Cheetah Project: चीते तो आ गए, अब आगे क्या होगा
Cheetah Project: नामीबिया से 8 चीतों के कुनो में आने के बाद असली काम शुरू होगा। योजना यह है कि नर और मादा को अलग-अलग लेकिन आस-पास के पिंजरों में रखा जाए ताकि वे रिहाई से पहले एक-दूसरे को जान सकें।
Cheetah Project in MP: नामीबिया से 8 चीतों के कुनो में आने के बाद असली काम शुरू होगा। योजना यह है कि नर और मादा को अलग-अलग लेकिन आस-पास के पिंजरों में रखा जाए ताकि वे रिहाई से पहले एक-दूसरे को जान सकें। क्वारंटाइन बाड़े को प्राकृतिक शिकार के साथ स्टॉक किया जाएगा । ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि खुले में अपनी रिहाई से पहले चीते भारतीय शिकार प्रजातियों का शिकार करने के आदी हो जाएं। रेडियो कॉलर वाले नर चीते पहले रिलीज़ होंगे।
परियोजना की कार्य योजना में कहा गया है कि बाड़े में मादा चीतों की उपस्थिति यह सुनिश्चित करेगी कि नर बहुत दूर न भटकें। अगले चरण में, रेडियो कॉलर वाली मादा चीतों को नर चीतों के 1-4 सप्ताह बाद छोड़ा जाएगा। ये इस बात पर निर्भर करता है कि नए वातावरण में नर चीते कैसे बसते हैं। यदि कोई जानवर अवांछनीय वातावरण में प्रवेश करता है, तो उसे वापस लाया जाएगा। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो लगभग 15 वर्षों में चीतों की जनसंख्या को कुनो के भीतर 21 की अपनी सीमा तक पहुंच जाना चाहिए।
इस अवधि के दौरान, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अन्य जगहों पर कुछ अन्य छोटे चीता एनक्लेव बनाए जाएंगे। कम से कम पांच साल और अधिकतम 10 साल तक अफ्रीका से चीतों की आपूर्ति जारी रहेगी। कुनो राष्ट्रीय उद्यान की सीमाओं को कम से कम प्रारंभिक वर्षों के दौरान, यदि आवश्यक हो तो उचित बाड़ के माध्यम से सुरक्षित किया जाएगा। एक बार जब अधिक से अधिक कुनो परिदृश्य सुरक्षित और बहाल हो जाता है, तो 30-40 वर्षों में चीतों की सबसे बड़ी आबादी 36 तक जाने का अनुमान है।
परियोजना के जनसंख्या व्यवहार्यता विश्लेषण ने दीर्घकालिक चीता कंसंट्रेशन की उच्च संभावना दिखाई है। चीता जनसंख्या को लगातार बढ़ाने के लिए प्रमुख समाधान दक्षिण अफ़्रीकी मॉडल को अपनाना है जो आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर अलग-अलग जानवरों को एक बाड़ वाले रिजर्व से दूसरे में स्थानांतरित करता है। जगह जगह चीतों की कुछ छोटी आबादी बनाना और बनाए रखना बहुत व्यवहारिक नहीं बताया जाता है। भारत में संरक्षण के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चीता आबादी को मानवीय हस्तक्षेप से कैसे बचाये रखा जाए।
चीता परियोजना लुप्तप्राय भारतीय भेड़िये और निकट-विलुप्त भारतीय बस्टर्ड (जीआईबी) जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों को लाभान्वित करने का भी वादा करती है। कुनो को घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की मेजबानी करने के लिए जाहिरा तौर पर चीता मिल रहा है। चीता आबादी के बसने के बाद कुनो में शेरों को पेश किया जा सकता है। प्रोजेक्ट लायन भी भारत की एक महत्वपूर्ण योजना है। अभी गुजरात के गिर तक शेर सीमित हैं जबकि उन्हें राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी बसाने की तमाम कोशिशें की गईं लेकिन सभी में राजनीति का पलीता लग गया। वन्य जीव संरक्षकों को चिंता है कि कहीं अब शेरों के विस्तार पीछे न छूट जाए।