किसानों का ट्रैक्टर मार्चः आंदोलन हुआ तेज, ये है आज की पूरी रणनीति

जयपुर-दिल्ली रोड पर पुलिस की बर्बरता के बावजूद किसानों का हौसला बुलंद है और समाजसेवी संस्थाएं लगातार किसानों के समर्थन में आगे बढ़ रही हैं।

Update: 2021-01-07 04:01 GMT
कृषि कानूनों की वापसी को लेकर किसान अड़े हुए हैं। बैठक में एमएसपी को कानूनी रूप देने के मुद्दे पर भी सहमति नहीं बनी है।

नई दिल्ली: नए कृषि बिल पर किसानों का आंदोलन अब तेज होने लगा है। अब किसान आंदोलन को लेकर सरकार और किसानों के बीच टकराव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 42 दिन से किसान डटे हुए हैं। आगे की रणनीति को लेकर किसानों की बैठक हो रही है और होगी। पिछली बैठक में सरकार से किसान संगठनों के नेताओं की बात नहीं बन सकी। कृषि कानूनों की वापसी को लेकर किसान अड़े हुए हैं। बैठक में एमएसपी को कानूनी रूप देने के मुद्दे पर भी सहमति नहीं बनी है।

ट्रैक्टर परेड का रिहर्सल

बृहस्पतिवार को दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों को लेकर बैठे किसान केएमपी पर ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। सिंघु, टीकरी, गाजीपुर और पलवल से करीब 4500 हजार ट्रैक्टर मार्च के लिए किसानों के साथ रवाना होंगे। विरोध मार्च की तैयारियों में पूरे दिन सभी किसान संगठनों के साथ समूहों में बैठकों का दौर जारी रहेगा। 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड का किसान, इसे रिहर्सल बता रहे हैं।

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भारतीय किसान यूनियन एकता (डकौंदा), पंजाब के प्रदेश महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा कि ट्रैक्टर मार्च के जरिये दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान सरकार के रवैये के खिलाफ अपना विरोध जताएंगे। करीब 2000 ट्रैक्टर सिंघु से टीकरी की तरफ जबकि टीकरी से करीब एक हजार ट्रैक्टर रवाना होंगे। इसी तरह गाजीपुर से पलवल तक भी करीब 1500 ट्रैक्टर के साथ किसान, मार्च के लिए कूच करेंगे।

 

उम्मीद पर फिरा पानी

खराब मौसम के पूर्वानुमान की वजह से ट्रैक्टर मार्च एक दिन के बढ़ाया गया। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से भारी संख्या में ट्रैक्टर रवाना होंगे। 30 को हुई बातचीत में सरकार का रुख सकारात्मक दिखा तो किसानों की उम्मीदें जगी थीं। बाद में तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की बजाय इसे अच्छा बताया गया और दोबारा विचार करने की बात कही गई, किसानों के पास अच्छा है और आप सोच ले, कानूनों को रद्द करने के अलावा कोई बात नहीं हो सकती हैं।

 

देश भर के किसान, मजदूर सहित जागरूक नागरिक इस मुहिम में शामिल होकर तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस करवाने और एमएसपी को कानूनी गारंटी की मांग को मजबूती दे रहे हैं। बिहार, ओडिशा, झारखंड में अलग अलग तरीके से किसान सरकार के किसान-मजदूर-गरीब विरोधी चेहरे को बेनकाब कर रहे हैं। राजस्थान के उतरी जिलों में टैक्टर मार्च निकाले गए जबकि आंदोलन में कर्नाटक के किसान भी भारी संख्या में हिस्सा ले रहे है। दिन प्रतिदिन किसान आंदोलन देशव्यापी और जनव्यापी रूप ले रहा है।

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किसानों की जीत और सरकार की हार

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का भारत दौरा रद्द किया जाना केंद्र सरकार की कूटनीतिक हार और किसानों की जीत है। किसानों को घर छोड़े 40 से ज्यादा दिन हो गए हैं जबकि 70 से अधिक किसानों की इस दौरान मौतें हो चुकी हैं। दुनिया भर के राजनैतिक और सामाजिक संगठनों का इस आंदोलन को समर्थन मिल रहा है।

किसान को मिल रहा समर्थन, सरकार की बौखलाहट बढ़ी

सिंगर दिलजीत दोसांझ, किसान आंदोलन में लगातार हिस्सा ले रहे हैं और किसानों की हरसंभव मदद कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाना सरकार के समर्थकों की बौखलाहट का प्रतीक है। अब यह आंदोलन जन आंदोलन बन चुका है और पहली बार केंद्र सरकार बैकफुट पर दिखाई दे रही है। जयपुर-दिल्ली रोड पर पुलिस की बर्बरता के बावजूद किसानों का हौसला बुलंद है और समाजसेवी संस्थाएं लगातार किसानों के समर्थन में आगे बढ़ रही हैं।

अब 8 जनवरी को सरकार के साथ फिर से मुलाकात होगी। तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी के मु्द्दों पर पर वार्ता के लिए 8 तारीख तय की गई है। उन्होंने कहा कि हमने सरकार को बता दिया है कि कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं। अब अगले दौर की बैठक पर सबकी नजरें टिकी है।

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