झारखंड में दो सीटों के लिए चुनाव प्रचार थमा, 03 नवंबर को दुमका और बेरमो में पड़ेंगे वोट
झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद ये पहला मौका है जब यूपीए और एनडीए को जनता के बीच जाने का मौका मिल रहा है। लिहाज़ा, दोनों ही गठबंधन पूरी शिद्दत के साथ चुनाव लड़ रहे हैं।
रांची: झारखंड के दुमका और बेरमो विधानसभा सीट के लिए चुनाव प्रचार रविवार को थम गया। कल यानी 03 नवंबर को दोनों सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। इससे पहले यूपीए और एनडीए खेमे की तरफ से पूरी ताकत झोंकी गई। महागठबंधन की ओर से प्रचार की बागडोर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संभाल रहे थे तो एनडीए की जानिब से तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री मोर्चा ले रहे थे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश भी अपने प्रचार और शैली के कारण चर्चा में रहे और उन्हे देशद्रोह का मुकदमा झेलना पड़ रहा है।
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यूपीए और एनडीए के लिए महत्वपूर्ण चुनाव
झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद ये पहला मौका है जब यूपीए और एनडीए को जनता के बीच जाने का मौका मिल रहा है। लिहाज़ा, दोनों ही गठबंधन पूरी शिद्दत के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव की तरह यूपीए गठबंधन में मज़बूती दिखी तो भाजपा अपने पुराने साथी आजसू के साथ मैदान में उतरा है। विधानसभा चुनाव में गठबंधन नहीं होने के कारण भाजपा और आजसू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। वामदलों ने यूपीए प्रत्याशियों को समर्थन दिया है तो जदयू ने भी एनडीए उम्मीदवारों के प्रति सहयोग का भाव दिखाया है।
दुमका और बेरमो सीट का महत्व
दुमका संताल परगना क्षेत्र का महत्वपूर्ण सीट है। संताल पर लंबे समय से झारखंड मुक्ति मोर्चा का वर्चस्व रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ने संताल की दो सीटों दुमका और बरहेट से चुनाव लड़ा। हेमंत सोरेन को दोनों ही सीटों पर जीत मिली। बाद में हेमंत ने दुमका सीट छोड़ दी और छोटे भाई बसंत सोरेन को मैदान में उतारा। लिहाज़ा, झामुमो हर हाल में दुमका सीट जीतना चाहती है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लुईस मरांडी ने दुमका पर जीत का परचम फहराया था लेकिन साल 2019 में उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा।
लिहाज़ा, भाजपा अपनी खोई सीट को दोबारा पाना चाहती है। यही वजह है कि, बीजेपी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में मोर्चा संभाले हुए है। बात अगर बेरमो विधानसभा सीट की करें तो यहां से कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी राजेंद्र सिंह का पिछले दिनों निधन हो गया। उनके जाने के बाद खाली सीट पर कांग्रेस ने उनके सुपुत्र अनूप सिंह को मैदान में उतारा है। लिहाजा, यूपीए हर हाल में अपनी सीट बचाना चाहती है। इससे पहले यहां से भाजपा के योगेश्वर बाटुल विजयी हुए थे लेकिन साल 2019 में उन्हे हार का सामना करना पड़ा। लिहाज़ा, भाजपा अपनी खोई सीट वापस चाहती है।
चुनाव परिणाम का असर
उप चुनाव परिणाम का झारखंड की राजनीति में व्यापक प्रभाव पड़ेगा। दरअसल, इस चुनाव में यूपीए के साथ ही एनडीए पूरी ताकत के साथ मैदान में है। लिहाज़ा, जनता का आशीर्वाद किसे मिलता है इससे गठबंधन दलों को आगे का रास्ता तय करना आसान होगा। जीत-हार का परिणाम हेमंत सोरेन सरकार के पिछले 10 महीनों के कार्यकाल पर जनता की मुहर के तौर पर देखा जाएगा। लिहाज़ा, दोनों सीट को बचाना यूपीए के लिए ज़रूरी है। भाजपा इस जीत से अपने जनाधार को वापस पा सकेगा। साथ ही उसे वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार को घेरने का मौका मिलेगा।
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चुनाव झारखंड का मुद्दा केंद्र का
झारखंड विधानसभा उप चुनाव में जनता के वास्तविक मुद्दों के बजाय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति अधिक हुई। इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दाढ़ी से लेकर उनकी शैक्षणिक योग्यता तक का मुद्दा उठा। इतना ही नहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश पर सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाकर उनपर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया गया। केंद्र और राज्य संबंधों के साथ ही जीएसटी, डीवीसी, कोयला खदान और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप खूब हुए। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि, उप चुनाव के बहाने दोनों गठबंधनों ने जमकर राजनीति की। हालांकि, अंतिम निर्णय जनता जनार्दन को करना है जिसका परिणाम आगामी 10 नवंबर को वोटों की गिनती के साथ आ जाएगा।
शाहनवाज़
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