Delimitation Row: लोकसभा सीटों के परिसीमन के खिलाफ लड़ाई में विपक्ष में बिखराव, सपा और राजद को स्टालिन ने बैठक में नहीं बुलाया
Delimitation Row: जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के परिसीमन के खिलाफ सियासी घमासान तेज हो गया है।;
Opposition divided fight against delimitation of Lok Sabha seats (Social Media)
Delimitation Row: जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के परिसीमन के खिलाफ सियासी घमासान तेज हो गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसके खिलाफ कमर कस ली है और उन्होंने शनिवार को चेन्नई में विपक्ष के कई बड़े नेताओं की बैठक भी की है। इस बैठक में ओडिशा और पंजाब के अलावा दक्षिणी राज्यों के कांग्रेस नेताओं ने भी हिस्सा लिया। बैठक के दौरान दक्षिण के राज्यों में लोकसभा की सीटें घटने के खतरे के प्रति आगाह किया गया।
लोकसभा सीटों के परिसीमन के खिलाफ इस लड़ाई में विपक्ष एकजुट नहीं दिख रहा है। तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बैठक से किनारा कर लिया जबकि उत्तर भारत के दो प्रमुख विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल को स्टालिन की ओर से बैठक में आमंत्रित ही नहीं किया गया था। ऐसे में यह लड़ाई दक्षिण भारत के विपक्षी दलों तक ही सीमित दिखाई दे रही है।
समाजवादी पार्टी को नहीं मिला बैठक का न्योता
विपक्षी दलों के बीच समाजवादी पार्टी बड़ी ताकत है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 37 सीटों पर जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश को सियासी नजरिए से सबसे अहम राज्य माना जाता रहा है मगर इस राज्य में भाजपा के खिलाफ सबसे मजबूत लड़ाई लड़ने वाली समाजवादी पार्टी को स्टालिन की बैठक का आमंत्रण नहीं मिला था।
समाजवादी पार्टी की ओर से अभी तक इस मुद्दे पर खुलकर कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया है। जानकार सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी अभी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं करना चाहती। दरअसल जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होने पर उत्तर प्रदेश में लोकसभा की तमाम सीटें बढ़ेगी। ऐसे में सपा को अधिक सीटों पर अपनी ताकत दिखाने का मौका मिलेगा। जानकारों का मानना है कि इसी कारण पार्टी ने अभी तक इस मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
राजद को आमंत्रण नहीं,ममता ने किया किनारा
उत्तर प्रदेश में सपा की तरह बिहार में राष्ट्रीय जनता दल सबसे प्रमुख विपक्षी दल है। लालू प्रसाद यादव की अगुवाई वाली इस पार्टी को भी स्टालिन की बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया था। इस तरह उत्तर भारत के दो प्रमुख विपक्षी दलों के किसी भी प्रतिनिधि ने स्टालिन की बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
ममता बनर्जी की अगुवाई वाली पार्टी टीएमसी को बैठक का न्योता जरूर भेजा गया था मगर ममता बनर्जी ने इस बैठक से किनारा कर लिया। पार्टी की ओर से कोई भी प्रतिनिधि स्टालिन की बैठक में हिस्सा लेने के लिए नहीं पहुंचा।
यदि 15 लाख की जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों का परिसीमन होगा तो पश्चिम बंगाल में लोकसभा की सीटें 42 से बढ़कर 66 हो सकती हैं। यदि 20 लाख की जनसंख्या को आधार बनाया गया तो ऐसी स्थिति में भी पश्चिम बंगाल के पास 50 सांसदों की ताकत होगी। माना जा रहा है कि इसी कारण ममता बनर्जी ने भी अभी इस बैठक से किनारा करना ही उचित समझा।
परिसीमन के खिलाफ दक्षिण के राज्य क्यों हैं मुखर
दक्षिण के राज्यों की ओर से परिसीमन के खिलाफ आवाज बुलंद करना अनायास नहीं है। दक्षिण में एनडीए की सरकार सिर्फ आंध्र प्रदेश में है और बाकी सभी राज्यों में गैर एनडीए सरकार हैं। इन राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं और नए परिसीमन के बाद इन राज्यों में सीटों की संख्या घटकर 100 से नीचे पहुंच सकती है। इसलिए तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल ने परिसीमन के खिलाफ खुलकर लड़ाई शुरू कर दी है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की इस मुद्दे पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। वैसे आंध्र प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया है। ऐसे में चंद्रबाबू नायडू के लिए ज्यादा समय तक इस मुद्दे पर चुप्पी साधना संभव नहीं होगा।
उन्हें जल्द ही इस मुद्दे पर अपना रुख साफ करना होगा कि परिसीमन के खिलाफ लड़ाई में वे दक्षिण के राज्यों के साथ हैं या नहीं। अगर वे दक्षिणी राज्यों के साथ खड़े हो गए तो ऐसे में भाजपा की मुसीबत बढ़ जाएगी क्योंकि दिल्ली में मोदी की सरकार के लिए नायडू का समर्थन जरूरी है। ऐसे में आने वाले समय में इस मुद्दे पर सियासी घमासान और तेज होने की संभावना है।