भारत की ऐसी महिला जिसका न कोई धर्म है, न कोई जाति, जानिए इनके बारें में

स्नेहा बताती हैं कि जब भी वह फॉर्म भरने के समय जाति और धर्म के बॉक्स के कॉलम को देखती थीं तो उन्हें एहसास होता था कि मेरी पहचान क्या जाति और धर्म से ही होगी। स्नेहा स्कूल के समय से ही जाति, धर्म का कॉलम खाली छोड़ देती थीं।

Update: 2021-02-10 13:35 GMT
भारत की ऐसी महिला जिसका न कोई धर्म है, न कोई जाति, जानिए इनके बारें में

नई दिल्ली: किसी ने सच ही कहा है कि किसी व्यक्ति की पहचान उसके जाति या धर्म से नहीं बल्कि उसके कर्मों से होना चाहिए। लेकिन हम जिस देश में रहते हैं, यहां पर जाति और धर्म से ही लोगों की पहचान होती है। इस प्रथा को रोकने के लिए तमिलनाडु की महिला ने एक मुहिम चलायी है।

किसी कवि ने कहा है, यह क्या चलन चला आता रहा है...

जनाब इंसान तो इंसान है ना...

फिर भी उस में भेदभाव किए, चला आता रहा है...

महिला की मुहिम लाई रंग

इंसान को उसकी जाति के अनुसार बांटा चला आता रहा है। इस जाति और धर्म की लड़ाई में आखिरकार विजय पा गई हैं, तमिलनाडु की ये महिला। आखिरकार तमिलनाडु की इस महिला की यह मुहिम रंग ला ही गई... तो आइए जानते हैं, क्या है इसकी पूरी कहानी-

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तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के तिरूपत्तूर की रहने वाली एक 35 वर्षीय महिला ने इस मुहिम को चलाई थी। यह महिला पेशे से वकील है। जिसका नाम स्नेहा है। जिसने 2010 में 'नो कास्ट, नो रिलिजन' का एक अलख जगाई थी। आपको बता दें कि स्नेहा पिछले नौ साल से संघर्ष कर रही थीं।

क्या है स्नेहा का कहना?

स्नेहा बताती हैं कि जब भी वह फॉर्म भरने के समय जाति और धर्म के बॉक्स के कॉलम को देखती थीं तो उन्हें एहसास होता था कि मेरी पहचान क्या जाति और धर्म से ही होगी। स्नेहा स्कूल के समय से ही जाति, धर्म का कॉलम खाली छोड़ देती थीं। उनके हर प्रमाण पत्र में जाति, धर्म रिक्त रहा है।

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नौ साल के संघर्ष के बाद पाया ये सर्टिफिकेट

उनका कहना है कि उनकी पहचान सिर्फ भारतीय के रूप में हो। आपको बताते चलें कि स्नेहा सर्टिफिकेट पाकर देश की पहली ऐसी महिला बन गई हैं, जिसका न तो कोई धर्म, और ना कोई जाति नहीं है। स्नेहा यह प्रमाणपत्र पाने के लिए पिछले नौ साल से संघर्ष कर रही थीं।

श्वेता पांडे

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