सुषमा स्वराजः नाना-नानी के दुलार और लाड़ ने निखारा था जिनका व्यक्तित्व
सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के पलवल में हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी के घर में हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख सदस्य थे।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: लोकप्रिय नेता सुषमा स्वराज की 14 फरवरी को 69वीं जयंती है। सुषमा स्वराज का राजनीतिक करियर विलक्षणताओं से भरा रहा। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में देश की पहली महिला विदेश मंत्री बनीं थीं। हालांकि उन्हें इंदिरा गांधी के बाद दूसरी महिला विदेश मंत्री कहा जाता है लेकिन इंदिरा गांधी कार्यवाहक विदेश मंत्री रही थीं।
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सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 में हुआ
सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के पलवल में हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी के घर में हुआ था। उनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख सदस्य थे। सुषमा स्वराज बचपन से ही कुशाग्र और मेधावी थीं। हालांकि उनका बचपन आम लड़कियों से अलग रहा था।
उनका पालन पोषण अपनी मां के मामा यानी नाना-नानी के यहां हुआ था
वह अपने माता-पिता के पास नहीं पली बढ़ीं थीं बल्कि उनका पालन पोषण अपनी मां के मामा यानी नाना-नानी के यहां हुआ था। वहां उन्हें अपने घर से अधिक आजादी मिली थी। हरियाणा का समाज उस समय लड़कियों के मामले में अधिक रूढ़िवादी था। नाना-नानी के यहां सुषमा को बाहर जाने की भी आजादी मिली। जिसके चलते स्कूल के दिनों में वे एनसीसी के कैंप में भी जाती थी और डिबेट में भाग लेती थीं।
1998 में वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं
अपने राजनीतिक जीवन में भी सुषमा स्वराज सात बार संसद सदस्य बनीं और तीन बार विधानसभा सदस्य रहीं। इसके अलावा 1977 में हरियाणा में सबसे कम उम्र की मंत्री बनने का भी रिकॉर्ड उन्हीं के नाम है। और 1998 में वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं।
2014 के आम चुनाव में वह मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय सीट चार लाख से अधिक मतों से जीत कर दूसरी बार सांसद बनी थीं। 26 मई 2014 को उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। अमेरिका के दैनिक वाल स्ट्रीट जनरल ने स्वराज को भारत की सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय राजनेता बताया था।
उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था
2019 के लोकसभा चुनाव में अपने खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। उस समय किडनी ट्रांसप्लांट के बाद वह स्वास्थ्य लाभ ले रही थीं और उन्हें खुद को गंदगी और धूल से दूर रहने की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कोई पद नहीं लिया। 6 अगस्त 2019 को हार्ट अटैक के बाद उनका निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया।
एक श्रेष्ठ अधिवक्ता भी रहीं
सुषमा स्वराज एक श्रेष्ठ अधिवक्ता भी रहीं। उन्होंने वकालत की शुरुआत 1973 में सुप्रीम कोर्ट से की थी। वकालत के दौरान ही साथी अधिवक्ता स्वराज कौशल से उनकी शादी हो गई। इसके अलावा उनका राजनीतिक करियर 1970 में विद्यार्थी परिषद से शुरू हुआ। उनके पति समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीज के निकट सहयोगी थे इसलिए जल्द ही सुषमा फर्नांडीज की लीगल टीम में शामिल हो गईं।
स्वराज कौशल भी 1990 में मिजोरम के राज्यपाल रहे
उन्होंने जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति में भी भाग लिया था। और आपातकाल के बाद वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। स्वराज कौशल भी 1990 में मिजोरम के राज्यपाल रहे। बाद में 1998 से 2004 तक वह सांसद रहे। दिलचस्प ये है कि एक समय यह दम्पति एक साथ राज्यसभा सदस्य रहा। इनकी बेटी बांसुरी है।
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सुषमा स्वराज का नाम भारतीय राजनीति में तेजतर्रा वक्ता के तौर पर जाना जाता है। अपने ओजस्वी भाषण में वह जितनी आक्रामक दिखती थीं, निजी जीवन में उतनी ही सरल और सौम्य थीं।
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