बर्थडे स्पेशल: तीन बार पीएम बनने से चूके प्रणब दा, मनमोहन ने भी मानी थी ये बात

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1969 में हुई थी। तब उन्होंने मिदनापुर उपचुनाव में वीके कृष्ण मेनन का कैंपेन काफी सफलतापूर्वक संभाला था और इसे देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काफी प्रभावित हुई थीं।

Update:2020-12-11 10:43 IST
बर्थडे स्पेशल: तीन बार पीएम बनने से चूके प्रणब दा, मनमोहन ने भी मानी थी ये बात (PC: social media)

नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उन बिरले नेताओं में थे जिन्हें पक्ष और विपक्ष दोनों का सम्मान हासिल था। इसी साल 31 अगस्त को कई दिनों की बीमारी के बाद दिल्ली के आर्मी अस्पताल में उनका निधन हुआ था। इससे पहले वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। बाद में उनकी ब्रेन सर्जरी हुई थी मगर उनकी हालत में ज्यादा सुधार नहीं हो सका और आखिरकार 31 अगस्त को उन्होंने आखिरी सांस ली थी। प्रणब मुखर्जी का जन्म 1935 में आज ही के दिन पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था।

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देश की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न भी प्रदान किया गया था। प्रणब दा भारतीय राजनीति में एक ऐसे शख्स थे जिनका नाम विरोधी भी काफी सम्मान से लिया करते थे। उनका राजनीतिक जीवन काफी लंबा रहा मगर इस दौरान उनके दामन पर किसी भी प्रकार के विवाद का धब्बा नहीं लगा। उनके लंबे राजनीतिक जीवन में तीन बार ऐसे मौके आए जब लगा कि वे प्रधानमंत्री बनेंगे मगर तीनों बार वे प्रधानमंत्री बनने से चूक गए।

इंदिरा गांधी भी प्रणब दा से प्रभावित थीं

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1969 में हुई थी। तब उन्होंने मिदनापुर उपचुनाव में वीके कृष्ण मेनन का कैंपेन काफी सफलतापूर्वक संभाला था और इसे देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी काफी प्रभावित हुई थीं। इंदिरा गांधी ने उन्हें पार्टी में शामिल करते हुए 1969 में ही राज्यसभा का टिकट दिया और प्रणब दा उच्च सदन में पहुंच गए। इसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यसभा के सदस्य चुने गए।

पिछले साल मिला था भारत रत्न सम्मान

देश के प्रति उनकी निष्ठा और सेवाओं के कारण उन्हें पिछले साल सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उनकी बेटी शर्मिष्ठा का कहना है कि पिछले साल 8 अगस्त का दिन मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था क्योंकि उसी दिन मेरे पिता को भारत रत्न सम्मान दिया गया था। इस सम्मान को पाने के करीब एक साल बाद गत 10 अगस्त को पूर्व राष्ट्रपति की तबीयत ज्यादा खराब हो गई और फिर अस्पताल में भर्ती होने के बाद वे वापस नहीं लौट सके।

Pranab Mukherjee (PC: social media)

तीन महत्वपूर्ण मौकों पर चूक गए प्रणब दा

भारतीय राजनीति में अपनी योग्यता की अमिट छाप छोड़ने वाले प्रणब मुखर्जी के लंबे राजनीतिक जीवन में तीन ऐसे मौके आए जब वे प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।

प्रणब दा की योग्यता को मनमोहन सिंह के उस बयान से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि जब मैं प्रधानमंत्री बना तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए मुझसे ज्यादा योग्य थे। मनमोहन ने तीन साल पहले कहा था कि मैं इस बारे में कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं था क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में मुझे चुना था।

इंदिरा की कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा

प्रणब मुखर्जी 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की वजह से राज्यसभा में पहुंचे थे। इंदिरा गांधी प्रणब मुखर्जी की राजनीतिक समझ की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। यही कारण था कि बाद में उन्होंने अपनी कैबिनेट में प्रणब दा को नंबर दो का दर्जा दिया था।

प्रणब मुखर्जी को उस समय कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा मिलना इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इंदिरा गांधी की उसी कैबिनेट में पीवी नरसिम्हा राव, नारायण दत्त तिवारी, आर वेंकटरमन, ज्ञानी जैल सिंह और प्रकाश चंद्र सेठी जैसे कद्दावर नेता भी शामिल थे।

इंदिरा की हत्या के बाद नहीं बन सके पीएम

1984 में 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अगले पीएम के रूप में प्रणब दा का नाम भी चर्चा में था मगर पार्टी की ओर से राजीव गांधी को नेता चुना गया। इसके बाद दिसंबर 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सहानुभूति लहर का पूरा फायदा उठाते हुए लोकसभा की 414 सीटों पर कब्जा कर लिया।

बाद में प्रणब दा को कैबिनेट में भी जगह नहीं मिली और वे प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इस फैसले से दंग रह गए थे। 1986 में उन्होंने कांग्रेस से अलग राह चुन ली थी और बंगाल में राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (आरएसी) का गठन किया था। हालांकि उनके इस प्रयास को ज्यादा कामयाबी नहीं मिल सकी और तीन साल बाद वे फिर राजीव गांधी से समझौता करके कांग्रेस में लौट आए।

1991 में राव ने दिया झटका

1991 में चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। चुनाव के बाद कांग्रेस की एक बार फिर सत्ता में वापसी हुई और गांधी परिवार से कोई चेहरा सामने न होने के कारण प्रणब दा का पलड़ा भारी माना जा रहा था।

कांग्रेस में पीएम पद के लिए उनके नाम की जोरदार चर्चा थी मगर इस बार भी मौका उनके हाथ से निकल गया।

इस बार पार्टी ने प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हाराव को चुना और प्रणब दा एक बार फिर पीएम बनने से चूक गए। बाद में पहले उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया और फिर राव मंत्रिमंडल में 1995 में वे विदेश मंत्री बनाए गए।

2004 में मनमोहन पर मेहरबान हुई किस्मत

साल 2004 में फिर प्रणब दा के लिए अनुकूल स्थितियां बनती दिखीं। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटों पर कामयाबी मिली। क्षेत्रीय दलों के दम पर कांग्रेस सरकार बनाने के लिए आगे आई।

इस समय प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी का नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में था, लेकिन वे प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार नहीं थीं। ऐसे में प्रणब दा का नाम एक बार फिर चर्चाओं में आ गया, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने प्रणब दा पर मनमोहन सिंह को तरजीह देते हुए उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।

मनमोहन ने खुद मानी थी यह बात

2017 में प्रणब दा की ऑटोबायोग्राफी के विमोचन के मौके पर मनमोहन सिंह ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने इस बात को माना कि 2004 में जब मैं प्रधानमंत्री बना तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए मुझसे ज्यादा काबिल थे मगर उस समय मैं कुछ भी कर सकने की स्थिति में नहीं था।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मेरा चुनाव किया था और इसके बाद मेरे पास कोई विकल्प बाकी नहीं रह गया था।

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मनमोहन की बात पर मुस्कुराए थे मां-बेटे

मनमोहन सिंह ने यह भी कहा था कि प्रणब दा को प्रधानमंत्री न बनने की शिकायत करने का पूरा अधिकार है। मनमोहन सिंह ने जिस समारोह में यह बात कही थी, उसमें सोनिया और राहुल दोनों मौजूद थे और मनमोहन की बात सुनकर दोनों मुस्कुरा उठे थे। मनमोहन सिंह की बातों में दम है क्योंकि 2004 में भी प्रणब दा का नाम काफी चर्चाओं में आया था मगर आखिरकार वे उस समय भी प्रधानमंत्री बनने से चूक गए थे।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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