Dwarka Expressway: हाल द्वारका एक्सप्रेसवे का, एक किमी की लागत तय हुई 18 करोड़, पहुंचा दी 250 करोड़ रुपये

Dwarka Expressway Constraints: दिल्ली और गुरुग्राम के बीच बन रहे द्वारका एक्सप्रेसवे की लागत कहाँ से कहाँ पहुंचा दी गयी वह हैरतंगेज़ है। भारत के सरकारी ऑडिटर ‘कैग’ ने बताया है कि द्वारका एक्सप्रेसवे की लागत स्वीकृत राशि से 14 गुना अधिक है।

Update:2023-08-14 13:12 IST
Dwarka Expressway, Delhi-Gurgaon (Photo: Social Media)

Dwarka Expressway Constraints: दिल्ली और गुरुग्राम के बीच बन रहे द्वारका एक्सप्रेसवे की लागत कहाँ से कहाँ पहुंचा दी गयी वह हैरतंगेज़ है। भारत के सरकारी ऑडिटर ‘कैग’ ने बताया है कि द्वारका एक्सप्रेसवे की लागत स्वीकृत राशि से 14 गुना अधिक है।

इस एक्सप्रेसवे का उद्देश्य दिल्ली और गुरुग्राम के बीच नेशनल हाईवे-48 को 14 लेन वाली नेशनल हाईवे में डेवलप करके भीड़ कम करना है। भारत सरकार की कैबिनेट कमिटी ओं इकनोमिक अफेयर्स यानी सीसीईए ने इस सड़क के निर्माण के लिए प्रति किलोमीटर 18.20 करोड़ रुपये मंजूर किये थे लेकिन जब बनाने की बात आई तो यही सड़क प्रति किलोमीटर 250.77 करोड़ की लागत पर बनाई गयी। यानी 2017 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) द्वारा अनुमोदित राशि से इसे 14 गुना अधिक पहुंचा दिया गया।

क्या कहती है रिपोर्ट

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने ‘भारतमाला परियोजना’ के चरण-1 के कार्यान्वयन पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) बोर्ड ने द्वारका एक्सप्रेसवे के निर्माण के लिए 250.77 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर सिविल कॉस्ट को मंजूरी दी है। जबकि आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने इसी सड़क के लिए प्रति किलोमीटर निर्माण की सिविल कॉस्ट 18.20 करोड़ रुपये का अनुमोदन किया था।

दिल्ली वडोदरा एक्सप्रेसवे का भी यही हाल

कैग की रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि लगभग 32,839 करोड़ रुपये की सिविल कॉस्ट वाला दिल्ली-वडोदरा एक्सप्रेसवे, भारतमाला प्रोजेक्ट्स की सीसीईए अनुमोदित सूची में शामिल ही नहीं था फिर भी एनएचएआई बोर्ड के स्तर पर इसे मंजूरी दी गई थी।

एनएचएआई का जलवा

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, भारतमाला -1 के लिए निर्धारित 76,999 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में से 70,950 किलोमीटर लंबाई के राष्ट्रीय राजमार्गों को एनएएचई डेवलप कर रहा। एनएएचआई द्वारा कार्यान्वित की जा रही परियोजनाओं के निर्माण के तरीके को तय करने की शक्ति भी उसे सौंपी गई थी। ऑडिट में पाया गया कि एनएचएआई द्वारा निर्माण के तरीके पर निर्णय किसी वैध औचित्य के बिना लिया जा रहा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीपीपी-1 के लिए सीसीईए द्वारा निर्धारित मूल्यांकन और अनुमोदन तंत्र का कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा पालन नहीं किया जा रहा था।

ऊँची लागत के तर्क
रिपोर्ट में अप्रैल 2022 से इस पर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए कहा गया है कि - द्वारका एक्सप्रेसवे को अंतर-राज्यीय यातायात की सुचारु आवाजाही की अनुमति देने के लिए न्यूनतम एंट्री-एग्जिट व्यवस्था के साथ आठ-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर के रूप में डेवलप करने का निर्णय लिया गया था। और इसे ही इसे ऊंची लागत का कारण बताया गया।

लेकिन भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने कहा कि 55,432 यात्री वाहनों के औसत दैनिक यातायात के लिए आठ लेन (एलिवेटेड लेन) की योजना या निर्माण का रिकॉर्ड पर कोई औचित्य नहीं था। 2,32,959 यात्री वाहनों के औसत वार्षिक दैनिक यातायात के लिए केवल छह लेन (ग्रेड लेन पर) की योजना/निर्माण की गई थी।

- यह एकमात्र राजमार्ग नहीं है जिसकी स्वीकृत लागत और वास्तविक लागत में अंतर है। रिपोर्ट से पता चला कि पूरे भारत में, भारतमाला परियोजना के तहत स्वीकृत लागत स्वीकृत लागत से 58 प्रतिशत अधिक थी।

- 26,316 किमी की परियोजना लंबाई की स्वीकृत लागत 8,46,588 करोड़ (32.17 करोड़ रुपये/किमी) थी, जबकि सीसीईए द्वारा अनुमोदित 34,800 किमी की लंबाई की लागत 5,35,000 करोड़ (15.37 करोड़ रुपये/किमी) थी।

- बढ़ती लागत के बावजूद, 34,800 किमी राष्ट्रीय राजमार्गों को पूरा करने की 2022 की समय सीमा पूरी नहीं हुई है। 31 मार्च 2023 तक केवल 13,499 किमी राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई पूरी की गई है, जो सीसीईए द्वारा अनुमोदित लंबाई का 38.79 प्रतिशत है। इसमें कोविड महामारी के दौरान किया गया निर्माण भी शामिल है।

लागत अनुमान में बड़े बदलाव

लागत में भारी वृद्धि के बारे में कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजनाओं के दायरे और लागत अनुमान में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इसके अलावा, अपनाई गई समृद्ध परियोजना विशिष्टताओं ने भारतमाला परियोजना चरण 1 के तहत प्रदान की गई परियोजनाओं की स्वीकृत लागत को बढ़ा दिया है। इसके परिणामस्वरूप निर्माण की लागत में प्रति किमी 10 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है।

अधिक धनराशि की आवश्यकता को देखते हुए, अन्य योजनाओं के लिए स्वीकृत धनराशि (1,57,324 करोड़ रुपये) का उपयोग किया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक, अन्य योजनाओं के तहत स्वीकृत 78 ऐसी परियोजनाएं (कुल मिलाकर 1,752 किमी) को 31 मार्च 2023 तक भारतमाला परियोजना चरण -1 की उपलब्धियों के रूप में बताया जा रहा था।
नहीं किया गया सख्ती से पालन

विसंगतियां सिर्फ फंड प्रबंधन में ही मौजूद नहीं थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां तक कि सीसीईए द्वारा तय किए गए मूल्यांकन और अनुमोदन तंत्र का भी सख्ती से पालन नहीं किया गया। कैग ने कहा कि यहां सफल बोलीदाताओं द्वारा निविदा शर्तों को पूरा नहीं करने या फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बोलीदाताओं का चयन किए जाने के मामले थे। स्वीकृत विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के बिना या दोषपूर्ण विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के आधार पर कार्य आवंटित किया गया है।

- इसमें कहा गया है कि कार्यान्वयन एजेंसियां अभी भी अपेक्षित भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित किए बिना परियोजनाएं आवंटित कर रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप परियोजनाओं का निर्माण शुरू होने और उनके पूरा होने में देरी हो रही है। इसके अलावा, कई भारतमाला परियोजनाएं निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए पर्यावरण मंजूरी के बिना कार्यान्वित की जा रही थीं।

- इसमें कहा गया है कि निर्माण के सभी चरणों में सुरक्षा सलाहकारों को भी सुनिश्चित नहीं किया गया था। कुछ परियोजनाओं के मामले में मूल्य-समायोजन फॉर्मूले की गलत गणना के कारण, ठेकेदारों/रियायत प्राप्तकर्ताओं को 99.16 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मूल्य समायोजन का भुगतान किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि एचएएम/बीओटी परियोजनाओं के लिए एस्क्रो खातों से 3,598.52 करोड़ रुपये की धनराशि का हेरफेर किया गया था।

- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतमाला परियोजना के तहत प्रति दिन निर्मित परियोजना की गति 2018-19 में 1.04 किमी से बढ़कर 2022-23 में 12.37 किमी हो गई है।

टोल में झोल

सीएजी की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि दक्षिण भारत के कई राज्यों में टोल नियमों का उल्लंघन किया गया है, जिससे सड़क उपयोगकर्ताओं पर 154 करोड़ रुपये का अनुचित बोझ पड़ा है। एनएच शुल्क संशोधन नियम 2013 के गैर-कार्यान्वयन के कारण, एनएचएआई ने निर्माण की विलंबित अवधि के दौरान तीन टोल प्लाजा (नाथावलासा, चलागेरी, हेब्बालु) में यूजर शुल्क एकत्र करना जारी रखा, हालांकि संशोधित नियम में कहा गया है कि विलंबित अवधि के लिए कोई यूजर शुल्क नहीं लगाया जाएगा। . सड़क यूजर्स से परियोजनाओं की विलंबित अवधि के दौरान यूजर शुल्क लिया जाना जारी रखा गया।

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