Budget 2018: इनकम टैक्स स्लैब की 70 वर्षो की यात्रा
भारत के करदाता भी 70 साल का लंबा सफर तय कर चुके हैं। बजट पेश किए जाने का वक्त एक ऐसा समय होता है जब सबसे ज्यादा बात इनकम टैक्स रेप पर होती है। हर किसी को उम्मीद होती है कि इस बार वित्त मंत्री टैक्स स्लैब को थोड़ा ऊपर बढ़ाकर आम लोगों को राहत देंगे। हालांकि ज्यादातर मौकों पर वित्त मंत्री जनता निराश ही करते आए हैं। आखिरी बार डायरेक्ट बजट स्ट्रक्च
लखनऊ: भारत के करदाता भी 70 साल का लंबा सफर तय कर चुके हैं। बजट पेश किए जाने का वक्त एक ऐसा समय होता है जब सबसे ज्यादा बात इनकम टैक्स रेप पर होती है। हर किसी को उम्मीद होती है कि इस बार वित्त मंत्री टैक्स स्लैब को थोड़ा ऊपर बढ़ाकर आम लोगों को राहत देंगे। हालांकि ज्यादातर मौकों पर वित्त मंत्री जनता निराश ही करते आए हैं। आखिरी बार डायरेक्ट बजट स्ट्रक्च में बड़ा बदलाव 1997 में हुआ था और उस समय पी. चिदंबरम वित्त मंत्री थे। उस बजट को ड्रीम बजट भी कहा जाता है।
इस बार भी देश के आम लोगों को वित्त मंत्री अरुण जेटली से ढेरों उम्मीदें थी ,लेकिन उन्होंने भी कुछ खास नहीं किया ।इस बार इनकम टैक्स की दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है, जिससे मिडिल क्लास को कोई फायदा नहीं मिलेगा। आमदनी में से 40 हजार रुपये घटाकर लगेगा टैक्स। यानि जितनी आमदनी है उसमें 40 हजार घटाकर टैक्स लगेगा। 40 हजार रुपये तक स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलेगा। नौकरी पेशा को कोई छूट नहीं मिलेगी। डिपॉजिट पर मिलने वाली छूट 10 हजार से बढ़ाकर 50 हजार हुई। सीनियर सिटीजन को राहत दी गई है।
आइये एक नजर डालते हैं टैक्स स्लैब की इसी यात्रा पर। आजादी के बाद भारत में टैक्स स्लैब में कैसे-कैसे बदलाव हुआ है, इसे जानने के लिए वर्ष 1949-50 से इसे देखना होगा। उस समय भारत के आजाद होने के बाद पहली बार इसी बजट में टैक्स की दरें तय की गई थीं। उस समय के वित्त मंत्री जॉन मथाई ने 10000 रुपये तक की आमदनी पर लग रहे 1 आने के टैक्स में से एक थौथाई हिस्से की कटौती कर दी थी। वहीं, 10000 रुपये से ज्यादा के दूसरे स्लैब पर लग रहे 2 आने के टैक्स को घटाकर 1.9 आना कर दिया था।
1974-75 का बजट
उस समय देश के वित्त मंत्री यशवंत राव चव्हाण थे। चव्हाण ने 97.75 फीसद के टैक्स को घटाकर 75 फीसद कर दिया। यही नहीं उन्होंने सभी तरह की व्यक्तिगत आय पर लग रहे टैक्स रेट्स को भी कम कर दिया। इस साल 6000 रुपये तक की सालाना आमदनी को टैक्स स्लैब से बाहर करने का फैसला लिया गया। 70000 रुपये से ज्यादा की सालाना कमाई पर 70 फीसद का मार्जिनल टैक्स रेट तय किया गया। इसके अलावा सभी श्रेणियों पर सरचार्ज एक समान 10 फीसद कर दिया गया। सरचार्ज के साथ सबसे ऊपरी स्तर वाले स्लैब पर इनकम टैक्स और सरचार्ज मिलाकर कुल 77 प्रतिशत का टैक्स हो गया। यही नहीं, इस बजट में वेल्थ टैक्स बढ़ा दिया गया था।
1985-86 का बजट
तत्कालीन वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उस समय मौजूद 8 इनकम टैक्स स्लैब्स को घटाकर 4 कर दिया। व्यक्तिगत आय पर सबसे ज्यादा मार्जिनल टैक्स रेट 61.875 फीसद से घटाकर 50 फीसद किया गया। इसी के साथ 18000 रुपये सालाना से कम कमाने वालों को टैक्स से मुक्ति दे दी गई, जबकि 18001 रुपये से 25000 रुपये तक की आमदनी पर 25 फासद और 25,001 रुपये से 50,000 रुपये की आय पर 30 फीसद टैक्स लगाया गया। 50,001 रुपये से 1 लाख रुपये सालाना आमदनी पर 40 फीसद टैक्स का प्रावधान रखा गया, जबकि 1 लाख रुपये से ज्यादा की आमदनी पर 50 फीसद टैक्स चुकाने का प्रवधान रखा गया।
1992-93 का बजट
आज की पीढ़ी जिस टैक्स स्ट्रक्चर को देखती है उसकी नींव 1992-93 के बजट में पड़ी थी। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे और उन्होंने टैक्स स्लैब को तीन हिस्सों में बांट दिया, यानि एक स्लैब कर किया गया। सबसे निचले स्लैब में 30 हजार रुपये से 50 हजार रुपये तक की आमदनी वालों के लिए 20 फीसद, दूसरे स्लैब में 50 हजार रुपये से 1 लाख रुपये तक 30 फीसद और 1 लाख रुपये से अधिक पर 40 फीसद टैक्स तय किया गया।
1994-95 का बजट
वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने टैक्स स्लैब में एक बार फिर कुछ कुछ बदलाव किए, लेकिन टैक्स दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। पहली स्लैब 35 हजार रुपये से 60 हजार रुपये तक 20 फीसद, दूसरी स्लैब में 60 हजार रुपये से 1.2 लाख रुपये तक 30 फीसद और 1.2 लाख रुपये से अधिक पर 40 फीसद टैक्स लगाया गया।
1997-98 का बजट
इस समय देश के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम थे और इस बजट को 'ड्रीम बजट' भी कहा जाता है। उन्होंने टैक्स दरों को 15, 30 और 40 फीसद से कम करके 10, 20 और 30 फीसद कर दिया। पहले स्लैब में 40 से 60 हजार रुपये आमदनी वालों के लिए 10 फीसद, 60 हजार से 1.5 लाख रुपये वालों के लिए 20 फीसद और इससे ज्यादा वालों के लिए 30 फीसद टैक्स तय किया गया।
2005-06 का बजट
इस वक्त देश में यूपीए की सरकार थी। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ही टैक्स स्लैब्स में फिर बदलाव किया। उन्होंने घोषणा की कि जो लोग 1 लाख रुपये तक सालाना कमा रहे हैं उन पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, यह आम लोगों के लिए एक बड़ी राहत थी। 1 लाख से 1.5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर 10 फीसद आयकर लगाया गया और 1.5 लाख से 2.5 लाख कमाने वालों पर 20 फीसद टैक्स लगा। इसके अलावा 2.5 लाख रुपये से ज्यादा कमाने वालों पर 30 फीसद टैक्स लगाया गया।
2010-11 का बजट
यूपीए-2 में इस वक्त प्रणब मुखर्जी देश के वित्त मंत्री थे। उन्होंने इनकम स्लैब्स में बदलाव किया। उन्होंने घोषणा की कि वे लोग जो 1.6 लाख रुपये तक सालाना कमा रहे हैं उन्हें अब कोई टैक्स नहीं देना होगा। 1.6 लाख से 5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर 10 फीसद टैक्स लगाया गया। 5 लाख से 8 लाख तक कमाने वालों पर 20 फीसद टैक्स टैक्स लगाया गया। 8 लाख सालाना से ज्यादा आय वालों को 30 फीसद टैक्स स्लैब में रखा गया।
2012-13 का बजट
प्रणब मुखर्जी ने शून्य टैक्स वाले स्लैब को 1.8 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दिया और बाकी टैक्स स्लैब्स में भी आमूल-चूल बदलाव किए। उन्होंने घोषणा की कि 2 लाख तक कमाने वालों पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। 2 लाख से 5 लाख रुपये सालाना कमाने वालों पर 10 फीसद और 5 लाख से 10 लाख की आय करने वालों को 20 फीसद टैक्स स्लैब में रखा गया। 10 लाख से ज्यादा आमदनी वाले लोगों पर 30 फीसद टैक्स लगाया गया।
2014-15 का बजट
यह केंद्र की मोदी सरकार का पहला बजट था। फाइनांस बिल, 2015 पास होने के साथ ही वेल्थ टैक्स को 2016-17 से खत्म कर दिया गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वेल्थ टैक्स को हटाकर 1 करोड़ से ज्यादा सालाना कमाने वालों पर 2 फीसद का सरचार्ज लगाया। इस कारण 2016-17 के बाद से वेल्थ टैक्स रिटर्न भरना खत्म हो गया।
2017-18 का बजट
अरुण जेटली ने 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक कमाने वालों पर टैक्स 10 फीसद से घटाकर 5 फीसद कर दिया। इसके साथ ही आयकर कानून, 1961 के सेक्शन 87ए में रीबेट को 2.5 लाख से 3.5 लाख तक कमाने वालों के लिए 5 हजार से घटाकर 2.5 हजार कर दिया गया। इस कारण 3 लाख रुपये तक कमाने वालों पर आयकर लगभग खत्म हो गया और 3 लाख से 3.5 लाख तक सालाना कमाने वालों के लिए यह 2,500 रुपये रह गया।