एक IPS, जो बाद में IAS और फिर CM बना, आज जिंदगी और मौत से लड़ रहा जंग

छत्तीसगढ़  के पूर्व सीएम अजीत जोगी  की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती अजीत जोगी कोमा में हैं। डॉक्टर उनके इलाज में जुटे हैं। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है।

Update:2020-05-10 11:48 IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम अजीत जोगी की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है। रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती अजीत जोगी कोमा में हैं। डॉक्टर उनके इलाज में जुटे हैं। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। कार्डियक अरेस्ट के बाद बीते शनिवार को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

चिकित्सकों के मुताबिक हालत में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है, लेकिन स्थिति अब भी नाजुक बनी हुई है। आईसीयू में ही उनका इलाज जारी है। अजीत जोगी के लिए अगले 48 घंटे काफी अहम माने जा रहे हैं।

हालांकि रविवार सुबह डॉक्टरों ने बताया कि उनकी हालत में मामूली सुधार है, लेकिन स्थिति अभी भी चिंताजनक ही बनी हुई है। दरअसल, कल अजीत जोगी ने गंगा इमली खायी थी।

इसी दौरान गलती से इमली का बीज उनकी सांस की नली में फंस गया था। जिसके बाद उन्हें पहले रेस्पेरेटरी अरेस्ट और फिर कॉर्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) आ गया था। हालांकि बाद में डॉक्टरों ने उनकी सांस की नली में फंसे इमली के बीज को निकाल दिया था।

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कौन हैं अजीत जोगी?

अजित जोगी मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं। बाद में वे आईपीएस और फिर उसके दो साल बाद आईएएस बने।

जिसने रिकॉर्ड वक्त तक कलेक्टरी की और फिर फिर एक दिन उसके दुश्मन ने ही उसको सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया। ये कहानी है छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की।

1985, शहर इंदौर। रात का वक्त, रेसिडेंसी एरिया स्थित कलेक्टर का बंगला। कलेक्टर साहब सो रहे हैं। अचानक फोन बजता है। दौड़कर एक कर्मचारी उठाता है। बताता है – कलेक्टर साहब सो गए हैं।

पर फोन की दूसरी तरफ से अधिकार भरे स्वर में आदेश आता है – कलेक्टर साहब को उठाइये और बात करवाइये। साहब जगाए जाते हैं। फोन पर आते हैं। दूसरी तरफ से आवाज आती है –

ये फोन था प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पीए वी जॉर्ज का। और फोन उठाने वाले थे अजीत जोगी। नेता नहीं, कलेक्टर अजीत जोगी। पर 2:30 घंटे बाद जब दिग्विजय सिंह कलेक्टर आवास पहुंचे।

तो वो नेता जोगी बन चुके थे। कांग्रेस जॉइन कर ली। कुछ ही दिन बाद उनको कांग्रेस की ऑल इंडिया कमिटी फॉर वेलफेयर ऑफ़ शेड्यूल्ड कास्ट एंड ट्राइब्स के मेंबर बना दिया गया। कुछ ही महीनों में राज्यसभा भेज दिए गए।

राजीव गांधी की पसंद थे अजीत जोगी

जोगी कांग्रेस में राजीव की पसंद से आए थे। ये वो वक्त था जब राजीव ओल्ड गार्ड्स को ठिकाने लगा नई टीम बना रहे थे। एमपी से दिग्विजय सिंह उनकी लिस्ट में थे। छ्त्तीसगढ़ जैसे आदिवासी इलाके के लिहाज से जरूरत लगी एक नए लड़के की।

जो शुक्ला ब्रदर्स को चुनौती दे सके। इस तरह राजीव एंड कंपनी की नजर गई जोगी पर। एक तेज तर्रार आईएएस।

जो बोलता भी बहुत था। काम भी करता था। कांग्रेस जॉइन करने के बाद अजीत की गांधी परिवार से नज़दीकियां बढ़ती रहीं।

अजीत जोगी सीधी और शहडोल में लंबे समय तक कलेक्टर रहे। सीधी में पड़ता है चुरहट, जहां के अर्जुन सिंह का उस वक़्त मध्यप्रदेश में सिक्का चलता था।

अजीत जोगी ने हवा का रुख भांप अर्जुन को अपना गॉडफादर बना लिया। बड़ा हाथ सिर पर आया तो अजीत खुद को पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों का नेता मानने लगे। इतने बड़े कि जो दिग्विजय सिंह उन्हें राजनीति में लाए थे, उनके ही खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

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सीएम बनने के लिए दिग्विजय और जोगी आए थे आमने-सामने

1993 में जब दिग्विजय सिंह के सीएम बनने का नंबर आया तो जोगी भी दावेदार थे। दावेदारी चली नहीं। पर दिग्विजय जैसा एक दोस्त दुश्मन जरूर बन गया। इस दुश्मनी को याद रखिएगा। ज़िक्र फिर आएगा।

1999। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए आई। छोटे राज्यों की मांग ने जोर पकड़ी। बीजेपी खुद छोटे राज्यों की समर्थक। जून 2000 आते-आते तय हो गया कि देश में तीन नए राज्य बनेंगे।

इनमें एक था मध्यप्रदेश से अलग होकर बनने वाला छत्तीसगढ़। 1924 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पहली बार इसकी मांग उठी थी। जुलाई 2000 में पूरी हो सकी। ये अलग होने की प्रक्रिया 31 अक्टूबर 2000 तक चली।

पूरा मध्यप्रदेश बेचैनी में डूबा रहा। बेचैनी स्वाभाविक भी थी। 44 साल से उनसे जुड़ा ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा अगल हो रहा था। और ज़मीन के इस टुकड़े के साथ विदाई ले रहे थे 90 विधायक।

श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, राजेंद्र शुक्ल, मोतीलाल वोरा। ये सब हो गए छत्तीसगढ़ के। अब इनमें से मुखिया कौन हो? सबसे आगे थे कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ला।

छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा बना लिया। ताकत दिखाने के लिए12 विधायक समेत पर उतरे।

चर्चा यहां तक फैली कि वो मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी का सपोर्ट ले सकते हैं। बीजेपी को भी शुक्ल में विभीषण नजर आ रहा था। दूसरी तरफ जोर लगाए थे एमपी के पूर्व सीएम मोतीलाल वोरा।

जीवन में कई बार आए उतार चढ़ाव

झगड़ा खत्म करने के लिए कांग्रेस हाइकमान ने कहा – छत्तीसगढ़ की पुरानी मांग पूरी करो – आदिवासी सीएम बनाओ। अब प्रमाणपत्र अजीत के पास अनुसूचित जनजाति वाला है। लेकिन इस पर सालों विवाद चला है।

कभी कोर्ट उनके खिलाफ फ़ैसला देती, कभी जाति छानबीन समिति की जांच होती। लेकिन 2018 के सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फ़ैसला पलट दिया कहा, अजीत जोगी आदिवासी ही हैं।

खैर, 2018 से वापस 2000 चलते हैं। आदिवासी सीएम की मांग को पूरा कर कांग्रेस अपने गढ़ को बचाए रखना चाहती थी।

ऐसे लॉटरी खुली अजीत जोगी की। अब सीन ये था कि जोगी को विधायक दल का नेता बनाने के लिए चाहिए था दिग्विजय का समर्थन।

क्योंकि विधायक उन्हीं के सगे थे। एक वक्त था जब दिग्विजय ने जोगी के सीएम बनने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन अब दोनों में 36 का आंकड़ा था।

हाइकमान ने इसका ये इलाज निकाला कि दिग्विजय को ही आधिकारिक तौर पर जोगी का नाम आगे बढ़ाने और जिताने का ज़िम्मा दे दिया।

ऐसे बने थे छत्तीसगढ़ के सीएम

दिल्ली में अब तक कांग्रेस हाइकमान का मतलब सोनिया गांधी होने लगा था।

और दिग्विजय उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहते थे। तो उन्होंने दुश्मनी पोस्टपोन कर दी। 31 अक्टूबर 2000 को अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बन गए।

लेकिन सपना पूरा होने पर भी जोगी को दुनिया अधूरी ही लग रही थी। उन्हें अपनी बेटी याद आने लगी।

जो कुछ दिन पहले ही दुनिया छोड़ गई थी। नाम था अनुषा। बेटी से बहुत प्यार करते थे, रायगढ़ के कुतरा रोड पर उनका जो बंगला है उसका नाम भी बेटी के नाम पर रखा है, अनुषा विला।

जोगी तब इंदौर में रहते थे। बताते हैं कि वो किसी से प्यार करती थी, शादी करना चाहती थी लेकिन पिता की मर्ज़ी नहीं थी।

बिटिया नहीं मानी। 12 मई 2000, बताते हैं उस दिन सोनिया गांधी इंदौर आई थीं, पिता सोनिया गांधी की अगवानी में लगे थे।

घर में बेटी ने जान दे दी। इंदौर के कब्रिस्तान में उसे दफना दिया गया।

अजीत बेटी के दफनाए जा चुके शव को पैतृक गांव गोरेल्ला ले जाना चाहते थे। लेकिन कब्र खोदने की अनुमति नहीं मिल रही थी।

अजीत जोगी के पिता ने अपनाया था ईसाई धर्म

अजीत सीएम बने तो इंदौर नगर निगम ने अनुमति दे दी। 5 जून 2001 को रातों-रात कब्र खोदकर देह निकाली गई। राजकीय प्लेन से बिलासपुर ले जाई गई।

अजीत जोगी दिल्ली में थे। अचानक कलेक्टर से मिलने रायपुर पहुंच गए और बेटी का शव फिर दफना दिया गया। दफ़न – इसाइयों में अंतिम संस्कार की एक प्रथा।

अजीत जोगी के पिता ने ईसाई धर्म अपना लिया था। ये ईसाई धर्म वाली बात यहां तक पहुंचती है कि जब वो राज्यसभा में थे।

तब जान-बूझकर हर रविवार उस गिरजे में जाते जहां सोनिया गांधी जाती थीं। इस तरह वो सोनिया गांधी के करीबी बनना चाहते थे।

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