बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन अभी दूर, ट्रायल तक शुरू नहीं हुए

सिर्फ ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को इस विकल्प के साथ अनुमति दी है कि आपातकालीन स्थिति में बच्चों का भी टीकाकरण किया जाए। वैक्सीन निर्माता फाइजर और मॉडर्ना ने अक्टूबर के बाद बच्चों पर भी क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है।

Update: 2020-12-17 10:27 GMT
बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन अभी दूर, ट्रायल तक शुरू नहीं हुए

नील मणि लाल

लखनऊ। दुनिया में लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगना शुरू हो चुका है लेकिन बच्चों को 2021 के अंत तक इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि वे इस वैक्सीन के ट्रायल का हिस्सा नहीं हैं। डॉक्टरों का मानना है कि मौजूदा वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हो सकती है और दवा कंपनियों को उनके लिए अलग से ट्रायल शुरू करना होगा।

बच्चों के लिए वैक्सीन का करना होगा एक साल का इंतज़ार

सिर्फ ब्रिटेन ने फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन को इस विकल्प के साथ अनुमति दी है कि आपातकालीन स्थिति में बच्चों का भी टीकाकरण किया जाए। वैक्सीन निर्माता फाइजर और मॉडर्ना ने अक्टूबर के बाद बच्चों पर भी क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है। अलग से किए जा रहे इस कठिन ट्रायल के तहत दवा कंपनियों को लंबी अवधि की सुरक्षा, स्वास्थ्य मापदंड, दो खुराक के बीच अंतर आदि की जांच करने की जरूरत होगी ताकि बच्चों पर वैक्सीन के प्रयोग का नतीजा बेहतर हो सके।

इस प्रक्रिया में लगभग एक साल लगने की उम्मीद है। भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड के तीसरे फेज के ट्रायल में भी 18 साल से ज्यादा की उम्र वाले वॉलंटियर्स को शामिल किया गया है।

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आंकड़ों में बच्चों को कम खतरा

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के आंकड़ों के आधार पर नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के एक अनुमान के मुताबिक, करीब 12 प्रतिशत संक्रमित आबादी 20 वर्ष से कम उम्र की है। बाकी 88 प्रतिशत संक्रमित लोग 20 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं। ये आंकड़ा 8 दिसंबर, 2020 तक का है।

कोरोना महामारी की शुरुआत से ही वयस्कों की तुलना में बच्चों में ये बीमारी और इसकी मृत्यु दर काफी कम रही है। हालांकि कोरोना से संक्रमित हो चुके कई बच्चों में अब एक नया लक्षण देखने में आया है जिसे मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम कहा जाता है। संक्रमित बच्चों में इस बीमारी के जोखिम को देखते हुए इस बात की जरूरत बढ़ जाती है कि कोरोना की वैक्सीन उनके लिए काफी सुरक्षित होनी चाहिए।

विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बच्चों के लिए वैक्सीन की प्रभाविता और लंबे समय तक सुरक्षा सुनिश्चित हो।ब्रिटेन सरकार की ज्वाइंट कमेटी ऑन वैक्सीनेशन और इम्युनाइजेशन ने अपने ताजा दिशा-निर्देश में कहा है कि वैक्सीन सिर्फ उन बच्चों को दी जानी चाहिए जिन पर संक्रमण के बाद गंभीर खतरा है, जैसे कि बड़े बच्चे जिन्हें गंभीर न्यूरो-विकलांगता है और जिन्हें आवासीय देखभाल की जरूरत है।

बच्चे भी हैं जोखिम में

भले ही कोरोना बीमारी बच्चों में कम गंभीर पाई गई है, फिर भी बच्चे संक्रमित हो सकते हैं और अपने आसपास के लोगों में संक्रमण फैला सकते हैं। 85 हजार कोरोना पॉजिटिव मामलों और उनके 6 लाख संपर्कों पर साइंस जर्नल में छपी एक स्टडी में पाया गया कि सभी उम्र के बच्चे वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और इसे दूसरों में फैला सकते हैं। 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भारत की लगभग 26% आबादी शामिल है। इसलिए आखिर में आबादी के इस हिस्से का टीकाकरण जरूरी हो जाता है।

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ट्रायल सिर्फ व्यस्कों पर

वैक्सीन के ट्रायल कई स्टेज में होते हैं, जिसकी शुरुआत स्वस्थ वयस्कों के साथ होती है। जब वैक्सीन इन पर सुरक्षित निकलती है, तो स्टडी का दायरा बढ़ाया जाता है और युवा व बुजुर्ग लोगों को शामिल किया जाता है। जिन कंपनियों ने इमरजेंसी अप्रूवल के लिए अप्लाई किया है, उन्होंने वयस्कों को वैक्सीन दिए जाने की मंजूरी ली है, बच्चों के लिए नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़े पैमाने पर हुए ट्रायल बच्चों पर नहीं हुए हैं।

अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने 2 दिसंबर को बताया था कि वो 12 से 17 साल के बच्चों पर वैक्सीन की टेस्टिंग शुरू करेगी, जिसमें कम से कम 3 हजार बच्चों को शामिल किया जाएगा। लेकिन अभी ऐसे वालंटियर्स का रजिस्ट्रेशन शुरू नहीं हुआ है।

फाइजर ने अक्टूबर में 12 साल के बच्चों पर टेस्टिंग शुरू की थी, हालांकि वैक्सीन की प्रभाविता 95 फीसदी वयस्कों में पाई गई है और इंग्लैंड में इस वैक्सीन के इमरजेंसी यूज की मंजूरी 16 साल से ज्यादा उम्र की लोगों के लिए दी गई है।

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भारत में 18 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों पर ट्रायल

वैक्सीन ट्रायल आमतौर पर वयस्कों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने और उभरने वाले किसी भी संभावित जोखिम को कम करने के लिए किया जाता है। एक वैक्सीन जो वयस्कों में सुरक्षित और प्रभावी है, जरूरी नहीं कि वह बच्चों के लिए सुरक्षित हो। बच्चों में आम तौर पर अधिक सक्रिय इम्युन सिस्टम होता है, जिससे टीकाकरण के प्रति मजबूत प्रतिक्रिया हो सकती है, जिसमें तेज बुखार, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द और थकान शामिल है। जरूरी डोज की संख्या और डोज के बीच गैप उम्र पर निर्भर कर सकती है।

हालांकि, ज्यादातर मामलों में, वैक्सीन बच्चों और वयस्कों में समान रूप से काम करती हैं, जबकि वैक्सीन का डोज अलग हो सकता है। जैसे कि हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन में वयस्कों और बच्चों के लिए अलग-अलग डोज की जरूरत होती है। मॉडर्ना बच्चों में उसी डोज की स्टडी करेगी जो उसने वयस्कों में टेस्ट किया है।

बच्चों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल की कमी का मतलब है कि बच्चों के लिए इसकी सेफ्टी के बारे में नहीं पता है। मिसाल के तौर पर फाइजर को दी गई इमरजेंसी यूज की मंजूरी केवल 16 साल से अधिक आयु के लोगों के लिए है। मॉडर्ना भी केवल वयस्कों के लिए ही सीमित है।

अमेरिका में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ एंथोनी फाउची के मुताबिक जब आपके पास एक नई वैक्सीन जैसी स्थिति होती है, तो बच्चे और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए उसकी सुरक्षा आप पूरी तरह से सुनिश्चित करना चाहते हैं। इसलिए बच्चों को वैक्सीन देने से पहले उसकी सुरक्षा और असर वयस्क आबादी पर स्थापित हो जानी चाहिए। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने भी कहा है कि भारत में वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद बच्चों के लिए ये सबसे आखिर में उपलब्ध होगी।

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अभी लम्बा इन्तजार करना होगा

अमेरिका के अटलांटा स्थिति एमोरी वैक्सीन सेंटर के निदेशेक डॉ. रफी अहमद एक विश्व प्रसिद्ध इम्यूनोलॉजिस्ट हैं। वे कहते हैं कि अबतक बच्चों के लिए कोरोना की कोई वैक्सीन तैयार नहीं हुई है। ऐसे में बच्चों को कोरोना की वैक्सीन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। अबतक जिन कंपनियों ने कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली है या फिर कामयाबी के करीब हैं, उनमें से किसी ने भी बच्चों पर ट्रायल नहीं किया है। कंपनियों को बच्चों के लिए परफैक्ट वैक्सीन बनाने के लिए बच्चों पर ही वैक्सीन का ट्रायल करना होगा और सफलता मिलने के बाद ही बच्चों को वैक्सीन दी जा सकती है।

गर्भवती महिलाओं पर नहीं होते ट्रायल

बच्चों की तरह गर्भवती महिलाओं पर भी कोरोना की किसी वैक्सीन का ट्रायल नहीं किया गया है। जबकि कोरोना से गंभीर रूप से बीमार पड़ने की आशंका गर्भवती महिलाओं में सबसे ज्यादा होती है। वैसे अभी तक किसी भी बीमारी की वैक्सीन के ट्रायल में गर्भवती महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है। इसके बावजूद गर्भवती महिलाओं को वैक्सीनें लगाई जातीं हैं।

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