भारत के पास नहीं है ये दस्तावेज: मोर और टाइगर कब घोषित हुए राष्ट्रीय पशु-पक्षी...
विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना है कि हम नागरिकता साबित करने के लिए पुराने दस्तावेज कहां से लाएंगे। इसी बीच आरटीआई (RTI) से यह खुलासा हुआ है कि टाइगर (Tiger)-मोर (Peacock) को हमारे देश का राष्ट्रीय पशु-पक्षी घोषित करने वाले दस्तावेज सरकार के पास नहीं थे।
नई दिल्ली: जहां देश में एक ओर नागरिकता संशोधन कानून नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। तो विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों का कहना है कि हम नागरिकता साबित करने के लिए पुराने दस्तावेज कहां से लाएंगे। इसी बीच आरटीआई (RTI) से यह खुलासा हुआ है कि टाइगर (Tiger)-मोर (Peacock) को हमारे देश का राष्ट्रीय पशु-पक्षी घोषित करने वाले दस्तावेज सरकार के पास नहीं थे।
मोर और टाइगर को पहली बार राष्ट्रीय पशु-पक्षी कब और किसने घोषित किया
बता दें कि 8 साल पहले एक री नोटिफिकेशन जारी कर सरकार को फिर से यह बताना पड़ा कि टाइगर और मोर हमारे देश के राष्ट्रीय पशु-पक्षी हैं। दूसरी ओर सरकार के पास इस सवाल का भी जवाब नहीं है कि मोर और टाइगर को पहली बार राष्ट्रीय पशु-पक्षी कब और किसने घोषित किया था।मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित करने और उनकी संख्या को लेकर लोकसभा में भी 13 दिसंबर 2019 को मामला उठ चुका है।
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मोर को भारत का राष्ट्रीय पक्षी कब घोषित किया गया था
15 दिसम्बर 2019 को पर्यावरण और वन मंत्रालय में एक आरटीआई दाखिल की गई थी। आरटीआई में मोर के संबंध में 11 सवालों की जानकारी मांगी गई थी।जो सवाल पूछे गए थे उसमे यह दो सवाल अहम थे, मोर को भारत का राष्ट्रीय पक्षी कब घोषित किया गया था? और मोर को भारत का राष्ट्रीय पक्षी किसने घोषित किया था और कब? लेकिन मंत्रालय ने दोनों ही सवालों का जवाब नहीं दिया है।मंत्रालय ने इतना जरूर बताया है कि मोर और टाइगर को राष्ट्रीय पशु-पक्षी बताने वाला नोटिफिकेशन दोबारा से 30 मई 2011 में जारी किया गया है।
मोर के संबंध में यह जानकारी क्यों छिपा रहा है मंत्रालय
मोर को राष्ट्रीय पक्षी बताने वाले दस्तावेज कब, कैसे गुम हुए और इसके पीछे किसकी जिम्मेदारी तय थी यह बताने से मंत्रालय कतरा रहा है।यहां तक की राष्ट्रीय पक्षी और पशु से संबंधित दस्तावेज गुम होने के बाद किसी पुलिस स्टेशन में इसकी रिपोर्ट कराई या नहीं और अगर कराई तो कब और किस पुलिस स्टेशन में। इस सवाल का भी मंत्रालय कोई जवाब नहीं दे रहा है।
राष्ट्रीय पक्षी मोर की नहीं होती जनगणना
मोर देश का राष्ट्रीय पक्षी है।वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 के तहत संरक्षित पक्षी भी है।बावजूद इसके पर्यावरण और वन मंत्रालय मोर की जनगणना नहीं कराता है।जब आरटीआई के तहत मंत्रालय से जानकारी चाही गई कि आखिरी बार कब राष्ट्रीय पक्षी मोर की गणना की गई थी।पूर्ण जानकारी दें तो इसके संबंध में मंत्रालय ने कहा कि यह जानकारी आप राज्यों से लें।मंत्रालय के पास यह जानकारी भी नहीं है कि मौजूदा वक्त में मोरों की संख्या कितनी है।
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जबकि पक्षी विशेषज्ञ एन.शिव कुमार का कहना है कि किसी एक-दो राज्य ने जरूर मोरों की जनगणना कराने की कोशिश की थी।लेकिन आए दिन पक्षियों में फैलाने वाली बीमारी को देखते हुए केन्द्रीय स्तर पर मोरों की जनगणना होना बेहद जरूरी है।जबकि दूसरे पशु-पक्षियों की जनगणना और उन्हें बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं और उनके लिए सेंचुरी भी बनाई जाती है।
क्या कहते हैं पक्षी विशेषज्ञ एन. शिव कुमार
एन।शिव कुमार का कहना है कि राष्ट्रीय पक्षी होने के साथ ही मोर एक खूबसूरत पक्षी है।यह कई तरह के उन जंगली कीड़े-मकोड़े खाकर खत्म कर देता है जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस लिहाज से मोर किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद है।
मोर ज़मीन पर घोसला बनाता है इसलिए जंगल के कुछ बाहरी इलाके ऐसे होने चाहिए जहां इंसान और गाय-भैंस न जाते हों।जिससे वो बेखौफ होकर अपने अंडे दे सके।मोरों को बचाने और उनकी संख्या को बढ़ाने के लिए सेंचुरी बनाई जानी चाहिए।जिससे की जैसे ध्यान न देने पर अचानक से गिद्ध गायब हो गए तो कहीं मोरों का भी ऐसा ही हश्न न हो जाए।