संकट में सीएम की कुर्सी: उद्धव फंसे मुश्किल में, टूटा कोरोना का कहर
देश में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और इनकी संख्या करीब पांच हजार तक पहुंच गई है। यह वायरस अभी तक सब करीब सवा सौ लोगों की जान ले चुका है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और इनकी संख्या करीब पांच हजार तक पहुंच गई है। यह वायरस अभी तक सब करीब सवा सौ लोगों की जान ले चुका है। इस वायरस का सबसे भीषण प्रकोप महाराष्ट्र में फैला हुआ है और राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इन दिनों कोरोना वायरस के भारी संकट से जूझ रहे हैं। इस बीच एक दूसरा बड़ा संकट उनकी कुर्सी के लिए खड़ा हो गया है। महाराष्ट्र में सीएम का पद संभालने के बाद अभी तक उद्धव विधानसभा या विधानपरिषद के सदस्य नहीं बन सके हैं। कोरोना संकट की वजह से महाराष्ट्र में एमएलसी का चुनाव भी टाल दिया गया है। इस कारण उद्धव की सीएम की कुर्सी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
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कोरोना नहीं खड़ी कर दी बड़ी मुश्किल
उद्धव को महाराष्ट्र की कमान संभाले करीब साढ़े चार महीने हो चुके हैं। उन्होंने पिछले साल 28 नवंबर को सूबे की कमान संभाली थी। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार उन्हें छह महीने के भीतर राज्य के किसी सदन का सदस्य होना जरूरी है। उनके लिए यह छह महीने की अवधि 28 मई तक है और उसके पहले ही उन्हें विधानमंडल का सदस्य बनना होगा, लेकिन कोरोना ने उनके रास्ते में बाधाएं खड़ी कर दी हैं।
अब विधायक बनना मुश्किल
यदि उद्धव ठाकरे विधानसभा का सदस्य बनना चाहें तो इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी के किसी विधायक का इस्तीफा दिलवाना होगा। महाराष्ट्र की सियासत की स्थितियों को देखते हुए उद्धव ठाकरे शायद ही इसके लिए तैयार हों। यदि उद्धव ठाकरे इसके लिए तैयार भी हों तो चुनाव आयोग को 29 मई से 45 दिन पहले इसके लिए अधिसूचना जारी करनी होगी। मौजूदा स्थितियों में यह भी संभव नहीं लगता।
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एमएलसी का चुनाव बेमियादी टला
दूसरा रास्ता विधानपरिषद का सदस्य बनना है और इसके लिए आयोग को सिर्फ 15 दिन पहले ही अधिसूचना जारी करनी होती है। महाराष्ट्र विधानपरिषद के 9 सदस्यों का कार्यकाल 24 अप्रैल को खत्म होने वाला है। इन नौ सीटों पर चुनाव होने वाले थे मगर कोरोना संकट की वजह से चुनाव आयोग ने इसे टाल दिया है और वह भी बेमियादी।
परेशान है शिवसेना
अभी तक शिवसेना के नेता विधानपरिषद की सीट को लेकर काफी निश्चिंत थे क्योंकि उनका मानना था के परिषद का सदस्य बनकर उद्धव की सारी मुश्किलें दूर हो जाएंगी। लेकिन अब चुनाव आयोग के बेमियादी चुनाव टालने से शिवसेना के सामने एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है।
कुर्सी बचाने का पहला विकल्प
शिवसेना के नेता उद्धव की कुर्सी को बचाने के लिए दूसरे विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि अब उद्धव के सामने सिर्फ दो ही विकल्प बचते हैं। इसमें पहले विकल्प का फैसला राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के हाथों में है।
विधानपरिषद में राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों की 2 सीटें अभी रिक्त पड़ी हैं। इनमें एक सीट के लिए राज्य सरकार उद्धव का नाम राज्यपाल के पास भेज सकती है। यदि राज्यपाल इस सिफारिश पर अपनी सहमति जता देते हैं तो उद्धव की कुर्सी बच सकती है।
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वैसे शिवसेना भी इससे बचना चाहती है क्योंकि उसे पता है कि इसे लेकर उस पर सियासी हमले शुरू हो जाएंगे। यही कारण है कि मनोनयन के जरिए कुर्सी बचाने का फार्मूला शिवसेना नेताओं के भी गले नहीं उतर रहा।
कुर्सी बचाने का दूसरा विकल्प
अब उद्धव के सामने जो दूसरा विकल्प बचता है वह भी काफी मुश्किलों भरा है। दूसरा विकल्प यह है कि शपथ ग्रहण से 6 माह की अवधि पूरी होने से पहले ही उद्धव अपने पद से इस्तीफा दे दें और उसके बाद दोबारा सीएम पद की शपथ लें। ऐसा करने पर उन्हें विधानमंडल का सदस्य बनने के लिए छह महीने का और समय मिल जाएगा।
इस रास्ते में भी तमाम मुश्किलें
इस विकल्प में भी मुश्किल यह है कि जब कोई मुख्यमंत्री इस्तीफा देता है तो उसे पूरे मंत्रिमंडल का इस्तीफा माना जाता है। ऐसे में उद्धव के दोबारा सीएम पद की शपथ लेने पर पूरे मंत्रिमंडल को नए सिरे से शपथ दिलानी होगी।
कोरोना वायरस के इस दौर में केवल कुर्सी बचाने के लिए यह सब करना संभव नहीं दिख रहा है और यह सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन जाएगा।
इसे लेकर शिवसेना पर गैरजिम्मेदाराना रुख अपनाने का आरोप भी लगेगा। ऐसे में इस विकल्प में भी दिक्कतें हैं। शिवसेना के नेता उद्धव की कुर्सी पर आए इस संकट को दूर करने में लगे हुए हैं।
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