रफी अहमद किदवई: जरूरतमंद के लिए 24 घंटे खुले रखते थे दरवाजे, जानें उनके बारे में

भारत की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले रफी अहमद किदवई ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। वह चुनौतियों से लड़ने और कठोर निर्णय लेने में कभी पीछे नहीं हटते थे। उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं।

Update:2021-02-18 12:24 IST
रफी अहमद किदवई: जरूरतमंद के लिए 24 घंटे खुले रखते थे दरवाजे, जानें उनके बारे में

लखनऊ: भारत की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले रफी अहमद किदवई ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। वह चुनौतियों से लड़ने और कठोर निर्णय लेने में कभी पीछे नहीं हटते थे। उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। रफी अहमद किदवई की सरलता के विरोधी भी कायल रहते थे। उनके दरवाजे हर जरूरतमंद के लिए 24 घंटे खुले रहते।

उनके सरल स्वभाव का लोग अक्सर फायदा भी उठा लेते थे। उनकी इस दरियादिली के लिए कोई उन्हें टोकता तो कहते मुद्दा यह नहीं कि उसने झूठ बोलकर मदद ली है। मुद्दा यह है कि उसे जरूरत थी तभी तो मदद मांगने आया। रफी अहमद किदवई कानून की पढ़ाई की दौरान ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे। वर्ष 1920-21 में गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए कानून की परीक्षा के ऐन मौके पर सहपाठियों संग एएमओ कालेज का बहिष्कार कर दिया था। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।

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जमींदार परिवार में हुआ जन्म

आज रफी अहमद किदवई का जन्मदिन है। उनका जन्म आज ही के दिन 18 फरवरी 1894 को बाराबंकी के मसौली में जमींदार इम्तियाज अली के परिवार में जन्म हुआ था। जमींदार परिवार में पैदा होने के बावजूद उन्होंने गरीबों, किसानों और मजलूमों की आवाज उठाने का काम किया। वर्ष 1931 मानवेंद्रनाथ राय से परामर्श के बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के साथ इलाहाबाद और समीपवर्ती जिलों के किसानों के मध्य कार्य करना प्रारंभ किया। जमींदारों द्वारा किए जा रहे उनके दोहन और शोषण की समाप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील रहे।

नेहरू के थे बेहद खास

रफी अहमद किदवई नेहरू के बेहद थे। कहा जाता है कि नेहरू जो योजना बनाते थे और रफी अहमद उसे कार्यान्वित करते थे। रफी अहमद 1926 में स्वराज पार्टी के टिकट पर लखनऊ फैजाबाद क्षेत्र से केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा के सदस्य निर्वाचित हुए और स्वराज्य पार्टी के मुख्य सचेतक नियुक्त हुए। रफी अहमद गांधी इरविन समझौते से असंतुष्ट थे। लिहाजा उन्होंने 1930 में उन्होंने भी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।

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फिर रफी अहमद किदवई 1935 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। बाद में यूपी सरकार में राजस्व मंत्री भी रहे। उसके बाद सूबे के गृहमंत्री भी बने। अंतर्देशीय पत्र की शुरुआत भी इन्हीं की देन है। कहा जाता है कि यूपी में कुछ विरोध हुआ था, जिसके बाद नेहरू ने उन्हें दिल्ली बुला लिया था, जहां उन्हें केंद्रीय संचार मंत्री बनाया गया। हालांकि संगठन में भेदभाव के चलते वे कुछ समय के लिए कांग्रेस संगठन और मंत्रिमंडल से अलग भी हो गए, लेकिन बाद में नेहरू के अध्यक्ष बनते ही वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए।

अक्टूबर 1954 में ली आखिरी सांस

वर्ष 1952 के चुनाव में बहराइच संसदीय क्षेत्र से विजयी हुए और देश के खाद्य एवं कृषि मंत्री बने। कहा जाता है कि वो जल्द ही वे उप प्रधानमंत्री नियुक्त होने वाले थे, लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और गिरते स्वास्थ्य के चलते 24 अक्टूबर 1954 को उनका देहावसान हो गया।

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