Caste Census: जातीय जनगणना पर पहली बार कांग्रेस का रुख बदला, समर्थन के जरिए विपक्ष को एकजुट बनाने की कोशिश
Caste Census: देश में जातिगत आधार पर जनगणना का मुद्दा काफी दिनों से उठता रहा है मगर कांग्रेस आजादी के पहले से लेकर यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल तक इस मांग का जबर्दस्त विरोध करती रही है। देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी व राजीव गांधी भी इस मांग का खुलकर विरोध कर चुके हैं।
Caste Census: आजादी के पहले से ही जातीय आधार पर जनगणना का विरोध करने वाली कांग्रेस ने अब पलटी मार ली है। भाजपा और मोदी सरकार की घेरेबंदी में जुटी कांग्रेस ने अब जातीय जनगणना का समर्थन करते हुए मोदी सरकार को घेरने की रणनीति तैयार की है। कांग्रेस का यह कदम सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय से ही कांग्रेस जातीय जनगणना का विरोध करती रही है।
जदयू, राजद, सपा और बसपा सहित कई राजनीतिक दलों की ओर से लंबे समय से इस बाबत मांग की जा रही है। ऐसे में कांग्रेस का यह कदम विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में काफी निर्णायक साबित हो सकता है। जदयू ने कांग्रेस के रवैए में आए इस बदलाव का दिल खोलकर स्वागत किया है। जदयू ने इसके लिए कांग्रेस और पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के प्रति आभार भी जताया है।
आजादी के पहले से ही कांग्रेस रही है खिलाफ
देश में जातिगत आधार पर जनगणना का मुद्दा काफी दिनों से उठता रहा है मगर कांग्रेस आजादी के पहले से लेकर यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल तक इस मांग का जबर्दस्त विरोध करती रही है। देश के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी व राजीव गांधी भी इस मांग का खुलकर विरोध कर चुके हैं। देश में 1931 में पहली और आखिरी बार जातीय आधार पर जनगणना की गई थी और उस समय भी कांग्रेस ने इस कदम का तीखा विरोध जताया था। कांग्रेस का कहना था कि इस कदम के जरिए ब्रिटिश सरकार समाज को तोड़ने की साजिश कर रही है।
नेहरू ने किया था संसद में विरोध
10 साल बाद 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण जनगणना नहीं हो सकी थी। बाद में 1947 में देश के आजाद होने के बाद जातियों की गिनती की मांग को ठुकरा दिया गया था। इस संबंध में 1951 में संसद में चर्चा भी हुई थी और उस चर्चा के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जातीय आधार पर जनगणना का तीखा विरोध किया था। आजादी के बाद हुई पहली जनगणना की तैयारी के समय तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल भी इसके पूरी तरह खिलाफ थे। नेहरू की ओर से उठाए गए इस कदम का संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और डॉ अबुल कलाम आजाद ने भी समर्थन किया था।
इंदिरा और राजीव की सरकारों ने मांग ठुकराई
प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू ने 1961 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण को अनुचित ठहराया था। उनका कहना था कि जाति और धर्म के आधार पर आरक्षण व्यवस्था को जायज ठहरा कर सक्षम लोगों और दक्षता को नीचे धकेल दिया जाता है। उन्होंने विशेष रूप से सेवा के क्षेत्र का उल्लेख करते हुए आरक्षण को अनुचित बताया था। केंद्र में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकार ने भी जातिगत आधार पर जनगणना के मुद्दे पर पुराना रुख ही अपनाया था। इंदिरा गांधी ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। 1981 में बीपी मंडल की जातिगत जनगणना की मांग को भी कांग्रेस की ओर से खारिज कर दिया गया था।
विपक्ष की एकजुटता के लिए बदला रुख
अब कांग्रेस ने जाति के आधार पर जनगणना का समर्थन करके अपने रुख में बड़ा बदलाव किया है। सियासी जानकारों का मानना है कि इस कदम के जरिए कांग्रेस विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में जुट गई है। इस कदम के जरिए कांग्रेसी सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों को साधने की कोशिश कर सकती है।
सूत्रों का कहना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से कांग्रेस को सलाह दी गई है कि जातीय जनगणना को विपक्ष का सर्वसम्मत मुद्दा बनाया जाए। इसके बाद ही कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी गई है। अगर सियासी दलों की बात की जाए तो जदयू के अलावा सपा, बसपा, राजद और द्रमुक समेत कई दल जातीय जनगणना के पक्ष में खड़े हैं।
जदयू ने किया कांग्रेस के रुख का स्वागत
इस बीच जदयू ने जाति जनगणना का समर्थन करने पर राहुल गांधी और कांग्रेस को धन्यवाद दिया है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि कांग्रेस का यह कदम सकारात्मक और निर्णायक है। उन्होंने जदयू की ओर से कांग्रेस के इस फैसले का दिल खोलकर स्वागत किया। उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरे देश में जाति के आधार पर जनगणना कराने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर इस दिशा में कदम उठाने की मांग की गई थी मगर मोदी सरकार की ओर से इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया गया। इसके बाद बिहार सरकार की ओर से राज्य कोष के खर्चे पर राज्य में जातीय जनगणना कराने का बड़ा कदम उठाया गया है। बिहार में भाजपा के नेता इस काम में अड़ंगा डालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जाति जनगणना की उपयोगिता को देखते हुए कई राज्य सरकारों की ओर से भी इसमें दिलचस्पी दिखाई जा रही है।