अंतरिक्ष में आतिशबाजी, कुछ ही घंटों में ऐसा दिखेगा आसमान का नजारा

साल 2020 में मई का महीना अंतरिक्ष रहस्यों के बीच खूबसूरत नजारों का गवाह बनने वाला है। 13 मई को धरती से करीब 8.33 करोड़ किलोमीटर दूर से धूमकेतू गुजरने वाला है।

Update: 2020-05-12 06:01 GMT

नई दिल्लीः कोरोना संकट के बीच विश्व को ऐसा नजारा देखने को मिलेगा, जिसके बाद हर किसी की आँखें चौंदियां जाएंगी। दरअसल, 13 मई को अंतरिक्ष में आतिशबाजी होने वाली है। धरती से आसमान में सैकड़ों झिलमिलाते धूमकेतु नजर आएंगे। ये चमचमाते धूमकेतु 36 घंटों में धरती के बगल से निकलेंगे।

13 मई को पृथ्वी के बगल से गुजरेगा 'कॉमेट स्वान'

साल 2020 में मई का महीना अंतरिक्ष रहस्यों के बीच खूबसूरत नजारों का गवाह बनने वाला है। 13 मई को धरती से करीब 8.33 करोड़ किलोमीटर दूर से धूमकेतू गुजरने वाला है। इसका नाम है कॉमेट स्वान। अभी ये तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा है और 8.50 करोड़ किलोमीटर दूर है।

इसलिए पड़ा 'स्वान' नाम

बता दें कि धूमकेतु के धरती के बगल से गुजरने के बारे में एमेच्योर एस्ट्रोनॉमर माइकल मैटियाज्जो ने 11 अप्रैल को ही जानकारी दे दी थी।

नासा के सोलर एंड हेलियोस्फेयरिक ऑब्जरवेटरी (SOHO) से आंकड़े देखने के दौरान एस्ट्रोनॉमर माइकल SOHO SWAN से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहे धूमकेतु की तस्वीर दिखाई दी। जिसके बाद इस धूमकेतु का नाम स्वान रख दिया गया।

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भारत में खुली आखों से नहीं दिखेगा धूमकेतु स्वान:

ये दुखद है कि भारत के लोग इस धूमकेतु को खुली आखों से नहीं देख सकेंगे। इसकी वजह ये हैं कि धूमकेतु स्वान भूमध्य रेखा के दक्षिण से होकर गुजरेगा, इसलिए धरती पर जो लोग दक्षिण में रहते हैं वहीं इसे देख सकेंगे। बालाँकि भारत भूमध्य रेखा के उत्तर में है। ऐसे में भारत के लोग इसे दूरबीन से देख सकते हैं।

ऐसा दिखेगा धूमकेतु स्वान:

जब अब आपसमान में देखेंगे तो हरे रंग में काफी तेजी से चमकता हुआ सितारा दिखाई देगा। यह पाइसेज कॉन्स्टीलेशन (मीन नक्षत्र) की तरफ से तेजी से आ रहा है।

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23 मई को कॉमेट एटलस होगा धरती के करीब

इतना ही नहीं इस महीने दो बार ऐसा होगा। 23 मई को कॉमेट एटलस (Comet ATLAS) धरती के बगल से गुजरने वाला है। इन्हें आप बिना किसी दूरबीन के खुली आंखों से देख सकेंगे। अभी तक इसकी दूरी का अंदाजा नहीं लग पाया है।

गौरतलब है कि 'कॉमेट एटलस' की खोज 28 दिसंबर 2019 को हुई थी। अमेरिका के हवाई द्वीप पर लगे एस्टेरॉयड टेरेस्ट्रियल इंपैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (ATLAS) पर इसका नाम रखा गया है।

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