है क्योंकि कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें जीतने में ही कामयाब हो सकी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और असम में कांग्रेस किस भूमिका में रहती है।

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