मोदी के नौकरशाही पर तंजः बात के गंभीर इशारों को समझने की जरूरत
चेयरमैन ने उनको लिखा कि फिर ऐसा करो भाई, 1975 के बाद जो भी कमीशन बैठे वहां जाना...मेरा सिर क्यों खा रहे हो। तो उसको लगा कि ये तो मामला बिगड़ गया...तो उसको लगा कि कहना ठीक है; कहने लगा मैं बता देता हूं मैं कौन हूं।
रामकृष्ण वाजपेयी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह आरोप लगता रहा है कि वह नौकरशाही पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं और प्रमुख पदों पर पूर्व नौकरशाहों को तवज्जो देते हैं। ये भी कह सकते हैं कि मोदी नौकरशाही को लेकर पजेसिव हैं। लेकिन जहां बहुत अधिक उम्मीद होती है वहीं पर नाराजगी भी पैदा होती है क्योंकि उस हालत में छोटी सी भी कमी या गलत तरीके से असफलता को इंगित किया जाना अखरता है।
हमारे संविधान निर्माताओं की मंशा के अनुरूप कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका तीनों अपनी अपनी सीमाओं में स्वतंत्र हैं। कोई किसी के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करता है। लेकिन उम्मीद ये ऱखी जाती है कि वह परिस्थितियों से तालमेल बैठाते हुए उचित और अनुचित में भेदकर निर्णय लेंगे। सिर्फ परंपराओं का पालन ही नहीं करते रहेंगे।
मोदी ने संसद में नौकरशाही को लेकर जो बातें कहीं हैं उनको जिन संदर्भों में प्रस्तुत किया जा रहा है वह कुछ गलत प्रतीत होता है। मोदी की बातों का मर्म जानना जरूरी है। ऐसा लगता है कि इसके पीछे मूल में अन्य वजहों के साथ सौ सेवानिवृत्त नौकरशाहों का खुला पत्र लिखना है जिसमें 106 पूर्व नौकरशाहों ने एक खुला पत्र लिखकर संशोधित नागरिकता कानून (CAA) की संवैधानिक वैधता पर गंभीर आपत्तियों का उल्लेख करते हुए कहाथा कि एनपीआर और एनआरआईसी अनावश्यक और व्यर्थ की कवायद है जिससे बड़े पैमाने पर लोगों को दिक्कतें होंगी।
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विदेश न्यायाधिकरण और डिटेंशन कैंप पर सवाल
पत्र में पूर्व नौकरशाहों ने लोगों से सरकार से यह आग्रह करने के लिए कहा था कि वह विदेशी (न्यायाधिकरण) संशोधन आदेश, 2019 के साथ ही डिटेंशन कैंप निर्माण के सभी निर्देश वापस ले और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), 2019 को रद्द करे। पत्र में इन लोगों ने विदेशी (न्यायाधिकरण) संशोधन आदेश, 2019 के तहत विदेश न्यायाधिकरण और डिटेंशन कैंप व्यापक रूप से स्थापित किये जाने पर भी सवाल उठाया था।
मोदी संसद में जब यह कहते हैं एक बात हम जानते हैं, हम सब इस बात को...जो ठहरा हुआ पानी होता है वो बीमारी पैदा करता है…बहता हुआ पानी है जो जीवन को भर देता है, उमंग से भर देता है। जो चलता है...चलता रहे, चलने दो। अरे यार, कोई आएगा तो करेगा, ऐसे थोड़े चलता है जी। जिम्मेदारियां लेनी चाहिए, देश की आवश्यकतानुसार निर्णय करने चाहिए। मोदी की इस बात की ध्वनि कुछ ऐसी ही निकलती है।
नौकरशाही के मक्षिका स्थाने मक्षिका यानी पुरानी लीक की नकल करते जाने प्रधानमंत्री कहते हैं स्टेट्सको…देश को तबाह करने में ये भी एक मानसिकता ने बहुत बड़ा रोल किया है। दुनिया बदल रही है, कब तक हम स्टेट्सको…स्टेट्सको…स्टेट्सको…ऐसे ही करते रहेंगे। तो मैं समझता हूं कि स्थिति बदलने वाली नहीं हैं और इसलिए देश की युवा पीढ़ी ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती है।
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40-50 साल पुरानी घटना का किस्सा
इस संबंध में वह कहते हैं आज मैं घटना सुनाना चाहता हूं और जरूर उससे हमें ध्यान में आएगा कि स्टेट्सको के कारण होता क्या है। ये करीब 40-50 साल पुरानी घटना का किस्सा है, मैंने कभी किसी से सुना था इसलिए उसकी तारीख-वारीख में इधर-उधर हो सकता है। लेकिन जो मैंने सुना था, जो मेरी स्मृति में है...वो मैं बता रहा हूं।
साठ के दशक में तमिलनाडु में राज्य के कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाने के लिए कमीशन बैठा था और राज्य के कर्मचारियों का वेतन बढ़े, इसके लिए उस कमीशन का काम था। उस कमेटी के चेयरमैन के पास एक लिफाफा आया, top secret लिफाफा था। उन्होंने देखा तो उसके अंदर एक अर्जी थी।
अब उसमें लिखा था, जी मैं बहुत साल से सिस्टम में काम कर रहा हूं, ईमानदारी से काम कर रहा हूं लेकिन मेरी तनख्वाह बढ़ नहीं रही है, मेरी तनख्वाह बढ़ाई जाए, ये उसने चिट्ठी लिखी थी। तो चेयरमैन ने जिसने ये चिट्ठी लिखी उसको लिखा भई तुम्हारा, तुम हो कौन, पद क्या है वगैरह। तो उसने फिर जवाब लिखा दूसरा, कि मैं सरकार में जो मुख्य सचिव का कार्यालय है वहां सीसीए के पद पर बैठा हूं। मेरे पास सीसीए के पद पर मैं काम कर रहा हूं।
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तो इनको लगा कि ये सीसीए क्या होता है कुछ पता तो है नहीं, ये सीसीए कौन होता है? तो उन्होंने दोबारा चिट्ठी लिखी-भई हमने यार ये तो इसमें सीसीए शब्द कहीं देखा नहीं, पढ़ा नहीं, ये है क्या, हमें बताओ तो। तो उसने कहा साहब, मैं बंधा हुआ हूं कि 1975 के बाद ही इसके विषय में मैं जिक्र कर सकता हूं, अभी नहीं कर सकता हूं।
चेयरमैन ने उनको लिखा कि फिर ऐसा करो भाई, 1975 के बाद जो भी कमीशन बैठे वहां जाना...मेरा सिर क्यों खा रहे हो। तो उसको लगा कि ये तो मामला बिगड़ गया...तो उसको लगा कि कहना ठीक है; कहने लगा मैं बता देता हूं मैं कौन हूं। अब उसने उनको चिट्ठी लिख कर बताया कि साहब मैं जो हूं वो सीसीए के पद पर कई वर्षों से काम रहा हूं और मुख्य सचिव के कार्यालय में। तो बोला-सीसीए का मतलब होता है- चर्चिल सिगार अस्टिटेंट। ये सीसीए का पद है जिस पर मैं काम करता हूं।
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देश आजाद हो गया
तो ये है क्या, तो 1940 में जब चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे तो त्रिची से...त्रिची सागर हमारे यहां से सिगार जाती थी उनके लिए। और ये सीसीए जो था उसका काम था वो सिगार उनको सही पहुंची कि नहीं पहुंची...इसकी चिंता करना और इसके लिए पद बनाया गया था...उस सिगार की सप्लाई होती थी। 1945 में वो चुनाव हार गए लेकिन फिर भी वो पद बना रहा और सप्लाई भी जारी रही। देश आजाद हो गया।
देश आजाद होने के बाद, इसके बाद भी माननीय अध्यक्ष जी ये पद continue रहा। चर्चिल को सिगरेट पहुंचाने की जिम्मेदारी वाला एक पद मुख्य सचिव के कार्यालय में चल रहा था। और उसने अपने लिए कुछ तनख्वाह मिले, कुछ प्रमोशन मिले, इसके उसने चिट्ठी लिखी।
अब देखिए, ऐसा स्टेट्सको...अगर हम बदलाव नहीं करेंगे, व्यवस्थाओं को देखेंगे नहीं तो ये इससे बड़ा क्या उदाहरण हो सकता है। मैं जब मुख्यमंत्री बना तो एक रिपोर्ट आती थी कि आज कोई balloon नहीं आया और कोई पर्चे नहीं फेंके गए। ये second world war के समय शायद शुरू हुआ होगा, अभी भी वो चलता था। मोदी कहते हैं हमें जिम्मेदारी के साथ देश में बदलाव के लिए हर की कोशिश करनी चाहिए। गलतियां हो सकती हैं, लेकिन इरादा अगर नेक हो तो परिणाम अच्छे मिलते भी हैं, हो सकता है एकाध में हमें न कुछ मिले।
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आप देखिए, हमारे देश में एक समय था कि किसी को अपना सर्टिफिकेट certify करना है तो कॉरपोरेटर, council, उसके घर के बाहर सुबह queue लग जाती थी। और जब तक वो ठप्पा न मारे...और मजा है कि वो तो नहीं मारता था...एक लड़का बाहर बैठा होता था...वो सिक्का मार देता था...और चल रहा था। मैंने कहा भाई इसके क्या मतलब हैं...हम भरोसा करें देश के नागरिक पर...मैंने आ करके वो एक्ट्रेस करने वाली सारी प्रथा को खत्म कर दिया, देश के लोगों को लाभ हुआ। हमने बदलाव के लिए काम करना चाहिए, सुधारों के लिए काम करना चाहिए।
अब हमारे यहां इंटरव्यू होते थे, मैं अभी भी हैरान हूं जी। एक व्यक्ति एक दरवाजे से अंदर आता है, तीन लोगों की पैनल बैठी है...उसका मूड देखते हैं, नाम भी पूरा पूछते नहीं, तीसरा यूं निकल जाता हे। और वो इंटरव्यू कॉल होता है और फिर ऑर्डर दिए जाते हैं। हमने कहा-भई क्या मतलब है। उसका जो एजुकेशन, क्वालिफिकेशन है, उसको सारा इक्ट्ठा करो..मैरिट के आधार पर कम्प्यूटर को पूछो, वो जवाब दे देगा। ये तीसरे और चौथी श्रेणी के लोगों के लिए इंटरव्यू का क्या जमाव बनाया हुआ है।
और लोग कहते थे भई सिफारिश के बिना नौकरी नहीं मिलेगी...हमने खत्म कर दिया। मैं समझता हूं कि देश में हम चीजों को बदलें। बदलने से असफलता के डर से अटक कर रहना...ये कभी भी किसी का भला नहीं करता है। हमने बदलाव करने चाहिए और बदलाव करने का प्रयास हम करते हैं।
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समाज की अपनी ताकत
प्रधानमंत्री आगे एक जगह कहते हैं आज दुनिया बदल चुकी है, समाज की अपनी ताकत है, देश की अंदर ताकत है। हर एक किसी को अवसर मिलना चाहिए और उनको इस प्रकार से बेईमान घोषित करना, उनके लिए गंदी भाषा का प्रयोग करना, ये एक culture किसी जमाने में वोट पाने के लिए काम आया होगा।
वह कहते हैं मैंने लाल किले पर से बोला wealth creator भी देश को जरूरी होते हैं तभी तो wealth बाटेंगे, गरीब तक wealth बाटेंगे कहां से? रोजगार देंगे कैसे? और सब कुछ बाबू ही ये करेंगे IAS बन गया मतलब वो fertilizer का कारखाना भी चलाएगा, IAS हो गया तो वो chemical का कारखाना भी चलाएगा, IAS हो गया वो हवाई जहाज भी चलाएगा।
मोदी सवाल करते हैं ये कौन से बड़ी ताकत बना के रख दी है हमने? बाबूओं के हाथ मे देश देकर के हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी तो देश के हैं, तो देश को नौजवान भी तो देश का है। हम हमारे देश के नौजवानों को जितना ज्यादा अवसर देंगे, मुझे लगता है उसको उतना ही लाभ होने वाला है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौकरशाही को समझाने का प्रयास किया है कि देश को आगे बढ़ाने के लिए लीक छोड़कर आगे निकलने और स्थिति परिस्थिति को देखकर देशहित में निर्णय करें।
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