असहमति को दबाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल अंतरात्मा पर चोट: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने 'असहमति' को लोकतंत्र का 'सेफ्टी वॉल्व' कहा है।  असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी बता देना लोकतंत्र पर हमला है। उन्होंने कहा कि विचारों को दबाना देश की अंतरात्मा को दबाना है।

Update: 2020-02-16 04:39 GMT

अहमदाबाद सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने 'असहमति' को लोकतंत्र का 'सेफ्टी वॉल्व' कहा है। असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी बता देना लोकतंत्र पर हमला है। उन्होंने कहा कि विचारों को दबाना देश की अंतरात्मा को दबाना है। उनकी यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) को लेकर देश के तमाम हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अहमदाबाद में गुजरात हाई कोर्ट के ऑडिटोरियम में 15वें पी. डी. मेमोरियल लेक्चर में ये बातें कहीं। उन्होंने यह भी कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है जो कानून के शासन का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा, 'असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण एवं विचार-विमर्श करने वाले लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति देश की प्रतिबद्धता की मूल भावना पर चोट करती है।'

 

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति का संरक्षण करना यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक रूप से एक निर्वाचित सरकार हमें विकास और सामाजिक समन्वय के लिए एक सही औजार देती है। वह उन मूल्यों एवं पहचानों पर कभी एकाधिकार का दावा नहीं कर सकती जो हमारी बहुलवादी समाज को परिभाषित करती हैं। उन्होंने यहां आयोजित 15 वें, न्यायमूर्ति पीडी देसाई स्मारक व्याख्यान 'भारत को निर्मित करने वाले मतों: बहुलता से बहुलवाद तक' विषय पर बोल रहे थे।

 

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सुप्रीम कोर्ट के जज ने यह भी कहा कि असहमति को खामोश करने और लोगों के मन में डर पैदा होना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन और संवैधानिक मूल्य के प्रति प्रतिबद्धता से आगे तक जाता है। बता दें कि जस्टिस चंद्रचूड़ उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने यूपी में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से क्षतिपूर्ति वसूल करने के जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजी गई नोटिसों पर जनवरी में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था।

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