एक रात में बना यह मंदिर: दूर-दराज से आते हैं यहां लोग, जानें देवसोमनाथ की खासियत

मंदिर के पुजारी महेंद्र सेवक ने बताया कि देवसोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में 2 शिवलिंग है, जिसमे एक मुख्य शिवलिंग रुद्राक्ष आकार का है तो वहीं उसके पास ही दूसरा स्फटिक शिवलिंग है।

Update:2021-03-11 10:59 IST
एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर टिका हुआ है। पूरे मंदिर में कहीं पर भी चूना या सीमेंट अथवा रेत तक नहीं लगी है। भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन यह मंदिर उदयपुर और डूंगरपुर की सीमा को अलग करने वाली सोम नदी के तट पर बना हुआ है

नई दिल्ली: आज महाशिवरात्रि है। आज शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ी और भक्त भगवान शिव के दर्शन कर रहे है। हां ये बात भी सच है कि कोरोना की वजह से इस बार शिव दर्शन थोड़ा मुश्किल है। इस दिन दुनियाभर में देवाधिदेव भगवान शिवजी की पूजा, आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इस खास दिन पर हम भगवान शिव के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो 12वीं सदी में बना है....

एक रात में बना मंदिर

मान्यता है कि यह मंदिर एक रात में बना है। इस मंदिर की खासियत है कि तीन मंजिला मंदिर की इमारत पूरी तरह से पत्थर से ही बनी हुई है। एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर टिका हुआ है। पूरे मंदिर में कहीं पर भी चूना या सीमेंट अथवा रेत तक नहीं लगी है। भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन यह मंदिर उदयपुर और डूंगरपुर की सीमा को अलग करने वाली सोम नदी के तट पर बना हुआ है।

डूंगरपुर जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर सोम नदी के तट पर स्थित देवसोमनाथ मंदिर वागड़ ही नहीं देश-विदेश में फेमस है। मंदिर से कई लोगों की आस्था जुड़ी हुई हैं। सोम नदी के तट पर स्थित देवसोमनाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि 12वी सदी में रातों-रात यह मंदिर बना है। यहां मिले शिलालेख और इतिहासविद मंदिर को लेकर एक राजपूत शासक की ओर से इसे बनाने की बात कहते हैं, लेकिन बरसों से मंदिर की पूजा करने वाले सेवक समाज के पुजारी मंदिर और शिवलिंग के स्वयंभू होने की बात कहते हैं।

यह पढ़ें...मंगल पर सफेद बादल: दिखा इतना लंबा, ISRO के मंगलयान ने उठाया रहस्य से पर्दा

न ही सीमेंट तीन मंजिला मंदिर

सबसे बड़ी बात यह है कि यह मंदिर 12वीं सदी का बना है और इसमें न तो एक ईंट लगी है और न ही सीमेंट, यह तीन मंजिला मंदिर 148 पत्थरों के पिलरों पर टिका हुआ हैं और यह पत्थर एक-दूसरे से इस तरह जुड़े हुए है कि पूरा मंदिर खड़ा हो गया। दूर से यह मंदिर अपनी बेजोड़ बनावट और स्थापत्य कला के कारण हर किसी को आकर्षित करता है।

मंदिर सफेद संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है, लेकिन कालांतर में मंदिर का पत्थर अब पीला पड़ गया हैं। मंदिर के हर एक पिल्लर के पत्थर पर आकर्षक कलाकृतियां और देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। मंदिर के सभा मंडप और गुम्बद में भी आकर्षक कलाकृतियां हैं, जिसे देख हर कोई अचंभित रह जाए।

शिवलिंग रुद्राक्ष आकार

मंदिर के पुजारी महेंद्र सेवक ने बताया कि देवसोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में 2 शिवलिंग है, जिसमे एक मुख्य शिवलिंग रुद्राक्ष आकार का है तो वहीं उसके पास ही दूसरा स्फटिक शिवलिंग है। पुजारी बताते है कि दोनों की शिवलिंग का आकार धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है। कुछ सालों पूर्व स्फटिक शिवलिंग एक नींबू के आकार का था लेकिन अब यह एक नारियल के आकार का हो गया हैं। वे बताते है मंदिर की पूजा-अर्चना गांव के पुजारी सेवक समाज की ओर से की जाती है ।

वहीं, मंदिर के जानकार बताते है कि देवसोमनाथ मंदिर गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर ही बना हुआ है और कुछ लोग सोमनाथ का छोटा रूप मानते है। मंदिर के पुजारी यह भी बताते है कि गुजरात का सोमनाथ मंदिर समझकर मुगलों ने देवसोमनाथ मंदिर पर भी आक्रमण किया था। हालांकि, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण अब तक नहीं मिला है।

यह पढ़ें...कान्हा की नगरी हुई शिवमयः गूंज रहा बम-बम भोले, ऐसे मनाई जा रही शिवरात्रि

देश-विदेश से दर्शनार्थी

देवसोमनाथ मंदिर और भगवान शिवजी के प्रति आगाध आस्था के कारण यहां दर्शनों को लेकर देश और विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंहुचते है। यहां भगवान भोले के दरबार मे माथा टेकते है और मनोकामनाएं मानते हैं। मान्यता है कि भगवान भोले के दरबार में जो भी मुराद लेकर आते है वे उसे पूरी करते है इसलिए यहां मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। वहीं, हर महीने पूर्णिमा पर यहां मेले का माहौल रहता है। महाशिवरात्रि के दिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते है।

बहरहाल डूंगरपुर जिले का देवसोमनाथ मंदिर स्थापत्य कला बेजोड़ नमूना है. लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी से मंदिर धीरे-धीरे जर्जर होता जा रहा है। मंदिर के पत्थर कमजोर होने लगे है, इन पत्थरों को हाथ लगाते ही अब बुरादा निकलने लगा है और समय रहते मंदिर पर ध्यान नहीं दिया गया तो मंदिर के पिलर और अन्य पत्थर जीर्ण-शीर्ण हो जाएंगे। वहीं, मंदिर के आकर्षक गोखड़ो (झरोखे) भी कई जगह से पत्थर टूट चुके हैं। ऐसे में उन पत्थरों को बदलने या मम्मत की जरूरत है, जिससे कि ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित किया जा सके। वहीं, मंदिर को दर्शनों के साथ ही पर्यटन के रूप में भी विकसित करने की जरूरत है।

Full View

Tags:    

Similar News