UCC: 2024 चुनाव के पहले मोदी ने बनाई बड़ी रणनीति, ऐसा हुआ तो विरोधी नहीं टिक पाएंगे BJP के सामने, जाने क्यों और कैसे?

Uniform Civil Code: 22वें लाॅ कमीशन ने जैसे ही 14 जून को एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को शुरू किया तो इसका विरोध भी जोर शोर से शुरू हो गया। लाॅ कमीशन के द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आम लोगों, संस्थानों और धार्मिक संगठनों से राय मांगी गई है।

Update:2023-06-23 18:08 IST
Uniform Civil Code (social media)

Lok Sabha Elections 2024 : 22वें लाॅ कमीशन ने जैसे ही 14 जून को एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को शुरू किया तो इसका विरोध भी जोर शोर से शुरू हो गया। लाॅ कमीशन के द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आम लोगों, संस्थानों और धार्मिक संगठनों से राय मांगी गई है। इससे अब यह माना जा रहा है कि भारत सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए पहला सियासी कदम उठा लिया है।

वहीं, लॉ कमीशन की अपील पर कांग्रेस का कहना है कि 2018 में 21वें लॉ कमीशन ने कहा है कि देश में अभी यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत नहीं है। ऐसे में 2024 चुनाव से पहले लॉ कमीशन की यह अपील राजनीति से प्रेरित है। लाॅ कमीशन की इस अपील के बाद अब देश में यूनिफाॅर्म सिविल कोड को लेकर एक बहस शुरू हो गई है। कोई पक्ष में है तो कोई इसके विपक्ष में अपना तर्क दे रहा है। किसी को राजनीतिक लाभ दिख रहा है तो किसी को इससे राजनीतिक नुकसान। विरोधी इसे 2024 की भाजपा के लिए तैयारी बता कर हमलावर हो रहे हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या? इस पर देशभर में क्यों बहस छिड़ी है? क्या यह कानून बन पाएगा? अगर कानून बन पाएगा तो कैसे? आइए इन्हीं कुछ सवालों के जरिए यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में यहां जानते हैं?

सवाल: 1 आखिर ये यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या?

जवाब: देखा जाए तो किसी भी देश में आमतौर पर दो तरह के कानून होते हैं। पहला क्रिमिनल और दूसरा सिविल कानून। क्रिमिनल में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या, डकैती जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें अपराधी चाहे किसी भी धर्म या समुदाय का हो सबके लिए एक ही तरह की कोर्ट होती है, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है। मतलब साफ है चाहे हत्या हिंदू ने किया हो या मुसलमान ने या अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान। कोर्ट में सुनवाई और फैसला सुनाने में कोई और किसी प्रकार का अंतर नहीं होता।

वहीं सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय सेटलमेंट या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। मान लीजिए जैसे दो लोगों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी पब्लिक प्लेस का प्रॉपर्टी विवाद हो। ऐसे मामलों में अदालत सेटलमेंट कराती है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाता है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

ये मामले आते हैं सिविल कानून में

सिविल कानून के अंदर शादी-ब्याह और संपत्ति से जुड़े मामले आते हैं। भारत में अलग-अलग धर्मों में शादी, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं और यही कारण है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं। जैसे-मुस्लिमों में शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होता है तो वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ हैं।

ये हो रही है मांग

अब इधर, यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को समाप्त करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। इसका मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून हो, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का ही क्यों न हो। जैसे-पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिमों में पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन वहीं हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।

सवाल 2: यूनिफॉर्म सिविल कोड के 10 चैप्टर में कौन-कौन सी बातें हो सकती हैं?

जवाब: भारत में सिविल से जुड़े कानून को आसान बनाने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड को 10 हिस्से यानी चैप्टर में बांटा जा सकता है और इनमें इस तरह के नियम और कानून हो सकते हैं?

चैप्टर 1-शादी की उम्र को लेकर नियम
चैप्टर 2- तलाक के आधार से जुड़े नियम
चैप्टर 3- तलाक लेने के क्या प्रोसीजर है इसको बताया जाएगा
चैप्टर 4- मेंटेनेंस तय करने के आधार तय होंगे
चैप्टर 5- इसके तहत मेंटेनेंस देने के प्रोसीजर को स्पष्ट किया जाएगा।
चैप्टर 6- गोद लेने का आधार तय होगा।
चैप्टर 7- गोद लेने का प्रोसीजर बताया जाएगा।
चैप्टर 8- उत्तराधिकार और विरासत के नियम बताए जाएंगे।
चैप्टर 9- एक पति और एक पत्नी पर कानून होगा।
चैप्टर 10- हम दो और हमारे दो के नियम बनेंगे।

सवाल 3: सबसे पहले कब उठाया गया था यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा?

जवाब: ब्रिटिश सरकार ने 1835 में एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें क्राइम, एविडेंस और कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर देशभर में एक सामान कानून बनाने की वकालत की गई थी। यही नहीं 1840 में इसे लागू भी कर दिया गया, लेकिन धर्म के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इससे अलग रखा गया। बस यहीं से शुरू हो गई यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग यानी यहीं से यूनिफाॅर्म सिविल कोड की मांग की जाने लगी।
1941 में बीएन राव कमेटी बनाई गई। जिसमें हिंदुओं के लिए कॉमन सिविल कोड बनाने की बात कही गई।

पहली बार 1948 में पेश हुआ था हिंदू कोड बिल

1947 में भारत की आजादी के बाद 1948 में पहली बार संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया गया था। इसका मकसद था हिंदू महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा जैसे गलत रिवाजों से आजादी दिलाना। वहीं जनसंघ नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी, करपात्री महाराज समेत कई ऐसे नेता थे जिन्होंने इसका विरोध किया। लिहाजा उस समय इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। जब 10 अगस्त 1951 को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने पत्र लिखकर पंडित जवाहर लाल नेहरू पर दबाव बनाया तो वो इसके लिए तैयार हो गए, लेकिन राजेंद्र प्रसाद समेत पार्टी के आधे से ज्यादा सांसदों ने नेहरू का विरोध कर दिया और अंततः पंडित नेहरु को झुकना पड़ा। इसके बाद 1955 और 1956 में नेहरू ने इस कानून को 4 हिस्सों में बांटकर देश की संसद में पास करा दिया।

जानिए जो कानून बने वो किस तरह से हैं

1-हिंदू मैरिज एक्ट 1955
2- हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956
3-हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956
4- हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट 1956

इससे फायदा यह हुआ कि अब हिंदू महिलाओं को तलाक, दूसरी जाति में विवाह, संपत्ति का अधिकार, लड़कियों को गोद लेने का अधिकार मिल गया। वहीं पुरुषों की एक से अधिक शादी पर रोक लगा दी गई और महिलाओं को तलाक के बाद मेंटेनेंस का अधिकार मिला। राजेंद्र प्रसाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दूसरे नेताओं का कहना था कि जब महिलाओं के हक के लिए कानून बनाना है, तो केवल हिंदू महिलाओं के लिए ही क्यों? सभी धर्मों की महिलाओं के लिए समान कानून क्यों नहीं बनाया जा रहा है।

सवाल 4: यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर हमेशा से इतना विरोध क्यों है?

जवाब: देखा जाए तो यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग ही करते हैं। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। इसलिए शादी-ब्याह और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है।

मुस्लिम जानकारों की मानें तो उनके मुताबिक, शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। लिहाजा, यह उनकी आस्था का विषय है। वहीं मुस्लिमों को इस बात की चिंता है कि 1947 के बाद उन्हें मिली धार्मिक आजादी अब धीरे-धीरे उनसे छीनने की कोशिश की जा रही है।

सवाल 5: भारत के संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में क्या कहा गया है?

जवाब: सवाल नंबर 5-भारत के संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में क्या कहा गया है?
जवाब- इस बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीनियर वकील चंद्रचूड़ पांडेय का कहना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग- 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा की गई है। राज्य के नीति-निदेशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में भी कहा गया है कि ‘राज्य, देशभर में नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने का प्रयास करेगा।’
बतादें कि हमारे संविधान में नीति निदेशक तत्व सरकारों के लिए एक गाइड की तरह है। इनमें वे सिद्धांत या उद्देश्य बताए गए हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए सरकारों को काम करना होता है।

सवाल 6: नवंबर 2022 में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर किरोड़ी लाल मीणा ने जो बिल पेश किया, उसे प्राइवेट बिल क्यों कहते हैं?

जवाब-संसद के दोनों सदनों राज्यसभा या लोकसभा में दो तरह से कोई बिल पेश किया जा सकता है। एक सरकारी बिल यानी पब्लिक बिल और दूसरा प्राइवेट मेंबर बिल। सरकारी बिल सरकार का कोई मंत्री पेश करता है और यह सरकार के एजेंडे में शामिल होता है। वहीं जबकि प्राइवेट मेंबर बिल सदन यानी लोकसभा या राज्यसभा का कोई भी मेंबर जो मंत्री नहीं हो, पेश कर सकता है। भले ही वो सत्ताधारी पार्टी का सदस्य हो। यही कारण है कि नवंबर 2022 में जब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के इस बिल को प्राइवेट मेंबर बिल कहा गया था।

सवाल 7: यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर प्राइवेट बिल पेश करने का क्या प्रक्रिया और मायने है?

जवाब-सरकारी बिल सदन में किसी भी दिन पेश किया जा सकता है, जबकि प्राइवेट मेंबर बिल केवल शुक्रवार को ही पेश किया जा सकता है। इसे पेश करने से पहले सांसद को प्राइवेट मेंबर बिल का ड्राफ्ट तैयार करना होता है। उन्हें कम से कम एक महीने का नोटिस सदन सचिवालय को देना होता है। उसके बाद सदन सचिवालय इसकी जांच करता है कि बिल संविधान के प्रावधानों के अनुरूप है या नहीं और जब जांच कर लेता है तो उसके बाद वह इसे लिस्ट करता है।
प्राइवेट बिल को मंजूर करने या ना खारिज करने का फैसला लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति का होता है। जब बिल मंजूर हो जाता है तो उसके बाद सदन में उस पर चर्चा होती है। इसके बाद उस पर वोटिंग होती है। अगर बिल दोनों सदनों से बहुमत के साथ पास हो जाता है, तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद बिल कानून बन जाता है।

अब तक केवल 14 प्राइवेट मेंबर बिल ही ले सके कानून का रूप

1952 के बाद अब तक हजारों प्राइवेट मेंबर बिल सदन में पेश किए गए, लेकिन इनमें से केवल 14 प्राइवेट मेंबर बिल ही कानून का रूप ले सके। सुप्रीम कोर्ट (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक-1968, आखिरी प्राइवेट मेंबर बिल था जो 1970 में कानून बना। इसके बाद कोई भी प्राइवेट बिल दोनों सदनों से पास नहीं हो सका है। 16वीं लोकसभा यानी 2014-2019 के बीच 999 प्राइवेट बिल इंट्रोड्यूस किए गए, लेकिन चर्चा केवल 10 प्रतिशत बिलों पर ही हो सकी।

सवाल 8: किरोड़ी लाल मीणा बीजेपी सांसद हैं और केंद्र में बीजेपी की सरकार है, फिर इस विधेयक को प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में क्यों पेश किया गया था?

जवाबः हाईकोर्ट की लखनउ बेंच में सीनियर एडवोकेट शुभम त्रिपाठी कहते हैं कि मोदी सरकार ने इस बिल के जरिए एक बड़ा दांव चला है। यह एक तरह से लिटमस टेस्ट किया गया था, क्योंकि काॅमन सिविल कोड को लागू कराना इतना आसान नहीं है। अक्सर लोगों को यह लगता है कि इससे केवल अल्पसंख्यक ही प्रभावित होंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। इससे हिंदू भी प्रभावित हो सकते हैं। उनकी तरफ से भी विरोध हो सकता है। इसलिए सरकार बिल को लेकर बाकी पार्टियों का पहले स्टैंड देखना चाहती है, देश का का इस पर क्या मूड है और साधु-संतों की इस का इस पर क्या मत है। यह जानना चाहती है।

वरिष्ठ पत्रकार आलोक पांडेय कि मानें तो काॅमन सिविल कोड को लागू करने के पीछे कानूनी और राजनीतिक दोनों ही पहलू हैं। वे कहते हैं कि अभी बीजेपी शासित राज्य भले ही इसे लागू करने की बात कह रहे हैं, लेकिन इसे राज्य स्तर पर लागू करना संभव ही नहीं है। इसे जब भी लागू किया जाएगा, केंद्र सरकार के स्तर पर ही लागू होगा और उसके लिए भी इसे अमल में लाना आसान नहीं होगा। इसलिए केंद्र की मोदी सरकार भी पहले ये देखना चाहती है कि आखिर किस स्तर पर इसका विरोध होता है।

वहीं देखा जाए तो दूसरी तरफ बीजेपी काॅमन सिविल कोड के बहाने हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की कोशिश में भी जुटी है। बीजेपी चाहती है कि इसका पहले कोई विरोध करे, इसको लेकर विवादित बयान दे, ताकि 2024 के लोकसभा चुनावों में इसे नेशनल लेवल पर इश्यू बनाया जा सके और इसका चुनाव में फायदा उठाया जा सके।

मोदी सरकार इससे ले चूकी है सबक

बता दें कि सीएए और एनआरसी पर मोदी सरकार बुरी तरह से घिर गई थी। दिल्ली सहित कुछ शहरों में इसके जोरदार विरोध के साथ दंगे भी हुए थे और पीएम नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा कि हम अभी एनआरसी लागू नहीं कर रहे हैं। अगर सरकार खुद बिल लेकर आती तो विवाद और विरोध के बीच दोनों सदनों से इस बिल को पास कराना उसके लिए नाक का सवाल हो जाता। इसलिए बीजेपी के सांसद ने इसे प्राइवेट बिल के रूप में पेश किया था, ताकि अगर बिल पास न भी हो, तो मोदी सरकार की किसी तरह की किरकिरी नहीं होगी।

सवाल 9: यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर बीजेपी का क्या स्टैंड है?

जवाब: पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि जब से हमारी पार्टी बनी है, तब से यूनिफॉर्म सिविल कोड हमारा मुद्दा रहा है। इसी कारण से श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उद्योग मंत्री के पद से इस्तीफा देकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। बीजेपी का एक भी घोषणा पत्र ऐसा नहीं है, जिसमें हमने यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात न की हो। पंथ निरपेक्ष देश में कानून का आधार धर्म नहीं हो सकता। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी कहा है कि जब कभी भी अनुकूलता हो देश के विधान मंडलों और संसद को यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहिए।

हम वापस सत्ता में लौटे तो पूरे देश में लागू कर देंगे

वहीं एक दूसरे इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा था कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए पैनल बना है। दूसरे राज्य भी इसको लेकर योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कई राज्य खुद ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कर देंगे। इसके बाद भी अगर 2024 तक यह लागू नहीं होता है, तो हम वापस सत्ता में लौटने के बाद इसे देशभर में लागू कर देंगे।

वहीं सदन के अंतिम सत्र के दौरान पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि फिलहाल देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने को लेकर सरकार की कोई योजना नहीं है। हालांकि राज्य इसे लागू कर सकते हैं। संविधान के आर्टिकल 44 के तहत उन्हें इसको लेकर कानून बनाने का अधिकार है।

शिवराज सिंह ने कमेटी बनाने का किया ऐलान

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने इसी महीनेयूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए कमेटी बनाने का ऐलान किया है। हरियाणा के गृहमंत्री अनिज विज ने कहा है कि जिन प्रदेशों में समान नागरिक संहिता लागू करने की योजना पर काम हो रहा है, उनसे हम सुझाव ले रहे हैं।

सवाल 10: क्या दूसरे देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसा कुछ है?

जवाब: अभी देश में गोवा ही एक अकेला राज्य है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। इसे पुर्तगाली सिविल कोड 1867 के नाम से जाना जाता है। 1961 में गोवा का भारत में विलय हुआ था। इसके बाद भी वहां ये कानून लागू रहा।
अगर दूसरे देशों की बात करें तो अधिकतर मुस्लिम देश शरिया लॉ को मानते हैं। पाकिस्तान, इराक, ईरान, यमन और सउदी अरब जैसे देशों में सबके लिए एक ही कानून है। मिस्र, सिंगापुर, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में शरिया लॉ केवल पर्सनल लॉ के रूप में लागू है। इजराइल में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग फैमिली लॉ हैं।

इन देशों में सभी के लिए काॅमन लाॅ

अमेरिका सहित ईसाई बहुल देशों में शादी, तलाक और संपत्ति से जुड़े मसलों के लिए सभी नागरिकों के लिए कॉमन लॉ है। हालांकि अमेरिका में ट्राइबल कम्युनिटी के लिए शादी और तलाक से जुड़े मामलों में छूट है। 22वें लाॅ कमीशन के फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को शुरू किए जाने के इस मामले ने राजनीतिक दलों को लोकसभा 2024 के चुनावों के लिए एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। बीजेपी जहां इसकी वकालत में जुटी है तो वहीं विरोधी पार्टियां इसके विरोध में। अब देखना होगा कि क्या कामन सिविल कोड केवल राजनीतिक मुद्दा ही रह जाएगा कि इसे अमल में भी लाया जाएगा। यह तो समय ही बताएगा।

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