गोगोई ने पहली बार दिया जवाब : मध्यस्थता करने वाले पूर्व जजों से सवाल क्यों नहीं

देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने राम मंदिर सहित देश के कई प्रमुख मामलों में फैसला सुनाया था। रिटायरमेंट के बाद उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया था।

Update: 2020-05-15 05:33 GMT

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। राज्यसभा का सदस्य बनने के बाद आलोचनाओं का शिकार हुए देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अब अपनी आलोचना करने वालों को जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसे जजों पर सवाल क्यों नहीं उठाए जाते जो रिटायरमेंट के बाद एक्टिविस्ट बन जाते हैं या वाणिज्यिक मध्यस्थता के कामकाज लेते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के एल्युमनी कनफेडरेशन की ओर से आयोजित एक वेबिनार में हिस्सा लेते हुए यह बात कही।

राज्यसभा सदस्य बनने पर हुई थी आलोचना

देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने राम मंदिर सहित देश के कई प्रमुख मामलों में फैसला सुनाया था। रिटायरमेंट के बाद उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया था। उनके इस मनोनयन पर विपक्षी नेताओं सहित सोशल मीडिया में भी सवाल उठाए गए थे। कांग्रेस ने तो यहां तक आरोप लगाया था कि सरकार ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लिया है। माकपा का कहना था कि यह कदम न्यायपालिका को कमजोर करने का शर्मनाक प्रयास है। सोशल मीडिया पर भी कुछ लोगों का कहना था कि उनको इनाम के तौर पर राज्यसभा का सदस्य बनाया गया है। अब पहली बार गोगोई ने इस मुद्दे पर अपना मुंह खोला है।

यह न्यायपालिका की आजादी से समझौता नहीं

देश के पूर्व सीजेआई ने कहा कि 100 में से 70 जज सेवानिवृत्त होने के बाद सरकारी पद ग्रहण करते हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या इससे न्यायपालिका की आजादी से समझौता हो गया? उन्होंने कहा कि रिटायरमेंट के बाद जजों के सरकारी पद ग्रहण करने को न्यायपालिका की स्वायत्तता से समझौता नहीं माना जा सकता। यह किसी की व्यक्तिगत समस्या या सोच हो सकती है। उन्होंने कहा कि आप अपने कार्य में साफ और सच्चे होने चाहिए और यदि ऐसा है तो मेरी नजर में कोई समस्या नहीं है।

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इस पर क्यों नहीं हो रहे सवाल

गोगोई ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद एक्टिविस्ट बनने वाले जज किसके साथ काम कर रहे हैं। क्या इस पर कभी कोई सवाल उठाया गया? उन्होंने कहा कि इन जजों पर यह सवाल भी नहीं उठाए जाते कि उनके बयान उन फैसलों से जुड़े हुए हैं जो उन्होंने बेंच में रहते हुए खुद दिए हैं।

तीसरी श्रेणी वालों पर विवाद क्यों

रिटायरमेंट के बाद न्यायाधीशों को मिलने वाले कामकाज के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में गोगोई ने कहा कि ऐसे जजों की तीन श्रेणियां होती हैं। एक्टिविस्ट न्यायाधीश, वाणिज्यिक मध्यस्थता का कामकाज लेने वाले और अन्य प्रकार के काम कार्य लेने वाले। उन्होंने कहा कि तीसरी श्रेणी वालों को ही हमेशा विवाद में क्यों घसीटा जाता है। दो अन्य श्रेणियों के लोगों से सवाल क्यों नहीं पूछे जाते।

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ईमानदार बहस होना जरूरी

पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका आलोचना के खिलाफ नहीं है, लेकिन एक ईमानदार, बौद्धिक और सार्थक आलोचना होनी चाहिए। न्यायिक व्यवस्था आलोचना के खिलाफ नहीं है और इसमें सुधार के लिए गुंजाइश है, लेकिन जहां तक किसी निर्णय का संबंध है तो उस पर ईमानदार, बौद्धिक और सार्थक बहस होनी चाहिए। किसी मकसद की बात को दूसरों पर थोपना विनाशकारी है।

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