Chamunda Maa Murti History: चामुंडा मूर्ति फ्रांस भेजने से भारत का इनकार
Chamunda Maa Murti History: भारत ने अपनी संस्कृति और धार्मिक भावनाओं को बताते हुए फ्रांस को चामुंडा की मूर्ति भेजने से इंकार कर दिया है। फ्रांस द्वारा चामुंडा मंदिर से चुराई गई मूर्ति को फ्रांस में स्थापित किया जाने की योजना थी, लेकिन भारतीय सरकार ने इसे इंकार कर दिया है।
Chamunda Maa Murti History: नई दिल्ली, 14 मई, 2000, भारत ने ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व की चामुंडा की मूर्ति को फ्रांस में आयोजित होने वाली अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी ‘मिशन 2000‘ में प्रदर्शन के लिए देने से मना कर दिया है। यह प्रदर्शनी इसी माह फ्रांस के एवियान शहर में होगी। इस शहर को फ्रांस की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। भारत सरकार का तर्क है कि वह यह मूर्ति भेजे जाने की स्थिति में नहीं है। लेकिन इस तर्क को न मानते हुए प्रदर्शनी के आयोजकों ने भारत सरकार से किए जा रहे पत्र-व्यवहार की भाषा तल्ख कर दी है।
आयोजकों की ओर से संस्कृति मंत्रालय और महानिदेशक राष्ट्रीय संग्रहालय को लिखे गए पत्र में इस ऐतिहासिक महत्व की प्रदर्शनी में चामुंडा की मूर्ति न भेजे जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया है। मूर्ति को प्रदर्शनी में न भेजे जाने का जो कारण भारत सरकार ने बताया है फ्रांस ने उसे अपर्याप्त मानते हुए अपनी नाराजगी दर्ज कराई है। प्रदर्शनी के आयोजकों की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि इससे पहले जब 1986 में इस मेले का आयोजन हुआ था, तब इस मूर्ति केा फ्रांस भेजा गया था। अब आखिर ऐसा क्या हो गया कि इसे भेजने में दिक्कत आ रही है।
गौरतलब है कि 1986 की प्रदर्शनी में यह मूर्ति खासे आकर्षक का केंद्र थी। अपने तरह की विश्व की यह अद्वितीय मूर्ति दसवीं शताब्दी की बताई जाती है। यह उड़ीसा के भुवनेश्वर संग्रहालय में रखी हुई है। इस बात के ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि काले साफ्ट स्टोन से बनी इस आदमकद मूर्ति की लंबे समय तक मंदिर में पूजा भी होती रही है। इसे तांत्रिक रुप से सिद्ध मूर्ति भी माना जाता है।
फ्रांस ने इस प्रदर्शनी के लिए भारत से दो मूर्तियां चामुंडा और ब्याल और कुछ पेंटिंग मंगाई हैं। ब्याल मूर्ति भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के पास है। इसे फ्रांस भेजने के लिए सर्वेक्षण की महानिदेशक कमल आनंद तैयार हैं। उन्होंने प्रदर्शनी के आयोजकों को इससे अवगत भी करा दिया है। यह मूर्ति कोणार्क मंदिर की है। छठी शताब्दी की यह मूर्ति भी लंबे समय तक मंदिर में रही है।
राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक राहुल देव चौधरी से इस विषय में बातचीत करने पर पहले तो उन्होंने इस प्रकरण से अनभिज्ञता जताई। लकिन बाद में बताया कि मूर्ति उड़ीसा सरकार की है, इसे भेजने और न भेजने का फैसला पूरी तरह राज्य सरकार से जुड़ा है। इसलिए इस पर हम कोई निर्णय नहीं कर सकते। यदि उड़ीसा सरकार हमें अनुमति देंगी तो हम इसे पैक करके भेज देंगे। उन्होंने यह भी बताया कि हम अपने संग्रहालय से इस प्रदर्शनी के लिए कई पेंटिंग भेज रहें है फिर भी चामुंडा की मूर्ति के लिए हाय-तौबा क्यों मचाया जा रहा है।
संग्रहालय के ही एक अन्य अधिकारी ने यह भी कहा कि आखिर फ्रांस क्यों हमारी धार्मिक महत्व की मूर्तियां ही प्रदर्शनी के लिए मांग रहा है। फ्रांस के मागने का लहजा अनुरोध का नहीं, वरन आदेशात्मक है। संग्रहालय के प्रदर्शनी अधिकारी डॉ. रधुराज सिंह चैहान ने बताया कि उड़ीसा सरकार ने यह तय कर लिया है कि वह चामुंडा की मूर्ति फ्रांस नहीं भेजेगी । अपनी तरह की अद्वितीय व अनुपलब्ध इस मूर्ति के फ्रांस भेजे जाने से इसके खंडित होने का खतरा है। यह पूछे जाने पर कि 1986 में इसे फ्रांस की प्रदर्शनी में कैसे भेजा गया था, उन्होंने कहा कि पहले इस संदर्भ में केंद्र सरकार की कोई नीति नहीं थी। किसी तरह का कोई वर्गीकरण नहीं था। लेकिन अब सरकार वैसी मूर्तियां की पहचान कर रही है, जिन्हें बाहर भेजे जाने से कोई दिक्कत पेश आ सकती है। यह मूर्ति इन मूर्तियों में सर्वाधिक संवेदनशील है।
केंद्रीय संस्कृति सचिव डॉ. आर.वी.अय्यर ने इस बाबत कहा कि यह मूर्ति बहुत पुरानी है। इसकी स्थिति बहुत खराब है। हमने इसका परीक्षण करा लिया है। यह बाहर भेजे जाने की स्थिति में नहीं है। इसलिए हम इसे बाहर नहीं भेज रहे हैं। बाहर भेजने से इसके टूटने-फूटने का खतरा है। इस मूर्ति को फ्रांस न भेजे जाने के कारणों से प्रदर्शनी के आयोजक खासे असहमत हैं। पत्र-व्यवहार बताते हैं कि इसे लेकर दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्तों में खटास बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि फ्रांस ने इस मूर्ति को प्रदर्शनी में ले जाने और रख-रखाव के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंड पूरा करने का आश्वासन भी दिया है।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक 15 मई, 2000 को प्रकाशित)