यहां के बाजार में आज भी नहीं चलते रुपए, अर्थशास्त्र के पुराने नियम से हो रहा नुकसान
बीजापुर: जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर दूर बसे बासगुड़ा में शुक्रवार को लगने वाले बाजार में रुपए नहीं चलते। यहां आज भी सामान के बदले सामान ही मिलता है। मतलब अर्थशास्त्र का सबसे पुराना नियम।
इस कारण यहां के आदिवासी ही घाटे में रहते हैं। 20 रुपए किलो बिकने वाले महुए के बदले आदिवासी 10 रुपए में बिक रहा आलू ले रहे हैं। जिले में वनोपज के लिए दो बड़े बाजार गंगालूर और बासगुड़ा में लगते हैं। नक्सल प्रभावित बासगुड़ा गांव और यहां का बाजार अक्सर चर्चा में रहता है। आजादी के पहले से इन गांवों में सामान से सामान बदलने का चलन था, जो चलन आज भी जारी है।
ग्रामीण आदिवासियों का हो रहा भरपूर शोषण
यहां मिलने वाले वनोपज तिखुर, शहद, चिरौंजी और बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के लिए जाने जाना वाला यह गांव साल 2005 में वीरान हो गया था। यहां के बाजारों और बस्तियों में नक्सलियों का खौफ नजर आता है। 13 साल बाद यह वीरान गांव धीरे-धीरे बसने लगा और बाजार भी लगने लगे। पूर्व में पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष में ग्रामीण आदिवासी मारे गए और आज वनोपज में ग्रामीण आदिवासियों का भरपूर शोषण हो रहा है।
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सलवा जुडूम के बाद 10 सालों तक रौनक नहीं थी
आवापल्ली से आए व्यापारी नारायण ताड़पल्ली ने बताया, कि उनका सेठ उन्हें कनकी, आलू और प्याज देकर महुआ खरीदने भेजता है, क्योंकि यहां के लोग पैसा नहीं बल्कि सामान चाहते हैं। तालपेरू नदी के पास शुक्रवार को सालों से बाजार लगता है। सलवा जुडूम के बाद 10 सालों तक रौनक नहीं थी। इस साल बाजार पहले जैसा तो हो गया लेकिन ये आज भी सेलर्स मार्केट नहीं बन पाया है और शोषण का दौर जारी है। लोगों का कहना है कि जब तक जागरूकता नहीं आएगी तब तक ये 'बायर्स मार्केट' बना रहेगा।
विनिमय में हो रहा नुकसान
र्तेम गांव से बासगुड़ा आए आदिवासी किसान लखमू लेकाम ने बताया कि राशन की दुकान में अमृत नमक मिलता है। लेकिन उनके गांव में इसका चलन नहीं है। गांव के लोग खड़े नमक का इस्तेमाल करते हैं और वे इसे बासगुड़ा बाजार से लाते हैं। व्यापारी 2 किलोग्राम नमक देकर एक किलोग्राम महुआ लेते हैं। इन दिनों 10 रुपए किलो की दर पर बिक रहे आलू या प्याज के बदले व्यापारी 20 रुपए किलो का महुआ ले रहे हैं।
चावल के बदले चिरौंजी
जिला पंचायत उसूर के सीईओ बीए गौतम ने कहा, कि 'महुआ का रेट तय नहीं है। मध्य प्रदेश में इसकी दर तय कर दी गई है। कम दर पर महुआ की खरीदी करना आदिवासियों का शोषण है।' उन्हें चावल के बदले चिरौंजी खरीदे जाने की शिकायत मिली थी। इस वजह से वे बाजार में जांच के लिए आए थे।