BJP Politics News: किस पथ पर भाजपा ?

BJP Politics News in Hindi: आज की सबसे मजबूत दिखाई देने वाले राजनीतिक दल - भारतीय जनता पार्टी की राहें 'पार्टी विद् ए डिफ़रेंस' पर पलीता लगाती नजर आती हैं। पार्टी अपने आप में ही विरोधाभासों का बंडल बन सी गई है। यह बेहद हैरतअंगेज है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update: 2024-07-02 10:40 GMT

BJP Political Crisis Update

BJP Politics News in Hindi: कभी भाजपा 'पार्टी विद् ए डिफ़रेंस' कह कर खुद को दूसरे दलों से अलग करती थी। यही भाजपा का खुद को बताने का तरीक़ा था। इसी के साथ यह भी कहा जाता था कि भाजपा का ‘चाल, चरित्र व चेहरा’ दूसरों से अलग है। हमारे राजनीतिक फलक में मौजूद तमाम राजनीतिक दलों की राहें अलग अलग दिशाओं से आती - जाती और निकलती प्रतीत होती हैं। सबमें ढेरों समानताएं भी दिखती हैं। अनेकों विरोधाभास भी। लेकिन आज की सबसे मजबूत दिखाई देने वाले राजनीतिक दल - भारतीय जनता पार्टी की राहें 'पार्टी विद् ए डिफ़रेंस' पर पलीता लगाती नजर आती हैं। किसी समय एकदम अलग दिखने वाली और इसी बात का दम्भ भरने वाली यह पार्टी अपने आप में ही विरोधाभासों का बंडल बन सी गई है। यह बेहद हैरतअंगेज है। हैरान करने वाली बात यह भी है कि बाहर से साफ दिखने वाले विरोधाभासों का असर चुनावी राजनीति में नुकसान पहुंचता दिखने लगा है।

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आज की भाजपा वह विशुद्ध स्वरचित, स्वघोषित एकल विचारधारा के प्रतिबद्ध अनुगामी नेताओं की भाजपा नहीं है। जिस तरह समंदर में ढेरों नदियां विलीन हो जाती हैं, ठीक उसी तरह इस पार्टी में विभिन्न विचारधाराओं और विचारधारा विहीन नेताओं का महामिलन कुछ ज्यादा ही तेजी से होता गया है। जो कल को भाजपा के विचार और इसके प्रतिबद्ध नेताओं को खुल्लमखुल्ला गालियां देते थे, विरोध करते थे, उन्हीं का मिलन भाजपा में हो जाना विस्मय पैदा करता है। मिसालें बहुत सी हैं।

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बिहार में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा नामक पार्टी चलाने वाले जीतन राम मांझी आज एनडीए के अज़ीज़ हैं । भाजपा के हमप्याला हैं। जबकि इन्हीं मांझी ने तीन साल पहले सार्वजनिक मंच से हिंदू धर्म को खराब बताया था। दलित समाज में सत्यनारायण भगवान की पूजा पर सवाल खड़े किए थे। ब्राह्मणों को गाली देने पर उनके खिलाफ खूब विरोध प्रदर्शन खुद भाजपाइयों ने ही किये थे।अब वही सिर्फ एक लोकसभा सीट वाले मांझी भाजपा के न सिर्फ दोस्त हैं बल्कि केंद्रीय मंत्री भी हैं।

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यूपी के नेता नरेश अग्रवाल को ही लीजिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर हिंदू देवी देवताओं पर ऊटपटांग बयान देने वाले नरेश अग्रवाल से भाजपा नेता खासे नाराज रहते थे। यहां तक कि उनके बयानों से चिढ़े भाजपा समर्थकों ने उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कराई थी। लेकिन अब वही अग्रवाल भाजपा के सदस्य हैं। उनके सुपुत्र यूपी की योगी सरकार में मंत्री हैं।

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यूपी के ऐसे ही एक अन्य नेता हैं स्वामी प्रसाद मौर्य। ये भी भाजपा में सादर लिए गए। इन्होंने हिन्दू देवी देवताओं, रामायण और हिंदुत्व को क्या क्या उल्टा सीधा नहीं कहा। इनकी बेटी भाजपा की सांसद बनी रहीं। कभी दिल्ली विधानसभा में भाजपा नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कपिल मिश्रा ने क्या नहीं कहा? आज वह भाजपा में हैं!

भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने का नारा देने वाली भाजपा में कांग्रेसियों की इतनी बड़ी जमात भर्ती कर ली गई है कि लगने लगा है कि क्या यह एक नई कांग्रेस बन रही है? नाम गिनाने बैठें तो अरविंदर सिंह लवली से लेकर नवीन जिंदल और अशोक चव्हाण से लेकर तक ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा सुनील जाखड़ से लेकर जितिन प्रसाद तक कि लम्बी लिस्ट है।अपना राजनीतिक करियर भाजपा विरोध की नींव पर बनाने वाले हिमंत बिस्व सरमा आज न सिर्फ असम के भाजपाई मुख्यमंत्री हैं बल्कि पार्टी के अग्रणी झंडा बरदार हैं। आडवाणी को रथ यात्रा के दौरान बिहार में गिरफ़्तार करने वाले नौकरशाह रहे आर के सिंह बिहार से सांसद रहे। केंद्र में मंत्री भी। रामकोला के भागवत की तरह ये नज़रें बढ़ती चला जायेगी। ओर छोर नहीं मिलेगा।

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सिर्फ चुनावी राजनीति में अपना संख्या बल बढ़ाने के लिए भाजपा ने ‘बाहरियों’ को लोकसभा चुनाव टिकट रूपी खूब इनाम बांटे। अकेले यूपी में 25 फीसदी टिकट ऐसे ही सैलानी नेता पा गए। सैलानी पार्टियों से गठबंधन भी कम नहीं किये गये। हद तो यह हुई कि सैलानी दलों को न केवल सीट दी गई। बल्कि उम्मीदवार भी दिये गये। जिनसे सैलानी दलों ने अपनी जेबें भरीं। ऐसा शायद ही किसी अन्य पार्टी में पहले कभी दिखा हो। कांग्रेस मुक्त के फेर में भाजपा खुद ही कांग्रेस हुई जा रही है। बरसों तक पार्टी की सेवा करने वाले नेता कार्यकर्ता हैरान हैं। सहयोगी दलों के प्रति भाजपा की रणनीति अचंभित करती है। बिहार को ही देखिए। नीतीश कुमार के बगैर भाजपा का काम नहीं चलता जो तीन तीन बार पलटी मार चुके हैं।

भाजपा ने वैचारिक आधार को साझा करने वाली शिवसेना के उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र में सपोर्ट करने, उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की बजाए एकनाथ शिंदे की तरफदारी क्यों की? शिंदे के साथ आये अजित पवार सरीखे नेताओं को समर्थन दिया जिनके भ्रष्टाचार का ढोल कभी खुद भाजपा ने ही बजाया था। इसी महाराष्ट्र के अशोक चव्हाण पर करोड़ों के घोटाले के आरोप कभी लगे थे। लेकिन उन्हीं को भाजपा ने आशीर्वाद दे दिया।

नवीन पटनायक की बीजू जनता दल कभी भाजपा की दोस्त थी। नवीन बाबू के सुशासन की तारीफों के पुल बांधे जाते थे। लेकिन बीते चुनाव में वहां भी गांठ तोड़ दी गई। पटनायक सरकार सबसे भ्रष्ट घोषित कर दी गई।

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यूपी में भाजपा की सहयोगी अपना दल योगी सरकार पर सवाल खड़े कर रही है। चिट्ठी लिख कर मीडिया में रिलीज की जा रही है। मुख्यमंत्री समेत यूपी के टॉप कर्ताधर्ता यूपी के ही नहीं हैं। क्या ऐसा सुना गया है कहीं और? मुख्यमंत्री उत्तराखंड के, चीफ सेक्रेटरी और प्रमुख सचिव गृह बिहार के। विचित्र स्थिति है यूपी में। बीते सात साल से यहां जातिवाद का जो बोलबाला चल रहा है, वह मुलायम-अखिलेश और मायावती के शासन की याद दिला रहा है। जबकि उनकी पार्टियों का आधार ही जाति विशेष पर था। बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी सबसे बुरी स्थिति यूपी में ही देखी, तो उसकी रणनीतियां थीं क्या? कोई समझ ही नहीं पा रहा।

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भाजपा को संघ नियंत्रित करता है। यह सर्वविदित है। संगठन के बड़े फैसले संघ से ही आते हैं। लेकिन आज इस ‘अभिभावक - संतान’ में खटास है।गहरी खाई है। भाजपा की ओर से कह ही दिया गया है कि अब संघ की जरूरत नहीं। संघ का टॉप नेतृत्व भी खूब खरी खोटी सुना चुका है। ध्यान से देखें तो इस रिश्ते में यह दरार पिछले एक दशक से ही आई है। तबसे, जबसे भाजपा, सरकार और संगठन की पूर्ण कमान मोदी और शाह के हाथ में हो गई है। इसी एब्सोल्यूट कंट्रोल का ही नतीजा है कि वर्तमान एनडीए सरकार में नितिन गडकरी को छोड़ कर ढेरों नॉन परफार्मिंग मंत्री रिपीट कर दिए गए। लोग ताजगी की उम्मीद करते रहे। यहां सब बासी परोस दिया गया है।

शायद इस रवैये के पीछे भाजपा की कुछ शानदार जीतें रहीं हैं। दिल्ली की लोकसभा चुनावी जीत, राजस्थान में वसुंधराराजे को किनारे लगा देने के बावजूद राज्य में सरकार का गठन, मध्यप्रदेश में शिवराज को कमान न देना। ये भी रणनीतिक फैसले ही होंगे।

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घूम फिर कर सवाल वहीं मौजूद है - आखिर असली भाजपा है क्या? किस राह पर ये आगे बढ़ रही है? 5 साल बाद कहाँ खड़ी नजर आएगी यह पार्टी? कहीं भाजपा कांग्रेस की छाया प्रति तो नहीं हो रही है।कहीं जनता ने शायद इसलिए छाया प्रति की जगह मूल कांग्रेस की ओर रुख़ किया है। देखना है लोकसभा में 2 सीटों से यहां तक का सफर चक्र अब किस ओर जाएगा?

( लेखक पत्रकार हैं ।)

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