रामकृष्ण वाजपेयी
नागालैंड में 2018 का चुनावी दंगल इस बार राष्ट्रीय क्षितिज पर छाए रहने के आसार हैं। वैसे तो टीआर जेलांग शासित नगालैंड हमेशा से क्षेत्रीय दलों नागलैंड पीपुल्स फ्रंट व नागा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट का गढ़ रहा है। दो बार राज्य में शासन कर चुका यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट भी क्षेत्रीय दलों में मजबूत प्रतिद्वन्दी है।
पिछली बार चार विधायक जिताने वाली भारतीय जनता पार्टी का लक्ष्य इस बार मात्र चार पांच विधायक चुनवाने का नहीं बल्कि सरकार बनाने का है। चुनाव पूर्व किसी भी गठबंधन से इंकार करते हुए पार्टी सभी 60 सीटों पर चुनाव लडऩे को कमर कसे हुए है। उधर कांग्रेस भी सांप्रदायिकता के मुद्दे पर सभी 60 सीटों पर ताल ठोकती नजर आ रही है।
कई पराजय झेल चुकी ‘आप’ भी नागालैंड में सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी में है। इस बीच मुख्यमंत्री टीआर जेलांग ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर नागालैंड के राजनीतिक मुद्दे का एक सम्मानजनक समाधान 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले निकालने का अनुरोध किया है।
विश्लेषण पर आगे बढऩे से पहले आइए देखते हैं कि पिछली बार क्या रहा था चुनावी गणित। नागालैंड विधानसभा के 2013 के चुनाव में सत्ताधारी नागालैंड पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने 38 सीटों पर जीत दर्ज कर दो तिहाई बहुमत हासिल किया था और पार्टी ने राज्य में तीसरी बार सरकार बनाई थी। पार्टी ने पिछली बार के मुकाबले 12 सीटें अधिक जीती थीं। एक उम्मीदवार के निधन के चलते राज्य में एक सीट पर चुनाव रद्द कर दिए गए थे।
सत्ताधारी गठबंधन डीएएन के घटक के तौर पर मैदान में उतरे भारतीय जनता पार्टी और जनता दल-युनाइटेड ने एक-एक सीट पर विजय पाई थी। एनसीपी ने 2008 के चुनाव में पार्टी ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी और 2013 में उसे चार सीटों पर जीत हासिल हुई थी। नागालैंड के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीफू रियो ने उत्तरी अंगामी सीट पर पांचवीं बार जीत दर्ज की थी।
एनपीएफ सरकार को पिछले एक दशक से राज्य में कायम शांति के लिए किए गए प्रयासों का लाभ मिलने की उम्मीद पहले से थी और उसे मिला भी। प्रचार के दौरान कांग्रेस का मुख्य जोर भ्रष्टाचार पर रहा था। कांग्रेस इस बार भी भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता को मुद्दा बनाने जा रही है।
एनपीएफ ने भाजपा और जद-यू के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था, वहीं कांग्रेस को जीत के बाद समान विचारधारा वाली पार्टियों और स्वतंत्र रूप से चुनाव जीतने वाले प्रत्याशियों को अपने पक्ष में करने का भरोसा था।वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में एनपीएफ को 26 सीटें और कांग्रेस को 23 हासिल हुई थी। भाजपा और राकांपा ने दो-दो सीटें जीतीं थीं और सात निर्दलीय विधायक चुने गए थे।
चुनाव आयोग से समझौता होने तक चुनाव न कराने की अपील
नागालैंड के मुख्यमंत्री टीआर जेलांग ने हाल में विधानसभा से एक प्रस्ताव पास कराकर केंद्र को भेजा है कि नागालैंड के राजनीतिक मुद्दे का विधानसभा चुनाव से पहले एक सम्मानजनक हल निकालें। उन्होंने चुनाव आयोग से भी समझौता होने तक चुनाव न कराने का अनुरोध किया है ताकि सभी नागा अपने लोकतांत्रिक व दूसरे अधिकारों का उपयोग कर सकें। प्रस्ताव में राजनीतिक दलों व निर्दलीयों का भी सहयोग मांगा गया है।
एक नजर नागालैण्ड पर
नागालैंड देश के पूर्वोत्तर का राज्य है। नागा यहां की एक प्रमुख जनजाति है। यहां की जनसंख्या 19,78, 502 है। इस राज्य में 11 जिले हैं। राजधानी व सबसे बड़ा शहर कोहिमा है। धर्म के आधार पर देखें तो यहां पर 84.1 प्रतिशत ईसाई, 8.74 प्रतिशत हिन्दू, 2.44 प्रतिशत मुस्लिम व .5 प्रतिशत में अन्य जातियां हैं।
1963 से, अब तक विभिन्न पार्टियों के दस व्यक्ति मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हो चुके हैं। राज्य के पहले मुख्यमंत्री नागा नेशनलिस्ट ऑर्गनाइजेशन के पी. शीलू एओ थे। वर्तमान मुख्यमंत्री टी. आर. जेलियांग हैं और इस पद पर 24 मई 2014 से विराजमान हैं।
मतदाता निराश
क्या नागालैंड के लोग ईमानदार, गंभीर और दूरदृष्टि वाले प्रत्याशी के चुनाव के लिए तैयार हैं? हाल में किये गए सर्वे में उभर कर सामने आया है कि केवल 17 प्रतिशत लोग ने कहा है कि वे तैयार हैं जबकि 52 प्रतिशत ने कहा है नहीं।
सर्वे के अनुसार अधिकांश लोग वर्तमान परिदृश्य देखकर थके हुए और हताश हैं। उनमें किसी नये को चुनने का साहस नहीं है।
सबसे अधिक समस्या ईमानदार व्यक्ति के चुनाव को लेकर है। उनका यह भी मानना है कि यदि हम किसी ईमानदार व्यक्ति को चुनना चाहते हैं तो कोई भी नहीं है। नहीं इसलिए भी क्योंकि स्वच्छ और साफ चुनाव ने गलत दिशा ले ली है। पैसे का इतना अधिक बोलबाला है कि नागा किसी दैवीय हस्तक्षेप के बिना किसी भी हाल में समझौता नहीं कर सकते। इसलिए भी कि केवल 10 फीसद गंभीर मतदाता हैं और 80 फीसद को पैसे और दूसरी चीजों से बरगलाया जा सकता है।
नागालैंड शांति समझौता है भाजपा के गले की फांस
नागालैंड शांति समझौता हुए दो साल बीत चुके हैं लेकिन यह समझौता क्या है यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। जबकि नागाओं को इस शांति समझौते के खुलासे का बेसब्री से इंतजार है। हाल ही में आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने देश के पूर्वोतर इलाकों में स्थाई शांति के लिए नागा विद्रोहियों के साथ हुए शांति समझौते का ब्यौरा सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया है।
यह बहुत बड़ा सवाल है कि केंद्र सरकार इसके रहस्य से पर्दा उठाने को क्यों तैयार नहीं है। गृह मंत्रालय का कहना है कि मामला देश की एकता, अखंडता से जुड़ा है, आरटीआई के दायरे से बाहर है। चर्चा है कि केंद्र सरकार ने नागा विद्रोहियों की अलग झंडे व अलग पासपोर्ट की मांग को स्वीकार किया है।
कपूर ने पिछले साल 9 जुलाई को प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई लगाकर केंद्र सरकार व नैशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के बीच 3 अगस्त 2015 को संपन्न समझौते की प्रति मांगी थी। यह भी जानकारी चाही थी कि समझौता किन-किन बिंदुओं पर लागू हुआ है।
इस आरटीआई आवेदन व प्रथम अपील के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने चुप्पी साध ली। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग ने बताया कि 3 अगस्त 2015 को केंद्र सरकार की ओर से नागा शांति वार्ता के वार्ताकार आरएन रवि व नैशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड की ओर से टी. मुईवाह ने नई दिल्ली में समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थाई शांति स्थापित करना है।