Delhi Election 2025: दिल्ली में जाट वोटों का कितना है असर, केजरीवाल ने क्यों चला इस बिरादरी के आरक्षण का दांव

Delhi Election 2025: दिल्ली में जाट समुदाय का करीब 10 फ़ीसदी वोट है और दिल्ली विधानसभा की 70 में से आठ सीटों को जाट बहुल माना रहा है।;

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2025-01-10 09:53 IST

Arvind Kejriwal (photo:social media )

Delhi Election 2025: दिल्ली के विधानसभा चुनाव में नामांकन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़ा सियासी दांव चल दिया है। उन्होंने राजधानी के जाट समुदाय को आरक्षण का लाभ न देने के मुद्दे पर भाजपा और मोदी सरकार पर तीखा प्रहार किया है। पीएम मोदी को लिखे पत्र में उन्होंने राजधानी के जाट समुदाय को केंद्र सरकार की ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग भी की है। उनका कहना है कि जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने से उन्हें शैक्षणिक संस्थाओं और नौकरियों में अच्छे मौके मिलेंगे।

सियासी जानकारों का मानना है कि केजरीवाल ने यह सियासी दांव अनायास नहीं चला है। दरअसल दिल्ली में जाट समुदाय का करीब 10 फ़ीसदी वोट है और दिल्ली विधानसभा की 70 में से आठ सीटों को जाट बहुल माना रहा है। मौजूदा समय में इनमें से पांच सीटों पर आप का कब्जा है और पार्टी अपनी इस पकड़ को और मजबूत बनाना चाहती है। यही कारण है कि केजरीवाल का यह कदम बड़ा सियासी असर डालने वाला साबित हो सकता है।

केंद्र पर जाट बिरादरी से धोखे का आरोप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी में केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार की ओर से पिछले 10 वर्षों से जाट समुदाय के साथ धोखा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मोदी के पहली बार सत्तारूढ़ होने के बाद 2015 में जाट समुदाय के नेताओं को प्रधानमंत्री आवास पर आमंत्रित किया गया था और इस दौरान राजधानी के जाट समुदाय को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल करने का आश्वासन दिया गया था। गृह मंत्री अमित शाह की ओर से भी 2019 में यह वादा किया गया था।

पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों की ओर से दिल्ली के जाट समुदाय को गुमराह किया गया और आज तक दिल्ली के जाटों को उनका वाजिब हक नहीं दिया गया। दिल्ली के चुनावी माहौल के बीच केजरीवाल की ओर से यह मुद्दा उठाए जाने के पीछे बड़ा सियासी कारण माना जा रहा है। केजरीवाल खुद लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहे मगर उन्होंने इस मुद्दे को नहीं उठाया। अब उन्होंने चुनाव के मौके पर इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार और भाजपा को घेरा है।


जाट बिरादरी को रिझाने का सियासी दांव

केजरीवाल ने राजधानी के जाट समुदाय को आरक्षण देने का ऐसा मुद्दा उठाया है जिसका जवाब देना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं माना जा रहा है। केजरीवाल की इस रणनीति के पीछे सोची समझी सियासी चाल है और उन्होंने विधानसभा चुनाव में आप की चुनावी संभावनाओं को मजबूत बनाने के लिए ही यह सियासी चाल चली है।

चुनाव आयोग की ओर से घोषित कार्यक्रम के अनुसार दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान होने वाला है और इस वोटिंग के दौरान केजरीवाल जाट बिरादरी को अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं।


जाट बहुल सीटों पर पकड़ बनाने की रणनीति

दिल्ली विधानसभा की आठ सीटों को जाट बहुल माना जाता है और इन सीटों पर जाट समुदाय का वोट ही निर्णायक साबित होता रहा है। दिल्ली में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान आप ने इनमें से पांच सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि तीन सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। अब अगले विधानसभा चुनाव के दौरान आप अपनी पकड़ को और मजबूत बनाना चाहती है। यदि केजरीवाल जाट समुदाय का समर्थन पाने में कामयाब रहे तो यह भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।


10 फ़ीसदी जाट मतदाता कर सकते हैं खेल

दिल्ली के जातीय आंकड़ों को देखा जाए तो यहां पर करीब 10 फीसदी जाट मतदाता हैं। ग्रामीण इलाकों से जुड़ी कई सीटों पर जाट मतदाताओं का वर्चस्व दिखता है। राजधानी के इर्द-गिर्द स्थित 60 फ़ीसदी गांवों में जाट मतदाताओं का दबदबा है और इन मतदाताओं का समर्थन हासिल करने के लिए भाजपा और आप के बीच में जबर्दस्त होड़ दिख रही है। जाट वोट बैंक में सेंधमारी के लिए भाजपा ने पिछले दिनों केजरीवाल को बड़ा झटका दिया था।

भाजपा ने पिछले दिनों जात बिरादरी से जुड़े बड़े नेता कैलाश गहलोत को अपने पाले में कर लिया था। गहलोत दिल्ली की जाट बहुल नजफगढ़ विधानसभा सीट से विधायक हैं। इसके साथ ही भाजपा की ओर से एक और जाट चेहरे प्रवेश वर्मा को आगे बढ़ाया जा रहा है। प्रवेश वर्मा दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा की इन चालों को नाकाम करने के लिए ही केजरीवाल ने बड़ा सियासी दांव चल दिया है। केजरीवाल ने बड़ी सियासी चाल चली है और अब यह देखने वाली बात होगी कि उनकी यह सियासी चाल दिल्ली के विधानसभा चुनाव में क्या गुल खिलाती है।

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