चुनौतियों से जूझ रही कांग्रेस, दक्षिण में आखिरी किला बचाने में भी पार्टी नाकाम

पुडुचेरी में नारायणसामी के विधानसभा में बहुमत साबित करने में विफल होने के बाद दक्षिण भारत में कांग्रेस का आखिरी दुर्ग भी ढह गया। कभी दक्षिण भारत में मजबूत मानी जाने वाली कांग्रेस को कर्नाटक के बाद अब पुडुचेरी में भी जबर्दस्त सियासी नुकसान उठाना पड़ा है।

Update: 2021-02-23 04:21 GMT
चुनौतियों से जूझ रही कांग्रेस, दक्षिण में आखिरी किला बचाने में भी पार्टी नाकाम (PC: social media)

नई दिल्ली: सियासी रणनीति का अभाव और नेतृत्व को लेकर असमंजस कांग्रेस पर भारी पड़ता दिख रहा है। सोमवार का दिन कांग्रेस के लिए काफी भारी साबित हुआ क्योंकि उसके हाथ से पुडुचेरी की सत्ता भी निकल गई और गुजरात में दिवंगत अहमद पटेल की राज्यसभा सीट पर भी भाजपा ने कब्जा कर लिया।

पुडुचेरी में नारायणसामी के विधानसभा में बहुमत साबित करने में विफल होने के बाद दक्षिण भारत में कांग्रेस का आखिरी दुर्ग भी ढह गया। कभी दक्षिण भारत में मजबूत मानी जाने वाली कांग्रेस को कर्नाटक के बाद अब पुडुचेरी में भी जबर्दस्त सियासी नुकसान उठाना पड़ा है। अब कांग्रेस सिर्फ तीन राज्यों में पूरी तरह अपने दम पर काबिज है जबकि दो राज्यों में वह सहायक की भूमिका में दिख रही है।

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अभी तक नहीं सुलझा नेतृत्व का मुद्दा

पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस का नेतृत्व संकट आज तक नहीं सुलझ सका है। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और तब से देश की यह प्रमुख सियासी पार्टी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के सहारे ही चल रही है।

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पिछले साल 23 से नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर नेतृत्व का संकट सुलझाने की मांग की थी और पार्टी में जल्दी से जल्दी स्थायी अध्यक्ष चुने जाने की मांग की थी मगर अभी तक यह मामला नहीं सुलझ सका है।

पार्टी को लगातार लग रहे सियासी झटके

पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में जल्द ही विधानसभा चुनाव में मगर कांग्रेस ने स्थायी अध्यक्ष का मुद्दा एक बार फिर टाल दिया है।

पार्टी नेतृत्व के इस असमंजस और सटीक रणनीति के अभाव में पार्टी को लगातार सियासी झटके लगते जा रहे हैं मगर पार्टी नेतृत्व की ओर से भाजपा को जवाब देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

ये तीनों राज्य कांग्रेस के हाथ से निकले

पिछले कुछ दिनों के दौरान कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद कांग्रेस को पुडुचेरी में कांग्रेस को बड़ा सियासी झटका लगा है। कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस के साथ मिलकर सरकार चला रही थी मगर कांग्रेस और जेडीएस विधायकों के इस्तीफे के बाद भाजपा को मौका मिल गया और चुनावों में जीत हासिल करने के बाद भाजपा ने कांग्रेस से कर्नाटक भी छीन लिया।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस को 15 सालों के बाद बड़ी मुश्किल से सत्ता में आने में कामयाबी मिली थी मगर वहां भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी को करारा झटका देते हुए कमलनाथ की सरकार गिराने में बड़ी भूमिका निभाई। सिंधिया को कभी कांग्रेस का मजबूत सिपाही माना जाता था मगर उन्होंने भी कांग्रेस को झटका देने में तनिक भी संकोच नहीं किया।

अब तीन राज्यों में सरकार,दो में सहायक

मौजूदा समय में सिर्फ राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अपने दम पर सरकार चला रही है। पार्टी इन तीनों राज्यों में ही मजबूत स्थिति में दिख रही है जबकि झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस सहायक की ही भूमिका में है। बिहार में कांग्रेस राजद से 70 सीटें हासिल करने में तो कामयाब हो गई थी मगर चुनावी नतीजों में वह ताकत दिखाने में पूरी तरह विफल रही।

महागठबंधन की हार के लिए उसे बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है। इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस विभिन्न राज्यों में लगातार अपनी पकड़ खोती जा रही है मगर पार्टी इस समस्या का निदान ढूंढ पाने में विफल साबित हो रही है।

विधानसभा चुनाव में भी मुसीबत

अब जिन राज्यों में जल्द ही विधानसभा चुनाव होना है, उनमें भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में नहीं दिख रही है। पश्चिम बंगाल की सियासी जंग भाजपा और टीएमसी के बीच सिमटती दिख रही है। वैसे कांग्रेस को केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी से अच्छे नतीजे की काफी उम्मीद है मगर देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस इन राज्यों में भी कोई करिश्मा कर पाती है या नहीं।

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तमिलनाडु में कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन कर रखा है जबकि केरल में कांग्रेस के लिए लेफ्ट की चुनौतियों से जूझना आसान नहीं साबित होगा। असम में भाजपा की सरकार है और भाजपा ने यहां अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है। पुडुचेरी में भी भाजपा कांग्रेस को इस बार के चुनाव में झटका देने की तैयारी में जुटी हुई है।

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महंगी साबित हो रही असमंजस की स्थिति

सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा को जवाब देने के लिए कांग्रेस के पास रणनीति का साफ तौर पर अभाव दिख रहा है। इसके साथ ही नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति भी पार्टी के लिए महंगी साबित होती दिख रही है। सबकी नजर इस बात पर टिकी हुई है कि कांग्रेस भविष्य में आने में वाली चुनौतियों से किस तरह से निपटती है।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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