केंद्र के नए प्रस्ताव पर किसान नेताओं का तेवर गरम, बातचीत पर अंतिम फैसला आज

केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन से पैदा हुआ गतिरोध खत्म होता नहीं दिख रहा है। केंद्र सरकार की ओर से किसान संगठनों को भेजे गए वार्ता के नए प्रस्ताव के प्रति भी किसान संगठनों का रुख सकारात्मक नहीं दिख रहा है।

Update: 2020-12-22 04:35 GMT
आवश्‍यक है झूठी बातों का खंडन करना

नई दिल्ली: केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन से पैदा हुआ गतिरोध खत्म होता नहीं दिख रहा है। केंद्र सरकार की ओर से किसान संगठनों को भेजे गए वार्ता के नए प्रस्ताव के प्रति भी किसान संगठनों का रुख सकारात्मक नहीं दिख रहा है। किसान संगठनों का कहना है कि सरकार की ओर से भेजे गए नए प्रस्ताव में नया कुछ भी नहीं है। ऐसे में सरकार से बातचीत का कोई खास मतलब नजर नहीं आता।

वैसे सरकार से बातचीत के मुद्दे पर अंतिम फैसला मंगलवार को होने वाली बैठक में लिया जाएगा। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों ने दिल्ली से लगी विभिन्न सीमाओं पर क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है। किसान संगठनों ने बिहार व मध्य प्रदेश जैसे दूसरे राज्यों के किसानों से भी समर्थन जुटाने का प्रयास शुरू कर दिया है।

सरकार के प्रस्ताव में नया कुछ भी नहीं

किसान संगठनों को भेजे गए केंद्र के नए प्रस्ताव पर किसान नेताओं का कहना है कि इस प्रस्ताव में भी सरकार की ओर से नया कुछ भी नहीं कहा गया है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार आंदोलन को खत्म कराना चाहती है तो उसे ठोस समाधान लेकर सामने आना चाहिए और ऐसी स्थिति में हम वार्ता करने के लिए तैयार हैं।

किसान मोर्चा के सदस्य बूटा सिंह बुर्जगिल और बक्शीश सिंह ने कहा कि सरकार की ओर से भेजे गए नए प्रस्ताव के आधार पर आगे किसी तरह की बातचीत का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार बार-बार प्रस्ताव भेजकर पुरानी बातों को दोहराने में जुटी हुई है।

किसानों को गुमराह कर रही है सरकार

उन्होंने कहा कि सच्चाई तो यह है कि सरकार इस कदम के जरिए किसानों व देश की जनता दोनों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार समस्या समझाने के लिए ठोस समाधान के साथ सामने आती है तो किसान भी बातचीत करने के लिए तैयार हैं।

किसान नेताओं ने कहा कि सरकार को पहले बातचीत का एजेंडा साफ करना चाहिए और साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसानों को तीनों कानून रद्द करने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी कहा है कि हम पहले ही ऐसे प्रस्ताव को खारिज कर चुके हैं और ऐसे में इस नए प्रस्ताव पर बातचीत का क्या मतलब रह जाता है।

कृषि कानूनों को रद्द करने का जिक्र नहीं

किसान नेता अभिमन्यु कुमार ने कहा कि सरकार के पत्र में कुछ भी नया नहीं है। नए कृषि कानूनों को संशोधित करने का सरकार का प्रस्ताव हम पहले हुई वार्ताओं में ही खारिज कर चुके हैं। अपने पत्र में सरकार ने प्रस्ताव पर हमें चर्चा करने और वार्ता के लिए अगले चरण की तारीख बताने को कहा है मगर कृषि कानूनों को रद्द करने संबंधी किसानों की मांग का इसमें कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है। ऐसे में बातचीत का कोई मतलब नहीं रह जाता है।

सरकार से बातचीत पर अंतिम फैसला आज

क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता गुरमीत सिंह ने कहा कि मंगलवार को संयुक्त मोर्चा की बैठक होगी और इस बैठक में ही सरकार को दिए जाने वाले जवाब पर अंतिम फैसला किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हम सरकार के प्रस्ताव पर विचार करेंगे और फिर उस पर किसान संगठन अंतिम फैसला करेंगे।

उन्होंने कहा कि किसान संगठनों ने बिहार सहित अन्य राज्यों के किसानों से भी आंदोलन में शामिल होने की अपील की है ताकि किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल सके।

बादल ने फिर बोला केंद्र पर हमला

दूसरी ओर शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने एक बार फिर कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार वार्ता का बार-बार प्रस्ताव देकर लोगों के बीच यह धारणा बनाने की कोशिश कर रही है कि सरकार तार्किक बात करने में लगी हुई है और किसान गलत हैं।

वैसे सच्चाई यह है कि किसानों की मांग पूरी तरह जायज है और सरकार ने किसानों के साथ बड़ा धोखा किया है। उन्होंने कहा कि नए कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए पीएम मोदी को तुरंत संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए।

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साध्वी प्राची की आमरण अनशन की चेतावनी

इस बीच हिंदूवादी नेता साध्वी प्राची ने कहा है कि किसानों की आड़ लेकर खालिस्तान की मांग की जा रही है और ऐसी मांग करने वाले लोग जिहादी हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को किसान संगठनों के दबाव में नहीं आना चाहिए।

साध्वी प्राची ने कहा कि पीएम मोदी को किसी भी सूरत में नए कृषि कानूनों को वापस नहीं लेना चाहिए। यदि किसान संगठनों के दबाव में केंद्र सरकार की ओर से कृषि बिल को वापस लिया गया तो वे दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठ जाएंगी।

अंशुमान तिवारी

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