मुंबई: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में प्रचार ने तेजी पकड़ ली है। सूबे में बारामती को शरद पवार का गढ़ माना जाता है। इस इलाके में चुनाव प्रचार तेज हो गया है। बारामती लोकसभा व विधानसभा सीटों पर पांच दशक से पवार फैमिली का दबदबा रहा है। सचमुच किसी भी क्षेत्र में लगातार 52 वर्ष तक एक ही परिवार का अजेय रहना किसी अचरज से कम नहीं है। इस बार पुणे जिले की बारामती विधानसभा सीट से राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे अजीत पवार फिर किस्मत आजमा रहे हैं। अजीत पवार सातवीं बार फिर चुनाव जीतने के प्रति आश्वस्त हैं।
1967 में पवार ने जीता पहला चुनाव
बारामती को पवार फैमिली का गढ़ यूं ही नहीं माना जाता। 52 साल पहले 1967 में शरद पवार ने पहली बार यहां से विधानसभा का चुनाव जीता था। उसके बाद से यह सीट लगातार इस परिवार के ही कब्जे में बनी हुई है। इस सीट से शरद पवार ने छह बार चुनाव जीता। उसके बाद उनके भतीजे अजीत पवार ने भी इस सीट पर जोरदार प्रदर्शन करते हुए लगातार छह बार इसे अपने अपने कब्जे में बनाए रखा। इस बार वे सातवीं बार इस चुनाव मैदान उतरे हैं और उन्हें अपनी जीत का पक्का भरोसा है।
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पवार के बाद तीन चुनाव बेटी ने जीते
छह बार विधानसभा सीट अपने कब्जे में रखने के अलावा राकांपा मुखिया शरद पवार बारामती लोकसभा सीट से भी खुद पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। उनके बाद उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने इस सीट पर कब्जा बनाए रखा और वे तीन बार इस सीट से चुनाव जीत चुकी हैं। क्षेत्र के लोगों का मानना है कि इलाके के विकास के कारण ही पवार फैमिली इस इलाके से चुनाव जीतती रही है। यही कारण है कि उन्हें यहां से कभी पराजय का मुंह नहीं देखना पड़ा।
क्षेत्र से लगाव का मिला फायदा
महाराष्ट्र में शरद पवार की छवि जुझारू और उलटफेर करते रहने वाले नेता की रही है। वे बाजी पलटने के माहिर खिलाड़ी माने जाते रहे हैं। मजे की बात यह है कि कभी सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोडऩे वाले पवार कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा-शिवसेना गठबंधन को जवाब देने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
शरद पवार की खासियत रही है कि वे चाहे किसी भी दल में रहें, उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों का ख्याल रखा है और यही उनके परिवार की लगातार जीत का सबसे बड़ा कारण रहा है। बारामती विधानसभा क्षेत्र हो, या संपूर्ण लोकसभा क्षेत्र, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को जितना मिलता रहा है, शायद ही किसी और क्षेत्र के लोगों को मिला हो। महाराष्ट्र अपनी सहकारी चीनी मिलों के लिए मशहूर है, तो उसमें बहुत बड़ा योगदान शरद पवार का भी रहा है। पवार के बारामती लोकसभा क्षेत्र में ही सात चीनी मिलें हैं। इसका लाभ सीधे काम करने वाले लोगों के अलावा यहां के किसानों को भी मिलता है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी किया है काम
किसानों की आबादी बढ़ाने के लिए दुग्ध उत्पाद तैयार करने वाली एक मल्टीनेशनल कंपनी श्रीबर डायनमिक्स यहां काम कर रही है। पवार के प्रयासों से लगी यह कंपनी क्षेत्र के किसानों से ही दूध लेती है। भारत फोर्ज और पियाजो जैसी और भी कई कंपनियों की वजह से यह क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ है।
शिक्षा के क्षेत्र में पवार फैमिली के विशेष प्रयासों के कारण भी बारामती पवार का गढ़ बना हुआ है। पवार परिवार द्वारा चलाए जा रहे कई शैक्षणिक संस्थानों के कारण बारामती आज पुणे शहर के बाद शिक्षा का दूसरा बड़ा केंद्र बन चुका है। आईटी, इंजीनियरिंग, बायोटेक, मेडिकल व अन्य प्रमुख कोर्स करने के लिए देश भर से छात्र-छात्राएं यहां आते हैं। इसके कारण यहां के लोगों का रोजगार भी बढ़ा है।
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मोदी लहर में भी सीट पर कब्जा बरकरार
बारामती में पवार का कितना असर है इसे 2014 व 2019 के चुनाव परिणामों से समझा जा सकता है। 2014 और 2019 में पूरे देश की तरह महाराष्ट्र में भी मोदी लहर का असर दिखा मगर बारामती लोकसभा क्षेत्र में पवार परिवार का दबदबा बना रहा। दोनों ही लोकसभा चुनावों में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को जीत हासिल हुई और वो भी डेढ़ लाख से अधिक मतों से।
अजीत पवार की घेरेबंदी में जुटे फणनवीस
इस बार के विधानसभा चुनाव बारामती सीट पर पवार फैमिली का तिलिस्म तोडऩे के लिए भाजपा ने अजीत पवार के खिलाफ जातीय गणित के आधार पर एक बाहरी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। सीएम देवेन्द्र फणनवीस इस बार पवार फैमिली को शिकस्त देने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इस कारण उन्होंने चंद दिनों पहले ही भाजपा में शामिल हुए धनगर नेता गोपीचंद पडालकर को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा सरकार ने मराठों को 16 फीसद आरक्षण दिया है। इसके बावजूद मराठों का संगठन मराठी क्रांति मोर्चा बारामती में शरद पवार के परिवार के साथ है। अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है। हर किसी की निगाह इस चुनाव क्षेत्र पर लगी हुई है।