जानिए क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, क्यों है विवाद, चर्चा में है एक बार फिर

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि देश में समान नागरिक आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने के लिए अभी तक कारगर प्रयास नहीं किए गए। देश की सर्वोच्च अदालत ने गोवा के एक संपत्ति विवाद मामले की सुनवाई के दौरान ये बात कहीं।

Update:2023-04-27 20:11 IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि देश में समान नागरिक आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने के लिए अभी तक कारगर प्रयास नहीं किए गए। देश की सर्वोच्च अदालत ने गोवा के एक संपत्ति विवाद मामले की सुनवाई के दौरान ये बात कहीं। कोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कई बार इस बारे में कहा, लेकिन अभी तक समान नागरिक आचार संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ।

यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक आचार संहिता। देश की राजनीति में सात दशक से यह फंसा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद एक बार फिर इसकी चर्चा शुरू हो गई है।

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देश की सर्वोच्च अदालत ने सरकार को टोका और कहा कि 63 साल बीत जाने के बाद भी इस पर कोई गंभीर कदम नहीं उठाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने वाले देश के इकलौते राज्य गोवा की मिसाल दी।

गौरतलब है कि देश में सभी मामलों में यूनिफॉर्म कानून हैं, लेकिन शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर अभी भी फैसला पर्सनल लॉ के हिसाब से लिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में तीन तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर ऐतिहासिक निर्णय लिया है।

बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत करते आए हैं। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अब इस मुद्दे के फिर से गर्माने के आसार बन गए हैं।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

गोवा के एक संपत्ति विवाद केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) का जिक्र किया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 44 पर गंभीर न होने को सरकारों की असफलताएं बताई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू लॉ 1956 में बनाया गया, लेकिन 63 साल बीत जाने के बाद भी पूरे देश में समान नागरिक आचार संहिता लागू करने के प्रयास नहीं किए गए।

देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह गौर करने वाली बात है कि संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात की गई है और संविधान निर्माताओं ने उम्मीद जताई थी कि सरकार पूरे भारत में नागरिकों के लिए इसे लागू करने का प्रयास करेगी पर आज तक इस संबंध में कोई ऐक्शन नहीं लिया गया।'

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कोर्ट ने आगे इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वैसे तो हिंदू लॉ 1956 में लागू हो गया था, लेकिन देश के सभी नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के कोई प्रयास नहीं हुए, जबकि शाह बानो और सरला मुदगल के मामलों में इस बारे में कहा गया था।'

गोवा में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड

जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ शुक्रवार को गोवा के एक संपत्ति विवाद के मामले की सुनवाई की। फैसला सुनाते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा, 'भारतीय राज्य गोवा का एक शानदार उदाहरण है, जिसने धर्म की परवाह किए बिना सभी के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया है... गोवा में जिन मुस्लिम पुरुषों की शादियां पंजीकृत हैं, वे बहुविवाह नहीं कर सकते हैं। इस्लाम को मानने वालों के लिए मौखिक तलाक (तीन तलाक) का भी कोई प्रावधान नहीं है।'

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गोवा में कैसे लागू हुआ यूनिफॉर्म सिविल कोड

1961 में भारत में शामिल होने के बाद गोवा, दमन और दीव के प्रशासन के लिए भारतीय संसद ने कानून पारित किया- गोवा, दमन और दीव एडमिनिस्ट्रेशन ऐक्ट 1962 और इस कानून में भारतीय संसद ने पुर्तगाल सिविल कोड 1867 को गोवा में लागू रखा।

इस तरह से गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई। शुक्रवार को पीठ ने भी कहा कि गोवा राज्य में पुर्तगीज सिविल कोड 1867 लागू है, जिसके तहत उत्तराधिकार को लेकर कानून स्पष्ट हैं।

गोवा में लागू समान नागरिक संहिता के अंतर्गत वहां पर उत्तराधिकार, दहेज और विवाह के संबंध में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के लिए एक ही कानून है। इसके साथ ही इस कानून में ऐसा प्रावधान भी है कि कोई माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते।

 

इसमें शामिल एक प्रावधान यह भी है कि यदि कोई मुस्लिम अपनी शादी का पंजीकरण गोवा में करवाता है तो उसे बहुविवाह की अनुमति नहीं होगी।

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सुप्रीम कोर्ट में ये था मामला

सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में यह टिप्‍पणी की, वह गोवा के एक परिवार के संपत्‍ति विवाद से जुड़ा था। गोवा में 2016 तक पुर्तगाली सिविल लॉ लागू था, जिसके मुताबिक गोवा या गोवा से बाहर सम्पत्ति रखने वाले गोवा के मूल निवासियों का संपत्ति बंटवारा इसी कानून से होता था। हालंकि 2016 में पुर्तगाली सिविल कोड के कई प्रावधानों को गोवा उत्तराधिकार कानून से बदल दिया गया था। इसी के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई थी।

पहले भी सुप्रीम कोर्ट कहा था

अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई तलाक कानून में बदलाव की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हउए केंद्र के वकील से कहा था कि देश में अलग अलग पर्सनल लॉ की वजह से भ्रम की स्थिति बनी रहती है। सरकार चाहे तो एक जैसा कानून बना कर इसे दूर कर सकती है। क्या सरकार ऐसा करेगी? अगर आप ऐसा करना चाहते हैं तो आपको ये कर देना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो और सरला मुदगल बनाम केंद्र सरकार के मामले में दिए अपने फैसले में इसे लागू करने की सिफारिश कर चुका है (1982 में शाहबानो केस मुस्लिम महिलाओं के मेंटेनेंस राइट को लेकर था, वही सरला मुदगल फैसले में सभी नागरिकों के लिए एकसमान कानून की बात कही थी) लेकिन इसके बावजूद इस बारे में कुछ नहीं हुआ।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड

संविधान के अनुच्छेद-44 में समान नागरिक आचार संहिता की बात कही गई है और नीति निर्देशक तत्व में वर्णित है। संविधान कहता है कि सरकार इस बारे में विचार विमर्श करे। हालांकि सरकार इसके लिए बाध्यकारी नहीं है।

देश में तमाम मामलों में यूनिफॉर्म कानून है, लेकिन शादी, तलाक और उत्ताराधिकार जैसे मुद्दों पर अभी पर्सनल लॉ के हिसाब से फैसला होता है, लेकिन गोवा जैसे राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। देखा जाए तो यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर बहस 70 साल से चल रही है। यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता जैसा कानून दुनिया के अधिकतर विकसित देशों में लागू है।

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मोदी सरकार उठा सकती है कदम

मोदी सरकार ने हाल ही में तीन तलाक, अनुच्छेद 370 पर ऐतिहासिक कदम उठाया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना को बीजेपी अपने एजेंडे में रखी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। पहले भी सत्तारूढ़ पार्टी सिंगल सिविल कोड की वकालत करती रही है और विरोधियों पर 'वोट बैंक पॉलिटिक्स' का आरोप लगाकर उसे घेरती रही है।

लॉ कमीशन ने पूछे थे ये सवाल

यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए बने लॉ कमीशन ने 2016 में 16 सवाल जनता के सामने रखे थे। इसमें हिंदू महिला की राइट ऑफ प्रॉपर्टी पर भी सवाल पूछा गया कि यह कैसे सुनिश्चित हो कि हिंदू महिला अपने संपत्ति के अधिकार का प्रयोग करें और वह दबाव में न आएं।

तो वहीं ईसाई धर्म में तलाक के लिए वेटिंग पीरियड 2 साल है। इस बारे में पूछा गया कि क्या ये ईसाई महिला के साथ भेदभाव नहीं है?

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-क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद-44 में प्रावधान है कि सरकार समान नागरिक आचार संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने का प्रयास करेगी?

-क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड में तमाम धर्मों के पर्सनल लॉ, कस्टमरी प्रैक्टिस या उसके कुछ भाग शामिल हो सकते हैं, जैसे शादी, तलाक, गोद लेने की प्रक्रिया, भरण पोषण,उत्तराधिकार और विरासत से संबंधित प्रावधान?

-क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड में पर्सनल लॉ और प्रथाओं को शामिल करने से लाभ होगा?

-क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड से लैंगिग समानता सुनिश्चित होगी?

-क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड को वैकल्पिक किया जा सकता है?

-क्या बहुविवाह प्रथा, बहुपति प्रथा, मैत्री करार आदि को खत्म किया जाए या फिर रेग्युलेट किया जाए।

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-क्या 3 तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए या कस्टम में रहने दिया जाए या फिर संशोधन के साथ रहने दिया जाए?

-क्या यह तय करने का उपाय हो कि हिंदू स्त्री अपने संपत्ति के अधिकार का प्रयोग बेहतर तरीके से करे, जैसा पुरुष करते हैं? क्या इस अधिकार के लिए हिंदू महिला को जागरूक किया जाए और तय हो कि उसके सगे संबंधी इस बात के लिए दबाव न डालें कि वह संपत्ति का अधिकार त्याग दे।

-ईसाई धर्म में तलाक के लिए 2 साल का वेटिंग पीरियड संबंधित महिला के अधिकार का उल्लंघन तो नहीं है?

-क्या तमाम पर्सनल लॉ में उम्र का पैमाना एक हो?

-क्या तलाक के लिए तमाम धर्मों के लिए एक समान आधार तय होना चाहिए?

-क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत तलाक का प्रावधान होने से भरण-पोषण की समस्या हल होगी?

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-शादी के रजिस्ट्रेशन को बेहतर तरीके से कैसे लागू किया जा सकता है?

-अंतरजातीय विवाह या फिर अंतर धर्म विवाह करने वाले कपल की रक्षा के लिए क्या उपाय हो सकते हैं?

-क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

-यूनिफॉर्म सिविल कोड, या फिर पर्सनल लॉ के लिए सोसाइटी को संवेदनशील बनाने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं?

 

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ये है विवाद

यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वाले कहते हैं कि ये सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है। मुस्लिम समुदाय के लोग तीन तलाक की तरह इस पर भी तर्क देते हैं कि वह अपने धार्मिक कानूनों के तहत ही मामले का निपटारा करेंगे। दरअसल, समान नागरिक संहिता लागू होता है तो भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार आएगा। अभी कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं।

उधर, कॉमन सिविल कोड के समर्थक कहते हैं कि सभी के लिए कानून एक समान होने से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा।

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