कोरोना से जंग अब जीत की ओर

कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग में देश को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ‘कोविशील्ड’ और भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सिन’ के रूप में दो वैक्सीनें मिल चुकी हैं। भारत में चार अन्य वैक्सीनों के भी आने की संभावना है। इन चार वैक्सीनों में दो भारत में ही डेवलप की गईं हैं जबकि बाकी दो विदेशी सहयोग से बन रही हैं।

Update: 2021-01-15 14:05 GMT
कोरोना से जंग अब जीत की ओर

नील मणि लाल

लखनऊ। देश में कोरोना महामारी के खिलाफ जंग निर्णायक दौर में पहुँच गयी है। कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग में देश को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ‘कोविशील्ड’ और भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सिन’ के रूप में दो वैक्सीनें मिल चुकी हैं। इसके बाद अब भारत में चार अन्य वैक्सीनों के भी आने की संभावना है। इन चार वैक्सीनों में दो भारत में ही डेवलप की गईं हैं जबकि बाकी दो विदेशी सहयोग से बन रही हैं। लेकिन भारत को अभी फाइजर, मॉडर्ना, सीनोफार्म या कोई भी अन्य विदेशी वैक्सीन नहीं मिलने वाली है। इसकी वजह ये है कि सरकार ने साफ़ कर दिया है कि मंजूरी के लिए विदेशी वैक्सीन कंपनियों को भारत में ही ह्यूमन ट्रायल करना होगा।

वैक्सीन का स्थानीय परीक्षण जरूरी

कोरोना वैक्सीन पर केंद्र सरकार की टास्क फोर्स के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल ने साफ़ किया है कि भारत में उपयोग की मंजूरी चाह रही किसी भी कंपनी के लिए स्थानीय ट्रायल्स अनिवार्य हैं। सरकार ने स्थानीय ट्रायल की शर्त इसलिए लगाई है क्योंकि वैक्सीनों का उपयोग शुरू करने से पहले ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि ये वैक्सीन भारतीय नागरिकों के लिए सुरक्षित और प्रभावी हैं या नहीं। इसकी वजह ये है कि भारतीय लोगों का जेनेटिक मेकअप पश्चिमी देशों के लोगों से अलग हो सकता है। सो किसी भी दवा या वैक्सीन का स्थानीय परीक्षण जरूरी है।

भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सिन’ पूरी तरह से स्वदेशी

वैसे तो देश के न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिकल ट्रायल्स रूल्स, 2019 में स्थानीय ट्रायल की शर्तों को माफ करने का प्रावधान भी किया गया है। लेकिन मौजूदा हालात में स्थानीय ट्रायल जरूरी माना गया है। भारत में अभी तक तीन ही वैक्सीन कंपनियों ने आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए आवेदन किया है और इनमें से दो ने भारत में ह्यूमन ट्रायल किए हैं। ऑक्सफोर्ड – आस्ट्रा ज़ेनेका की ‘कोविशील्ड’ का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भारत में 1,500 लोगों पर स्थानीय ट्रायल किया है और इसी के चलते उसे आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दी गई है। वहीं भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सिन’ पूरी तरह से स्वदेशी है और इसके सभी ट्रायल देश में ही हुए हैं।

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फाइजर ने नहीं किया है भारत में ट्रायल

इमरजेंसी उपयोग मंजूरी के लिए आवेदन करने वाली तीसरी कंपनी फाइजर ने इसने भारत में कोई भी ट्रायल नहीं किया है। बताया जाता है कि फाइजर बिना ट्रायल किए भारत में अपनी वैक्सीन का डिस्ट्रीब्यूशन चाहती थी। इसके अलावा फाइजर कंपनी के अधिकारी ड्रग कंट्रोलर की विशेषज्ञ समिति के सामने पेश होने और अपना डेटा प्रस्तुत करने में भी नाकाम रहे। इसी कारण उसे मंजूरी नहीं मिली है। अब साफ है कि अगर फाइजर को भारत में अपनी वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की मंजूरी चाहिए तो उसे देश में ही एक स्थानीय ट्रायल करना होगा।

वैक्सीन कंपनियों को कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा नहीं

नीति योग के सदस्य डॉ वीके पॉल ने ये भी साफ किया कि वैक्सीन के उपयोग पर कुछ गलत होने की स्थिति में वैक्सीन कंपनियों को कानूनी कार्रवाई से बचाने के लिए सरकार उन्हें इनडेमिनिटी प्रदान नहीं करेगी और कानून अपनी तरह से काम करेगा। सीरम इंस्टिट्यूट ने सरकार से इनडेमिनिटी की मांग की थी और कहा था कि कई देश कोविशील्ड को कानूनी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान कर चुके हैं। बहरहाल, देश में अब चार अन्य वैक्सीनों पर काम तेजी से जारी है और उम्मीद की जा रही है कि देश को चार अन्य वैक्सीनें मिल जायेंगी।

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जायडस कैडिला की वैक्सीन

कोविशील्ड और कोवैक्सिन के बाद अगली सबसे महत्वपूर्ण वैक्सीन है अहमदाबाद स्थित फार्मा कंपनी जाइडस कैडिला द्वारा तैयार की गई ‘ज़ाईको वीडी’ वैक्सीन। कैडिला कंपनी ने दिसंबर में ही अपनी वैक्सीन का दूसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल पूरा कर लिया है और ड्रग कंट्रोलर ने उसे तीसरे चरण के क्लिनकल ट्रायल की मंजूरी प्रदान कर दी है। दूसरे चरण के ट्रायल में ये वैक्सीन मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स पैदा करने में सफल रही है। तीसरे चरण में इसके सफल होने के बाद मंजूरी मिल सकती है।

रूसी स्पुतनिक-5

मॉस्को के गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार स्पुतनिक-5 वैक्सीन के भारत में ट्रायल और उत्पादन की जिम्मेदारी हैदराबाद की डॉ रेड्डीज लैबोरेट्रीज को मिली है। कंपनी ने इसका दूसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल पूरा कर लिया है और तीसरे चरण के ट्रायल के लिए ड्रग कंट्रोलर से अनुमति मांगी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के ट्रायल्स में ये वैक्सीन 92 प्रतिशत प्रभावी मिली है। स्पुतनिक-5 का दूसरे चरण का ट्रायल सफल रहा है और इसमें किसी भी प्रकार की सुरक्षा चिंताएं सामने नहीं आई हैं।

बायोलॉजिकल ई का ट्रायल शुरू

हैदराबाद स्थित बायोलॉजिकल ई लिमिटेड, एमआईटी अमेरिका के सहयोग से कोरोना वैक्सीन बना रही है। ये वैक्सीन अभी पहले चरण के ट्रायल में है और इसे 2 मार्च से दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के लिए भी अनुमति मिल गई है।

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गेनोवा बायो की कोरोना वैक्सीन

पुणे स्थित गेनोवा बायो फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड आरएनए आधारित कोरोना वैक्सीन एक अमेरिकी कंपनी के सहयोग से तैयार कर रही है। इस वैक्सीन का पहले चरण का ट्रायल आयोजित किया जा रहा है। इसके बाद मार्च में इस वैक्सीन के दूसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल शुरू होने की उम्मीद है।

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