Bilkis Bano Case: 'सेब की तुलना संतरे से नहीं', SC की तल्ख़ टिप्पणी...रिहाई से जुड़े दस्तावेज नहीं देना चाहती सरकार
Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो के खिलाफ हुए अपराध को सर्वोच्च न्यायालय ने भयानक माना है। मामले के 11 दोषियों की सजा माफ कर दी गई थी। उसी के खिलाफ SC में सुनवाई हुई।
Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो मामले के दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी याचिका पर शीर्ष अदालत ने तल्ख़ टिप्पणी की है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय में मंगलवार (18 अप्रैल) को गुजरात सरकार ने दोषियों की रिहाई से जुड़ी फ़ाइल दिखाने के आदेश का विरोध किया। राज्य सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर ही रिहाई हुई है। बता दें, बिलकिस बानो केस पर अंतिम सुनवाई 2 मई को होगी।
बिलकिस बानो गैंगरेप केस (Bilkis Bano Gangrape Case) में दोषियों की रिहाई की फाइलें सुप्रीम कोर्ट ने तलब की है। अब केंद्र सरकार व गुजरात सरकार ने फैसला किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फाइल मांगने के आदेश को चुनौती देंगी।
गौरतलब है कि, पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने केंद्र और गुजरात सरकार को निर्देश दिया था कि वो 11 दोषियों की रिहाई संबंधी दस्तावेज पेश करें। लेकिन, दोनों ही सरकारों ने इससे इनकार कर दिया है। पीड़िता बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली (Subhashini Ali) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) ने मामले के 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की है।
बिलकिस मामले पर कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी
बिलकिस बानो केस की सुनवाई कर रही जस्टिस केम जोसेफ (Justice Kem Joseph) और जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagaratna) की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सरकार के फैसले पर तीखी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि 'सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती'।
SC ने कहा- ...इसका मतलब ये नहीं कि
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'ऐसे जघन्य अपराध जो समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं, उसमें किसी भी शक्ति का इस्तेमाल करते समय जनता के हित को दिमाग में अवश्य रखना चाहिए। अदालत ने ये भी कहा कि, केंद्र सरकार ने राज्य के फैसले के साथ सहमति जाहिर की है। इसका मतलब ये नहीं है कि राज्य सरकार को अपना दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है।'
2 मई को होगी अगली सुनवाई
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को 1 मई तक का वक़्त दिया है। तब तक फैसला करना होगा कि शीर्ष अदालत के आदेश पर पुनर्विचार याचिका दायर की जाए या नहीं। मामले में अगली सुनवाई अब 2 मई को होगी।
कोर्ट ने सरकार से पूछा- आप क्या संदेश दे रहे हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने आज ये भी कहा कि, ये जिस तरह का अपराध था, वो भयानक था। इस मामले के हर दोषी को 1000 दिन से अधिक की पैरोल मिली। यहां तक की एक दोषी को 1500 दिन की पैरोल दी गई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि, आपकी शक्ति का उपयोग जनता की भलाई के लिए होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने ये भी कहा कि ये एक समुदाय और समाज के खिलाफ अपराध है। आप क्या संदेश दे रहे हैं? आज बिलकिस है, कल कोई और भी हो सकता है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार से ये जानना चाहती है कि आखिर वो क्या कारण थे, जिनके आधार पर दोषियों को जल्द रिहा करने का फैसला लिया गया।