वो ऐतिहासिक मैच जब वेस्टइंडीज का बरपा था कहर, आधी भारतीय टीम हो गई थी लहूलुहान
भारतीय टीम की 1976 का वेस्टइंडीज दौरा ऐतिहासिक कामयाबी के लिए याद किया जाता है। चार टेस्ट मैचों की सीरीज के तीसरे टेस्ट में भारत का रिकॉर्ड प्रदर्शन आज भी चौंकाता है। दरअसल, तब भारत ने पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में 403 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए 406/4 रन बनाकर इतिहास रच दिया था।
नई दिल्ली: बिशन सिंह बेदी की कप्तानी में 1976 में भारतीय टीम वेस्टइंडीज के दौरे पर गई थी। चार टेस्ट मैचों की सीरीज़ थी। भारतीय टीम पहला टेस्ट मैच बड़े अंतर से हार गई थी। लेकिन दूसरे टेस्ट मैच से वह धीरे-धीरे लय में आ गई। भारत ने दूसरा टेस्ट मैच ड्रॉ कराया। तीसरे टेस्ट मैच में भारतीय टीम एक कदम और आगे बढ़ी और जीत हासिल की।
भारतीय टीम की 1976 का वेस्टइंडीज दौरा ऐतिहासिक कामयाबी के लिए याद किया जाता है। चार टेस्ट मैचों की सीरीज के तीसरे टेस्ट में भारत का रिकॉर्ड प्रदर्शन आज भी चौंकाता है। दरअसल, तब भारत ने पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में 403 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए 406/4 रन बनाकर इतिहास रच दिया था। 12 अप्रैल 1976 को चौथी पारी में सबसे बड़े लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा करने का रिकॉर्ड भारत के नाम दर्ज हो गया था, जो 27 साल तक बरकरार रहा।
अब तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर थीं। चौथे टेस्ट मैच के नतीजे से सीरीज का फै़सला होना था। लेकिन उस टेस्ट मैच में कुछ ऐसा हुआ कि आधी से ज्यादा भारतीय टीम को अस्पताल जाना पड़ा। किताब ‘क्रिकेट के अनसुने किस्से’ में भारतीय टेस्ट क्रिकेट के इतिहास के सबसे खतरनाक टेस्ट मैच की कहानी बयां की है।
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चौथी पारी में ,वेस्टइंडीज विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया, 418/7 रन, टारगेट 418, सेंट जोन्स 2003। साउथ अफ्रीका विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया, 414/4 रन, टारगेट 414, पर्थ 2008। भारत विरुद्ध वेस्टइंडीज, 406/4 रन, टारगेट 403, पोर्ट ऑफ स्पेन, 1976।
वेस्ट इंडीज का कहर, ... कैरेबियाई तेज गेंदबाजों ने सीरीज के चौथे और आखिरी टेस्ट में ऐसी आग उगली की भारतीय खिलाड़ी पिच पर उतरने लायक नहीं बचे। भारत की दूसरी पारी के स्कोर बोर्ड पर पांच खिलाड़ियों के आगे 'एबसेंट हर्ट' लिखा गया। दरअसल, सीरीज 1-1 से बराबरी पर थी, और किंग्स्टन में अप्रत्याशित उछाल से विंडीज के तेज गेंदबाजों ने भारतीय टीम को जबर्दस्त निशाना बनाया।भारत को (21-25 अप्रैल 1976 किंग्सटन टेस्ट) सबिना पार्क में माइकल होल्डिंग और वेन डैनियल, बर्नार्ड जूलियन और वैन होल्डर से सजे तेज आक्रमण के खिलाफ पहली पारी में 306/6 के स्कोर पर पारी घोषित करनी पड़ी। इस पारी में अंशुमन गायकवाड़ और बृजेश पटेल बुरी तरह चोटिल होकर 'रिटायर्ड हर्ट' हुए।
गायकवाड़ के बाएं कान पर चोट लगी और उन्हें अस्पताल में दो रातें बितानी पड़ीं। जबकि बृजेश पटेल को मुंह में चोट लगने के बाद टांके पड़े थे (याद रहे वह बिना हेलमेट वाला जमाना था)। इतना ही नहीं गुंडप्पा विश्वनाथ के दाहिने हाथ की उंगली टूट गई. ये तीनों मैच में आगे खेलने लायक नहीं बचे।
306 रनों के स्कोर पर एस. वेंकटराघवन का विकेट गिरते ही कप्तान बिशन सिंह बेदी ने पहली पारी घोषित कर दी।दरअसल, विकेट पर बेदी के उतरने की बारी थी और इसके बाद आखिर में भगवत चंद्रशेखर का नंबर था. ऐसे में दोनों ने विंडीज की तेज गेंदबाजी से खुद को बचाया। भारत का पेस अटैक उस पिच का फायदा नहीं उठा सका और वेस्टइंडीज ने अपनी पहली पारी में 391 बना लिये। उस वक्त मदनलाल और मोहिंदर अमरनाथ की तेजी के भरोसे भारतीय टीम उतरी थी, उन दोनों ने क्रमश: 7 और 8 ओवर ही डाले। दूसरी तरफ बेदी, चंद्रा और राघवन की स्पिन तिकड़ी थी, जिसने ज्यादातर ओवर डाले।
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भारतीय टीम अपनी दूसरी पारी में अपने तीन बल्लेबाजों के बिना उतरी. टीम किसी तरह पांच विकेट पर 97 के स्कोर पर पहुंची। मात्र 12 रनों की बढ़त हो पाई थी. और यहीं भारतीय पारी का अंत हो गया। बेदी ने कहा कि चंद्रशेखर और वह खुद फील्डिंग के दौरान चोटिल हो गए थे। हाथ में चोट लगने से बल्लेबाजी करने में भी असमर्थ थे। यानी अंशुमन गायकवाड़, बृजेश पटेल और गुंडप्पा विश्वनाथ तो पहले से ही चोटिल थे और अब बेदी-चंद्रा भी बल्लेबाजी के लिए नहीं उतरे। ये पांचों 'एबसेंट हर्ट' कहे गए। चोट से टीम का हाल बुरा था। हालत इतनी खराब थी कि दौरे पर गए सभी 17 खिलाड़ी सब्स्टीट्यूट (स्थानापन्न) के तौर पर कभी न कभी मैदान पर दिखे।संकट यहीं खत्म नहीं हुआ, इस दौरान सब्स्टीट्यूट के तौर पर मैदान पर उतरे सुरिंदर अमरनाथ को मैच के दौरान ही अपेंडिक्स ऑपरेशन के लिए अस्पताल ले जाया गया था।
वेस्टइंडीज ने यह मैच दस विकेट से जीता और सीरीज पर 2-1 से कब्जा किया। वेस्टइंडीज के लिए क्वाइव लॉयड की कप्तानी में विश्व क्रिकेट में शीर्ष पर पहुंचने की यहीं से शुरुआत हुई थी। उसने ऑस्ट्रेलिया में पिछली सीरीज 1-5 गंवाई थी, लेकिन इसके बाद वेस्टइंडीज ने 1980 के दशक के अंत तक क्रिकेट की दुनिया पर राज किया। उस मैच के बाद टीम किसी तरह कड़वी यादे लेकर वापस लौटी।
किसी तरह कड़वी यादों को लेकर भारतीय टीम वापस लौटी। कहते हैं कि जब भारतीय टीम घर लौटी तो खिलाड़ी पहचाने नहीं जा रहे थे। अंशुमान गायकवाड, ब्रजेश पटेल और गुंडप्पा विश्वनाथ के शरीर पर जगह-जगह पट्टिया बंधी हुई थीं.