चूक गई सरकारः किसान आंदोलन के देश भर में फैलने का खतरा, बन सकता है चुनौती

किसान नेताओं को मारने की सुपारी देने के नाटकीय घटनाक्रम के बाद एक बात साफ होती दिख रही है कि किसान अब अपना आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में बढ़ाने के फैसले पर अमल शुरू कर चुके हैं।

Update: 2021-01-23 16:42 GMT

रामकृष्ण वाजपेयी

दिल्ली की सीमा पर आंदोलन करते हुए किसानों को करीब दो महीने हो गये हैं। इस दौरान सरकार से कई दौर की वार्ता हुई। लेकिन दोनो पक्षों के अपने अपने रुख पर अड़े रहने से ये विफल रहीं। किसानों की मांग है कि सरकार इन कृषि कानूनों को वापस ले। सरकार कानूनों को किसानों के हित में बताकर वापस लेने को तैयार नहीं है। इस बीच किसान नेताओं को मारने की सुपारी देने के नाटकीय घटनाक्रम के बाद एक बात साफ होती दिख रही है कि किसान अब अपना आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में बढ़ाने के फैसले पर अमल शुरू कर चुके हैं। जिसकी बानगी आज उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व मध्यप्रदेश में देखने को मिली।

किसान आंदोलन के हुए 54 दिन

सरकार किसानों के आंदोलन को जहां पंजाब और हरियाणा के किसानों का होने का लगातार प्रचार करती आई है वहीं किसान अब जवाब देने की तैयारी करते हुए किसान नेताओं को देश के विभिन्न राज्यों के तमाम शहरों में भेजकर समर्थन जुटाने में जुट गए हैं। एक बात का ख्याल दोनो पक्ष रख रहे हैं कि शांति भंग होने की कोई नौबत न आने पाए।

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किसानों के समर्थन में कांग्रेस पर आँसूगैस के गोले और बलप्रयोग

मध्यप्रदेश में किसानों के समर्थन में कांग्रेस के प्रदर्शन में आँसूगैस और बलप्रयोग की बात को अगर किसानों से न भी जोड़ें तो भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किसानों के राजभवन घेराव कार्यक्रम को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने बैरीकेडिंग लगाकर नाकेबंदी जबर्दस्त की थी किसान नेताओं की प्रदर्शन से पहले गिरफ्तारियां भी हुईं लेकिन प्रदर्शन के दौरान कोई अप्रिय घटना न हुई किसान अपना ज्ञापन देकर चले गए।

यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि किसान भी यह बात समझ रहे हैं कि उन्हें व्यापक जनसमर्थन तभी तक मिल सकता है जबतक खून खराबे की स्थिति न आए। इसके लिए वह गांधी के अहिंसात्मक सत्याग्रह का सहारा ले रहे हैं।

इन राज्यों में किसान आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

पिछले दिनों इंडियन एक्स प्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि किसान नेताओं का मकसद दिसंबर के अंत तक किसान आंदोलन को 20 राज्योंर के करीब 500 शहरों तक पहुंचाना है। लगता ये है कि किसानों ने दिसंबर में तो यह नहीं किया लेकिन अब गतिरोध की स्थिति में उनके पास आंदोलन व्यापक रूप देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इसी लिए किसान नेता दिल्लीि की सीमा पर स्थित आंदोलनस्थहल को छोड़कर अन्ये शहरों की ओर रुख कर रहे हैं।

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किसान आंदोलन के समर्थन में आए ये कई दिग्गज

इसी मकसद के तहत पंजाब की कीर्ति किसान यूनियन (केकेयू) के राज्य‍ महासचिव सतबीर सिंह मुंबई भी गए थे। मुंबई में पूर्व सांसद राजू शेट्टी और समाजसेविका प्रतिभा शिंदे का पहले से ही किसान आंदोलन को समर्थन है।

एनडीए सरकार कहती है कि यह आंदोलन सिर्फ पंजाब हरियाणा तक ही सिमटा है. लेकिन अब किसानों को दूसरे राज्योंे के किसान नेताओं का समर्थन मिल रहा है। खबर यह भी है कि बिहार के कई किसान संघों का भी आंदोलन को समर्थन मिल गया है। और अन्य राज्यों में यह समय के साथ तेज हो सकता है।

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